नन्हा चरवाहा | Motivation Kids Story Hindi

Motivation Kids Story Hindi
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Motivation Kids Story Hindi : गांव के एक स्कूल में मेरा तबादला हुआ। मेरे पति राजीव बहुत परेशान थे।  वो कहने लगे – ‘‘अंजली तुम अकेले अंजान गांव में कैसे रहोंगी। छोड़ दो नौकरी।’’

मैंने उन्हें समझाते हुए कहा – ‘‘आपको पता है मुझे कितनी मुश्किल से ये सरकारी नौकरी मिली है। दो या तीन साल में ट्रांसफर ले लेंगे। तुम्हें पता है मुझे बच्चों को पढ़ाना कितना अच्छा लगता है। मैं सब संभाल लूंगी।’’

राजीव को किसी तरह समझा तो दिया लेकिन मैं खुद अंदर से डर रही थी। शहर की बात और है। नये गांव में रहना वहां नौकरी करना। लेकिन कुछ कर भी नहीं सकते थे। इसलिये चुपचाप समान पैक कर लिया।

राजीव ने कहा – ‘‘अंजली मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा। वहां एक दो दिन रुक कर तुम्हें सेटल करके वापस आ जाउंगा।’’

मैं इस बात से बहुत खुश थी। कि चलो दो-तीन दिन ही सही ये मेरे साथ होंगे तो डर कुछ कम लगेगा।

सुबह की ट्रेन पकड़ कर हम गांव के लिये निकल गये। ट्रेन से उतर कर बस लेनी होती है जो कि गांव से तीन किलोमीटर पर उतार देती है। वहां से कोई तांगा लेना होगा।

ट्रेन तक तो ठीक था। लेकिन गांव जाने वाली बस में तो बुरा हाल हो गया। उसमें चढ़ना ही मुश्किल था। खड़े खड़े हालत खराब हो गई गर्मी में। वो तो अच्छा हुआ केवल तीन किलोमीटर का सफर था।

दोपहर के तीन बजे हम गांव में पहुंच गये। सीधे स्कूल गये। वहां जाकर देखा तो छुट्टी हो चुकी थी। टूटा फूटा स्कूल था। बाहर बड़ा सा बरामदा था। वहीं एक कुर्सी पर चौकीदार बैठा था।

देखते ही दौड़ कर आया और बोला – ‘‘आप ही नई मास्टरनी हैं। मैं आपका ही इंतजार कर रहा था। चलिये आपको प्रिंसीपल साहब के घर ले चलता हूं।’’

कुछ ही देर में हम तीनों प्रिंसीपल रघुवीर सिंह के घर पहुंच गये थे।

रघुवीर जी बहुत अच्छे इंसान थे। उन्होंने मेरे रहने का खाने पीने का सब इंतजाम अच्छे से कर दिया था।

अगले दिन स्कूल की छुट्टी थी, तो मेरे पति राजीव ने कहा – ‘‘आज गांव में घूमने चलते हैं। इससे तुम्हारी कुछ लोगों से जान पहचान भी हो जायेगी और राशन का जरूरी सामान भी ले आयेंगे।’’

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हम दोंनो सुबह दस बजे निकल गये गांव घूमने। गांव के बाहर हरी घास का मैदान था वहां एक उंचा सा टीला बना हुआ था। उसी पर पहली बार मैंने मंगल को देखा वो भेड़ों को चरा रहा था। आठ साल का रहा होगा। छोटा सा बच्चा हाथ में एक लकड़ी पकड़े हुए भेड़-बकरियों को हांक रहा था।

मैं उस टीले पर चढ़ गई मेरे पति भी वहीं आ गये। टीले पर चढ़ कर पता लगा कि यह तो बहुत छोटा सा गांव है। टीले से पूरा गांव दिखता था।

मैंने मंगल से पूछा – ‘‘बेटा तुम्हारा नाम क्या है? कहां रहते हो?’’

