रिश्तों में कड़वाहट | Moral Stories in Hindi with Moral

Moral Stories in Hindi with Moral

Moral Stories in Hindi with Moral : कुसुम आज बहुत खुश थी। उसके भाई रचित का फोन आया था कि वे अपने परिवार के साथ उससे मिलने आ रहे हैं। कुसुम ने सुबह जल्दि उठ कर अपने पति साहिल को जगया।

कुसम: सुनो जी रचित की ट्रेन आने वाली होगी आप जल्दि से तैयार होकर स्टेशन चले जाओ जब से हमने घर बदला है वे पहली बार आ रहे हैं उन्हें तो यहां के रास्ते भी पता नहीं हैं।

साहिल: तुम्हारा दिमाग तो ठीक है कौन सा वी आई पी आ रहा है जो मैं उसे लेने जाउं। अपने आप टैक्सी करके आ जायेगा और फिर मुझे ऑफिस भी तो जाना है बेकार में सुबह सुबह नींद खराब कर दी।

यह कहकर साहिल दुबारा सो गया। कुसुम अपने पति के इस व्यवहार से आश्चर्यचकित थी। क्योंकि जब भी उसकी ससुराल पक्ष से कोई रिश्तेदार आता है तो साहिल सारा काम छोड़ कर उन्हें लेने जाते हैं और जब तक वे यहां रहते हैं। उनके साथ साथ रहते हैं ओर जिद करके उन्हें कई कई दिनों तक रोकते हैं।

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बाद में उन्हें स्टेशन तक छोड़ने भी जाते हैं। लेकिन आज साहिल को क्या हो गया। यही सब सोच कर कुसुम परेशान हो गई। उसने साहिल से तो कुछ नहीं कहा बाहर बैठी अपनी सास के पास गई और पूछा।

कुसुम: मांजी आज नाश्ते में और खाने में क्या बनेगा।

मांजी: अरे बनेंगा क्या वही जो रोज बनता है।

कुसुम: लेकिन मांजी आज मेरे भैया अपने परिवार के साथ आ रहे हैं में सोच रही थी। आज कुछ अच्छा बना लेते हैं।

मांजी: कोई जरूरत नहीं है अपने पीहर वालों की खातिर करने की नहीं वे लोग यहीं पैर फैला लेंगे।

कुसुम की आंखो से आंसू छलकने लगे वह किसी तरह अपने आप को कंट्रोल करके रसोई में चली गई और रोने लगी।

कुछ देर बाद रचित का फोन आया

रचित: दीदी आप लोकेशन भेज दो मैं टैक्सी करके घर आ जाता हूं।

कुसुम ने जल्दि से उसे लोकेशन भेज दी। और वह सीधी साहिल के पास चली गई।

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कुसुम: साहिल आज भैया पहली बार हमारे इस नये घर में आ रहे हैं। आज आप ऑफिस से छुट्टी ले लीजिये। उन्हें अच्छा लगेगा।

साहिल: नहीं कुसुम मुझे ऑफिस में जरूरी काम है। हो सका तो शाम को जल्दि आ जाउंगा।

कुसुम चुपचाप अपने काम में लग गई साहिल नाश्ता करके ऑफिस चला गया। मांजी भी नाश्ता करके पड़ोस में चली गई।

कुछ देर बाद घंटी बजी

कुसुम ने दरवाजा खोला तो देखा उसका भाई रचित भाभी सपना और उनकी  बेटी बबली खड़ी थी। भाई को इतने सालों बाद देख कर कुसुम की आंखे भर आईं वह भाई के गले लग कर रोने लगी।

रचित भी अपने आप को रोक नहीं पाया और उसकी आंखो से भी आंसू बहने लगे आखिर कई सालों बाद अपनी बहन को देख पाया था। कई सालों से केवल फोन पर ही बात हो पा रही थी।

रचित:  दीदी क्या बात है आप रो क्यों रही हों। सब ठीक तो है न।

कुसुम: मुस्कुराते हुए भाई तुझे देखकर बहुत खुशी हुई यह खुशी के आंसू हैं।

उसके बाद कुसुम ने अपनी भाभी सपना और उनकी बेटी बबली को गले लगा लिया। कुसुम ने मिलने के बाद सब को सोफे पर बैठाया और जल्दि से रासोई में पानी लेने चली गई।

