श्रावण शिवरात्रि | मासिक शिवरात्रि | Sravan Shivratri Vrat Katha

Srawan-Shivratri
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Sravan Shivratri Vrat Katha :श्रावण मास का प्रत्येक दिन भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता है। इस महीने में भगवान शिव अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। लेकिन श्रावण मास की कृष्ण चतुर्थी के दिन शिवरात्रि का विशेष महत्व है। इसे श्रावण शिवरात्रि या मासिक शिवरात्रि भी कहा जाता है। इस दिन भगवान भोलेनाथ का व्रत, पूजा और रात्रि में भजन आदि करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो जाती है।

श्रावण शिवरात्रि पूजा करने की विधि

  1. श्रावण शिवरात्रि के दिन प्रातः स्नान आदि करने के पश्चात् भगवान शिव के मन्दिर में जाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करें
  2. बाबा को दूध अर्पित करें साथ बेल पत्र चढ़ायें।
  3. शिवलिंग पर रोली अक्षत से तिलक करें। धूप दीप से भगवान की आरती करें।
  4. भगवान शिव की मूर्ति के सामने या शिवलिंग के सामने बैठ कर ‘‘ओम नमः शिवाय’’ मंत्र का कमसे कम पांच बार जाप करें।
  5. मन्दिर में दान अवश्य दें।
  6. घर आकर घर के मन्दिर में भगवान शिव के आगे दीपक जला का ‘‘ओम नमः शिवाय’’ का जप करें।

इसके बाद पूरे दिन भगवान भोलेनाथ के लिये उपवास रखें। शाम के समय उपवास खोले। यदि संभव हो तो केवल मीठा व्यंजन भोग लगा कर ग्रहण करें।

उपवास पूर्ण होने के बाद रात्रि के समय भजन आदि गा कर कुछ देर कीर्तन करें। अन्यथा मन्दिर के सामने ‘ओम नमः शिवाय’ महामन्त्र का उच्चारण करते रहे। शिवरात्रि की रात्रि में कीर्तन, मन्त्र उच्चारण का विशेष लाभ मिलता है।

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श्रावण शिवरात्रि से जुड़ी सच्ची कहानी

एक समय एक गॉव में पंडित तुकाराम रहता था। वह भगवान शिव का भक्त था किन्तु पंडित होते हुए भी वह लकड़हारे का काम करता था। वह जंगल से लकड़ी काट कर लाता और उसे गॉव के बाजार में बेच कर अपनी गुजर बसर करता था।

इसी बीच श्रावण का महीना शुुरू हो गया। श्रावण में बहुत बारिश हो रही थी। इसी कारण जंगल के सभी पेड़ गीले हो गये।

पंडित तुकाराम जब लकड़़ी काटने गया तो उसे सूखी लकड़ी नहीं मिली और गीली लकड़ी बिक नहीं पाती। यही सोच कर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया।

पंडित तुकाराम: भगवान आपने बारिश करके मुझे भूखा मार दिया घर पर मेरी पत्नि और बच्चे भूखे मर जायेंगे। मैं आज घर न जाकर यहीं प्राण त्याग देता हूं अपनी पत्नि और बच्चे को मरता नहीं देख सकता।

वह मरने के बारे में सोच ही रहा था तभी उसे पेड़ के नीचे कुछ चमकता हुआ दिखाई देता है। वह देखता है भगवान शिव का शिवलिंग वहां स्थापित था।

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पंडित तुकाराम उस शिवलिंग को साफ करता है।

पुडित तुकाराम: भगवान शिव आप यहां जंगल में क्या कर रहे हैं।

तभी शिवलिंग में से आवाज आती है। ‘‘मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था तुम हर दिन लकड़ी तोड़ने आते हो तो इस वीरान जंगल में रौनक हो जाती है लेकिन आज तुम मरने की बात कर रहे हो तो मुझे प्रकट होना पड़ा’’

पंडित तुकाराम: भगवन आप स्वयं बोल रहे हैं मेरा जन्म तो सफल हो गया किन्तु मेरा परिवार भूखा मर जायेगा यह मैं देख नहीं सकता।

शिवजी: तुम लकड़ी मत काटो इससे पेड़ों को बहुत तकलीफ होती है इसी कारण तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है।

आज श्रावण की शिवरात्री है आज तुम मेरा व्रत करो सुबह पूजन करते ही तुम्हें ज्ञान की प्राप्ति हो जायेगी।

पंडित जी ने व्रत किया और पूजन किया तभी पंडित जी को अचानक ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। वे वेद शास्त्रों के विद्वान बन जाते हैं। वहां से वे सीधे मन्दिर जाते हैं और कथा वाचन शुरू कर देते हैं।

कुछ ही दिनों में उनकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल गई अब उनके पास न धन की कमी थी न ज्ञान की उस दिन से पंडित तुकाराम लोगों को शिवरात्रि के व्रत का प्रचार करने लगे।

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