मुझे आश्चर्य से देखने लगा फिर वह हसने लगा। मुझे कुछ गुस्सा आ गया। फिर भी अपने को शांत करते हुए मैंने पूछा – ‘‘क्या हुआ इसमें हसने की क्या बात है।’’

वह बोला – ‘‘नहीं नहीं मेमसाहब पहली बार किसी ने बेटा कहा है। इसलिये विश्वास नहीं हो रहा।’’

राजीव जी ने उससे पूछा – ‘‘क्यों तुम्हारी मम्मी तुम्हें क्या कहती हैं।’’

यह सुनकर मंगल के चेहरे के भाव बदल गये हसी की जगह एक उदासी ने उसके चेहरे पर अपन डेरा जमा लिया था। वह बोला – ‘‘मेरा कोई नहीं है। न घर, न मां-बाप, न भाई बहन। बस ये भेड़ बकरियां ही मेरे साथी हैं।’’

यह सुनकर मुझे एक धक्का सा लगा। मैंने उसे अपने पास बिठाया और पूछा – ‘‘तुम कब से इस गांव में हो?’’

मंगल बोला – ‘‘मेरा तो जन्म ही इस गांव में हुआ। माता पिता शहर गये थे पैसे कमाने वहां कोई बीमारी फैल गई। फिर कभी वापस नहीं आये। (वह करोना की बात कर रहा था।)

मैंने पूछा – ‘‘सारा दिन भेड़ चराते हो या पढ़ने भी जाते हो?’’

मंगल मेरी बात सुनकर सिर खुजाने लगा – ‘‘आप स्कूल में पढ़ाने आई हैं क्या?’’

मेरे हां कहने पर वह बोला – ‘‘मुझे कौन पढ़ायेगा और पढ़ने जाउंगा तो भेड़  कौन चरायेगा?’’

मैंने उससे पूछा – ‘‘क्या तुम पढ़ लिखकर कुछ बड़ा नहीं करना चाहते?’’

वह बोला – ‘‘पहले तो पेट भरने के बारे में सोचना पड़ता है बाकी चीजें तो बाद में आती हैं।’’

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मैं उसकी बात से बहुत प्रभावित हो रही थी। कि कैसा लड़का है बेफिक्र अपने आप में मस्त, जैसे इसे दुनिया से कोई मतलब नहीं है।

मैं और राजीव चुपचाप अपने घर वापस आ गये। अगले दिन राजीव को वापस लौटना था, तो मैं उदास थी। उन्हें बस अड्डे तक छोड़ने जा रहे थे। तभी मंगल आ गया।

वह बोला – ‘‘लाईये मैं आपका सामान ले चलता हूं।’’

मैंने कहा – ‘‘नहीं बेटे तुम क्यों परेशान हो रहे हो हम ले जायेंगे।’’ मेरे पति राजीव ने भी इस बात का समर्थन किया।

मंगल ने जिद करके समान ले लिया और साथ चलने लगा। चलते चलते उसने कहा – ‘‘पहली बार किसी ने मुझे बेटा कहा है। चाचा आप जाओ चाचीजी को कोई दिक्कत नहीं होगी मैं इनका ध्यान रखूंगा।’’

अचानक से एक नया रिश्ता सुनकर हम दोंनो हसने लगे। बाद में गांव में रहते रहते मुझे पता लगा। यहां हर इंसान एक दूसरे को किसी न किसी रिश्ते से बुलाता है। जैसे ताउ, ताई, चाचा, चाची।

मैं स्कूल में पढ़ाने जाती तब मंगल भेड़ चराने जाता था। वहां से आने के बाद मेरे पास आ जाता। मैं उसे खाना खिला देती थी। शाम को मुझे गांव से सारा सामान ला देता था। रात को वह चला जाता था। मैंने उसे काई बार रुकने को कहा कि खाना खा कर चले जाना लेकिन वह रुकता नहीं था।

एक दिन मैंने मंगल से कहा – ‘‘दोपहर को मुझसे पढ़ा करो। कुछ सीख जाओगे तो मैं तुम्हारा नाम स्कूल में लिखवा दूंगी। भेड़ों का भी कुछ इंतजाम कर लेंगे।

मंगल ने पढ़ना शुरू कर दिया। मैंने उसके अंदर एक बात देखी कि वह हर चीज को एक ही बार में सीख जाता था। उसे सब कुछ बहुत जल्दी याद हो जाता था।