रचित ने कुसुम के हाथ से पानी का गिलास लेते हुए पूछा

रचित: दीदी जीजाजी कहां हैं।

कुसुम के चेहरे पर उदासी के भाव आ गये उन्हें छिपाते हुए उसने हसते हुए कहा

कुसुम: वे तो आज छुट्टी करना चाह रहे थे। लेकिन अचानक ऑफिस में जरूरी काम आ गया पर वे काम खत्म करके जल्दि वापस आ जायेंगे।

कुसुम: भैया इतने दिनों के बाद बहन की याद आई

रचित: नहीं दीदी ऐसी बात नहीं है तुम तो जानती हो पिताजी के बाद दुकान की जिम्मेदारी मेरे उपर आ गई थी। पिताजी ने काफी कर्ज ले रखा था जिसके कारण दुकान से हाथ धोना पड़ा जैसे तैसे करके मुझे एक नौकरी मिली है जिसमें कहीं आने जाने का समय ही नहीं मिल पाता है।

कुसुम: क्या हमारी दुकान चली गई लेकिन क्यों और इतना कुछ हो गया तुमने मुझे कुछ बताया क्यों नहीं।

रचित: दीदी आपकी शादी और मेरी शादी पर पिताजी ने कुछ कर्ज ले लिया था। लेकिन दुकान पर बिक्री कम होने के कारण हम समय पर कर्ज चुका न सके जिसके कारण दुकान छोड़नी पड़ी। आपको यह सब बता कर मैं परेशान नहीं करना चाहता था।

कुसुम: लेकिन भैया आप एक बार बता देते तो मैं कुछ मदद कर देती कर्ज उतारने में। मेरी शादी का ही तो कर्ज था।

रचित: बहन कैसी बात करती हों। यह मेरा फर्ज था। जो मैं निभा न सका लेकिन कोई बात नहीं अब मैं नौकरी कर रहा हूं धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा। रही बात आपसे मिलने की तो आज बड़ी मुश्किल से तीन चार दिन की छुट्टी लेकर आया हूं। वो भी बबली का एक्जॉम है इसी शहर में सेंटर पड़ा है।

कुसुम: अच्छा मेरी बेटी का पेपर है। बेटा कैसा पेपर है।

बबली: बुआ जी सरकारी नौकरी का एग्जांम है। यदि सलेक्शन हो गया तो यहीं नौकरी लग जायेगी।

कुसुम: भैया अपनी बबली कितनी बड़ी और समझदार हो गई है। चिंता मत कर बेटा तू जरूर पास होगी।

कुसुम ने जल्दि से सबके लिये नाश्ता तैयार किया नाश्ता करके रचित बबली को सेंटर दिखाने ले गया। कुसुम और सपना खाने की तैयारी करने लगीं।

सपना: दीदी आप हमें देख कर रो क्यों पड़ी थीं क्या कोई परेशानी है।

कुसुम: भाभी में बहुत मजे में हूं लेकिन भैया को देखकर कर मॉं पिताजी की याद आ गई। भैया के साथ बिताया बचपन याद आ गया। इसीलिये रोना आ गया।

दोपहर को मांजी वापस आई।

कुसुम की भाभी को देखकर उन्होंने ऐसे दिखाया जैसे कोई आया ही नहीं है। सपना ने मांजी के पैर छुए तो भी वे कुछ नहीं बोली और खाना खाकर अपने कमरे में जाकर सो गई। वैसे हर दोपहर को टीवी पर सत्संग देखती थीं।

कुसम उनका यह व्यवहार देख कर हैरान थी। वह मांजी के कमरे में गई।

कुसुम: मांजी क्या बात है आपकी तबियत तो ठीक है।

मांजी: ये सब कब जायेंगे मुझे घर में सुकुन चाहिये।

कुसुम: मांजी ये आप क्या कह रही हैं भाभी सुन लेंगी तो उन्हें बुरा लगेगा।

मांजी: बुरा लग रहा है तो लगे ये जब तक यहां हैं मैं अपने कमरे में ही रहूंगी।

कुसुम: लेकिन मांजी क्या बात है।

मांजी: तुझे नहीं पता इन्होंने कैसे हमारे साथ धोखा किया है। शादी में कहा था कार बाद में दे देंगे। आज तक कार का पता नहीं है।

कुसुम: मांजी धीरे बोलिये आपको तो पता है शादी के समय कितना कर्ज हो गया था। उसके दो महीने बाद पिताजी चल बसे कर्जे के चक्कर में हमारी दुकान भी चली गई अब तो भैया नौकरी कर अपना खर्च भी बड़ी मुश्किल से चला रहे हैं। कार कहां से देंगे।

