Mangla Gauri Vrat : मंगला गौरी व्रत श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है। भारतवर्ष की सभी नव विवाहिता स्त्रियाँ इस व्रत को बड़े श्रद्धा और भक्ति के साथ रखती हैं।
यह व्रत उन्हीं स्त्रियों के लिए अधिक फलदायी माना गया है जिनका विवाह उसी वर्ष हुआ हो। विवाह के बाद पाँच वर्षोंतक इस व्रत का अनवरत अनुष्ठान करना चाहिए।
प्रथमवर्ष का अनुष्ठान अपने पिता के घर पर तथा अन्य चार वर्षों का अनुष्ठान यथासम्भव अपने पति के घर पर करना चाहिए।
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जो स्त्रियाँ इस व्रत का अनुष्ठान विधिपूर्वक पाँच वर्षों तक पुरा करती हैं। वह आजीवन पुत्र और पति का सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त होती हैं।
मंगला गौरी व्रत पूजा करने की विधि (Mangla Gauri Vrat)
श्रावण मास में प्रत्येक मंगलवार को प्रातःकाल शौच-स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर नया वस्त्र पहनकर पूर्वाभिमुख होकर कुश, जल, अक्षत आदि के साथ यह संकल्प ग्रहण करें, –
दिनभर निर्जला रखकर शाम के समय भगवती मंगलागौरी का पूजा-अर्चना करें। रात में जागरण करते समय धार्मिक-ग्रंथों का पाठ, ईश्वर का नाम कीर्तन तथा भगवती मंगलागौरी की कथा सुने और मूर्ति के समीप ही शयन करें।
प्रातःकाल भगवती का आरती कर मनोवांक्षित फल की याचना करें। ब्राह्मणों को भोजन कराकर आशीर्वाद लें और दान देकर विदा करें।
बाद में भगवती मंगलागौरी के मूर्ति का विसर्जन करें। इसी प्रकार प्रत्येक मंगलवार को व्रत रखें और उसे विधिपूर्वक निभाएँ।
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मंगला गौरी व्रत की कहानी (Mangla Gauri Vrat ki Kahani)
प्राचीन काल में कुडिन नामक नगर में धर्मपाल नामका एक धनी सेठ रहता था।
उसके घर में धन-दौलत की कोई कमी नहीं थी। उसकी पत्नी भी धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्री थी। उसके घर में काफी सुख-शान्ति थी, लेकिन उसका कोई पुत्र न था।
इसलिए वह दम्पति बड़े व्याकुल और दुःखी रहा करता था। उनके यहाँ प्रतिदिन एक जटा-रुद्राक्ष मालाधारी भिक्षुक आया करता था। पति की सम्मति से पुत्र प्राप्ति की इच्छा से एक दिन सेठानी ने भिक्षुक की झोली में छिपाकर एक सोना डाल दिया।
इसपर भिक्षुक ने उसे क्रोध में आकर अनपत्यता (संतानहीनता) का शाप दे डाला। फिर बहुत अनुनय करने पर गौरी की कृपा से उसे एक अल्पायु पुत्र प्राप्त हुआ जिसके जन्म से 16वें वर्ष सर्पदंश के कारण मृत्यु लिखा हुआ था।
उस बालक का विवाह एक ऐसी कन्या से हुआ जो अपनी माता के साथ मंगलागौरी का व्रत करती थी। इसलिए वह शतायु हो गया और मंगलागौरी की कृपा से न तो साँप ही उसे डँस सका न यमदूत ही 16वें वर्ष उसके प्राण ले जा सके।
वे जब कुण्डिनपुर लौटे तो माता-पिता ने उनका बड़ा सोल्लास स्वागत किया। उसी समय से यह मंगलागौरी का व्रत सभी नवविवाहित स्त्रियाँ बड़े ही श्रद्धा और भक्ति के साथ करती आ रही है।
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