एक दिन मैंने मंगल से कहा – ‘‘मैंने बात कर ली है। तुम्हारा नाम स्कूल में लिखवा रही हूं। तुम यहीं रहना मेरे पास भेड़ चराना बंद कर दो। तुम्हारे खाने पीने रहने का सब मैं देख लूंगी। तुम बस पढ़ने पर ध्यान दो।’’

मेरी बात सुनकर वह एक आज्ञाकारी बेटे की तरह हां हां करता रहा।

 मंगल मेरा बहुत ध्यान रखता था। वह पढ़ने लगा। क्लास में सबसे ज्यादा नम्बर मंगल के ही आते थे। इसी तरह तीन साल बीत गये।

मेरा तबादला होना था। मैंने मंगल को सारी बात बताई तो वह रोने लगा बोला – ‘‘चाची मुझे भी अपने साथ ले चलो।’’

मैंने कहा – ‘‘तुम यहां मन लगा कर पढ़ना मैंने तुम्हारा सब इंतजाम कर दिया है। इसी घर में रहना। घर का किराया खाना पीना सब इंतजाम के लिये पैसे हर महीने प्रिंसीपल साहब से ले लेना। मैं उन्हें मनीऑडर भेजती रहूंगी।’’

मंगल मान गया वह मुझे बस स्टेंड तक छोड़ने आया। जब मैं जाने लगी तो उसने मेरे पैर छुए और वह रोता रहा। आंखे तो मेरी भी नम हो गईं थी।

वहां से आने के बाद अगले तीन साल तक मैं पैसे भेजती रही और प्रिंसीपल से मंगल के बारे में पूछती रही।

उसके बाद प्रिंसीपल ने बताया कि मंगल शहर चला गया। किसी को कुछ बता कर नहीं गया। मुझे उसके इस व्यवहार पर बहुत गुस्सा आई। मैं उसे अपना पता और फोन नं. देकर आई थी कि कोई परेशानी हो तो फोन करना।

इसी तरह पांच साल बीत गये। न मुझे मंगल के बारे में पता लगा न मंगल ने मुझसे मिलने की कोशिश की। मैं लगभग उसे भूल चुकी थी।

आज रविवार का दिन था। मैं देर से उठी राजीव ने आज नाश्ता बनाया था। हम दोंनो घर के बाहर बरामदे में बैठ कर चाय पी रहे थे।

तभी पुलिस की गाड़ी हमारे घर के बाहर आकर रुकी। उसमें से एक पुलिस आफिसर हमारे पास आया। उन्हें देख कर राजीव और मैं खड़े हो गये। राजीव ने पूछा – ‘‘क्या हुआ इंस्पेक्टर साहब। किसी को ढूंढ रहे हैं क्या?’’

लेकिन वह इंस्पेक्टर कुछ नहीं बोला और हमें देखता रहा। राजीव ने मेरी ओर देखा मैं भी सकते मैं थी, कि हमारे घर पुलिस क्यों आई?’’

तभी उसने आगे बढ़ कर राजीव के पैर छुए फिर मेरे पैर छुए इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते वह बोला – ‘‘चाची अपने इस भेड़ चराने वाले बेटे को भूल गईं क्या?’’

मैं कुछ बोल न सकी मेरी आंखे भर आई थीं। मुझे तो विश्वास ही नहीं था। यह सब कैसे हुआ? हजारो सवाल मन में थे। लेकिन मुंह नहीं खुल रहा था। मंगल एक इंस्पेक्टर के रूप में हमारे सामने खड़ा था। राजीव ने आगे बढ़ कर उसे गले  लगा लिया।

उसने बताया कि कैसे वह आगे की पढ़ाई के लिये शहर आ गया। यहां वह काम भी करता और पढ़ता भी था। इसी तरह पढ़ते पढ़ते उसने ग्रेजुएशन पूरी कर ली। अभी दो दिन पहले ही उसकी नौकरी लगी है। वह सबसे पहले यह खबर सुनाने हमारे पास आया था।

मुझे मंगल को देखकर बहुत खुशी हुई। मेरे जिद करने पर वह हमारे साथ ही रहने लगा। छः महीने बाद मैंने एक अच्छी सी लड़की देख कर उसकी शादी करा दी।

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Image Source : playground

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Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.