मांजी: अच्छा तभी ये छुट्टी मनाने और फ्री में मेरे बेटे के पैसों पर मौज उड़ाने यहां आये हैं।

कुसुम: नहीं मांज वे तो बबली के एक्जॉम के चक्कर में आये हैं।

मांजी: ठीक है इनसे कह दे पेपर खत्म होते ही चले जायें।

कुसुम की आंखों में आंसू थे। तभी उसने दरवाजे के पास एक परछाई देखी वह अंदर तक कॉंप गई उसे लगा जैसे उसकी भाभी ने सब सुन लिया।

कुसुम जल्दि से आंसू पौंछ कर रसोई में गई।

तो देखा सपना बर्तन साफ कर रही थी।

सपना: दीदी खाली बैठी थी तो सोचा बर्तन ही साफ कर दूं।

कुसुम: भाभी मैं जानती हूं आपने सब सुन लिया लेकिन आपको मेरी कसम भैया को कुछ मत बताना।

सपना: दीदी मैंने ज्याद कुछ नहीं सुना बस यह समझ आया मांजी हमसे नाराज हैं। वैसे भी बुर्जुगों की बात का क्या बुरा मानना।

कुसुम सपना से नजरे नहीं मिला पा रही थी।

कुछ देर में रचित और बबली भी आ गये। सपना ने खाना परोस दिया। रचित खाना खाकर कुछ देर सोने चला गया।

शाम को साहिल अपने समय पर आया रचित ने साहिल के पैर छुये।

साहिल: और रचित कैसे हो इतने दिनों बाद हमारी याद कैसे आ गई।

रचित: जीजाजी बेटी का पेपर था।

साहिल: अब तो मौज कर रहे होगे दुकान कैसी चल रही है।

रचित: नहीं जीजाजी दुकान तो कर्ज में चली गई मैं तो नौकरी कर रहा हूं।

साहिल: ओह बहुत अफसोस हुआ वैसे कब तक रुकने का विचार है।

साहिल ने रूखेपन से जबाब दिया।

रचित बस कल बबली का पेपर है शाम की ट्रेन से निकल जायेंगे।

साहिल: ठीक है सुबह मिलते हैं। मैं बहुत थका हूं।

साहिल अपने कमरे में चला गया उसने कुसुम से खाना वहीं लाने को कहा।

कुसुम: आप भैया के साथा खाना खाते तो उन्हें अच्छा लगता।

साहिल: देखा नहीं तुुमने दुकान के सारे पैसे मार कर बैठा है और कर्ज का बहाना बना रहा है। ऐसे लोंगो से दूर ही रहना अच्छा है।

कुसुम को बहुत बुरा लगा लेकिन वह कुछ नहीं बोली

अगले दिन साहिल रचित से मिले बगैर ऑफिस चला गया।

शाम को बबली पेपर देकर वापस आई तो रचित ने कुसम से बात की।

रचित: दीदी मैं जानता हूं हम गरीब हैं इसलिये जीजाजी और मांजी ढंग से व्यवहार नहीं कर रहे आप उन्हें कुछ मत कहना और हो सके तो मुझे माफ कर देना यह कहकर वह रोने लगा।

कुसुम: भैया माफी तो मुझे मांगनी चाहिये मैं आप लोगों का ढंग से सत्कार भी नहीं कर सकी।

सपना: दीदी आप परेशान न हों। हमें बिल्कुल बुरा नहीं लगा।

इसके बाद तीनों चले जाते हैं।

इस घटना के तीन महीने बाद एक दिन बबली का फोन आया।

बबली: बुआ जी मेरी नौकरी लग गई आपको खुशखबरी देनी थी।

कुसुम: सच लेकिन तूने तो कहा था अभी एक पेपर और देना है।

बबली: हॉं बुआजी हम आये थे लेकिन वहीं स्टेशन पर ही रुक गये पापा आपको कष्ट नहीं देना चाहते थे।

कुसुम: तू तो यहां आयेगी न या तू भी नाराज है।

बबली: नहीं बुआ जी नाराज तो कोई भी नहीं है। मुझे तो रहने की जगह यहीं पास में मिल गई आपके घर से ऑफिस बहुत दूर पड़ता।

कुसुम: मैं सब समझती हूं। भैया से कहना मुझे माफ कर दें।

यह कहकर कुसुम ने फोन काट दिया और रोने लगी।

अब रचित कभी कभी फोन करके अपनी बहन का हाल चाल पूछ लेता था। लेकिन रिश्तो में कड़वाहट कुसुम महसूस कर पाती थी।

Image by : Pexel

Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.