सावन सोमवार (अधिक मास पहला) Sawan Ka Tisra Somvar

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Sawan Ka Tisra Somvar : धार्मिक ग्रंथों में सावन के सोमवार का बहुत महत्व बताया गया है। लेकिन यदि यह सोमवार अधिक मास में पड़े तो भक्तों को अति शुभ फल देने वाला बताया गया।

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अधिक मास पर वैसे तो कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है लेकिन इस महीने में गिरीराज जी की परिक्रमा करने पर भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं। इसी तरह सावन के सोमवार यदि अधिक मास में पड़े तो इसका लाभ भक्तों को दुगने रूप में प्राप्त होता है।

अधिक मास में कहा गया है कि यदि कोई भक्त इस मास में पूजा करता है या अन्य धार्मिक अनुष्ठान करता है तो उसकी सभी परेशानियों का अंत हो जाता है।

सावन का तीसरा सोमवार और अधिक मास के पहले सोमवार की व्रत व पूजा की विधि ठीक वैसी ही है जैसा कि आपको पहले सोमवार की पोस्ट में बताया गया है। इसे आप नीचे दिये लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

सावन का पहला सोमवार : भोलेनाथ को प्रसन्न करना है तो ऐसे करें व्रत-पूजन

अधिक मास पहले सोमवार की व्रत कथा

एक समय कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और मॉं पार्वती किसी विषय पर गहन चर्चा कर रहे थे।

मॉं पार्वती: प्रभु मानव जाति के कल्याण के लिये कोई विशेष फल देने वाला व्रत बताईये।

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शिव जी: वैसे तो भक्त किसी भी सोमवार को मेरा व्रत करे उसे फल मिलता है। लेकिन सावन के सोमवार का व्रत करने वाले भक्तों पर मेरी विशेष कृपा रहती है। इसके साथ ही यदि कुंवारी कन्या सोलह सोमवार के व्रत करे तो उसे मनवांछित फल मिलता है।

पार्वती जी: यह तो सब जानते हैं। लेकिन क्या कोई ऐसा व्रत है जिसे करने से मनुष्य के कष्ट मिट जायें।

शिवजी: पार्वती मेरी पूजा से वंचित हजारो मनुष्य पृृथ्वीलोक पर कष्ट पा रहे हैं। लेकिन एक मास ऐसा भी होता है जो देवताओं को भी कष्ट में डाल सकता है। वह है अधिक मास इस मास में शुभ कार्य करने पर रोक लगा दी जाती है।

यदि कोई इस समय पड़ने वाले सावन के सोमवार को मेरा व्रत पूजन करे तो वह इस संसार में अनन्त सुख भोग कर मरने पर वैकुंठ लोक को चला जाता है।

पार्वती: प्रभु ऐसा कैसे अधिक मास को इतना महत्व क्यों दिया जाता है।

शिव जी: देवी इस मास के कारण भक्तों को भगवान के दर्शन और पूजा पाठ के लिये अधिक समय मिलता है। जिसका पुण्य उन्हें मिलता है। साथ ही इस मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं होता जिसके कारण भक्त केवल भगवान का ध्यान करते हैं।

यह सुनकर पार्वती जी बहुत प्रसन्न हुईं।

इस प्रकार अधिक मास में भगवान की भक्ति करने का अवसर खोना नहीं चाहिये। इससे जन्म जन्म के दुखों से मुक्ति मिल जाती है।

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