सावन का पहला सोमवार : भोलेनाथ को प्रसन्न करना है तो ऐसे करें व्रत-पूजन | Savan Somvar Vrat Katha

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Savan Somvar Vrat Katha : भोलेनाथ को प्रसन्न करना है तो इस विधि से करें व्रत-पूजन सावन के महीने में हर दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। क्योंकि इस महीनें में भगवान शिव अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। इस महीने में भगवान शिव की विशेष अराधना की जाती है। सावन के महीने में पड़ने वाले प्रत्येक सोमवार का विशेष महत्तव है। आज हम आपको सावन के पहले सोमवार के पूजन, व्रत और इससे जुड़ी एक सच्ची कहानी के बारे में बतायेंगे।

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सावन का पहला सोमवार : पूजा विधि Savan Somvar Vrat Katha

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये आपको कुछ विशेष विधि से शिवजी की पूजा करनी चाहिये।

  1. प्रातः काल जल्दि उठ कर स्नान आदि से निवृत होकर पूजा की सामग्री एकत्रित करें। इसमें एक थाली में एक लोटे में जल या दूध लें आप चाहें तो दोंनो को मिला भी सकते हैं। इसके साथ ही बेल पत्र, एक माला, थोड़े से फूल, चंदन, एक या दो फल साथ में दीपक, धूप आदि लेकर मंदिर जायें।
  2. मंदिर में भगवान शिव के शिवलिंग का पहले जलाभिषेक करें उसके बाद ‘ओम नमः शिवाय’ के उच्चारण के साथ दूध शिवलिंग पर चढ़ायें। इसके साथ ही आप भगवान शिव का ध्यान करके बेल पत्र, फल-फूल भोलेनाथ को अर्पण करें।
  3. यदि मन्दिर में महादेव की मूर्ति है तो उनके सामने धूप व दीपक जला कर बैठ जायें और भोलेनाथ का ध्यान कर मन ही मन में ‘ओम नमः शिवाय’ का जप करते रहें।
  4. शिवलिंग पर चढ़ाये जाने वाले दूध को प्रसाद रूप में ग्रहण करें।
  5. मन्दिर में दान अवश्य दें। इस दिन दान करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जायेंगी।

इसके बाद घर आकार घर के मन्दिर में दीपक, धूप से भगवान की पूजा करें और उन्हें फल मिठाई आर्पण करें। साथ ही व्रत का संकल्प लें।

सावन के सोमवार का व्रत कैसे करें ?

सावन के महीने में सोमवार के व्रत को सही विधि से करने से भोलेनाथ की कृपा आप पर बरसती रहेगी।

  1. सोमवार के व्रत में कभी भी नमक का प्रयोग न करें। यदि आप फलाहार भी करते हैं। तो काला व सफेद नमक का उपयोग बिल्कुल न करें। शाम को जब उपवास खोलें उस समय भी किसी मीठे व्यंजन का उपयोग करें।
  2. सोमवार को ध्यान रखें कि घर का कोई भी सदस्य चाहें उसने उपवास रखा है या नहीं। वह तामसिक चीजों का प्रयोग न करे। जैसे – लहसन, प्याज, मांस, सिगरेट, तंबाकू, शराब आदि।
  3. इस दिन मन को अध्यात्म से जोड़ कर रखें किसी की निन्दा, छल-कपट , घृणा, मनमुटाव आदि को मन में स्थान न रखें। साथ ही किसी के बुरा न करें। भोलेनाथ को सच्चाई ईमानदारी पर चलने वाले भक्त ही प्रिय हैं।
  4. भगवान शिव की पूजा में भूल कर भी तुलसी का प्रयोग न करें। इसके साथ ही सिंदूर, शंख, नारियल और हल्दि को भी वर्जित माना गया है।
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  6. शाम के समय उपवास पूरा करें किसी मीठे व्यंजन से भगवान शिव का भोग लगा कर उसे ग्रहण करें।

रात के समय भगवान शिव का ध्यान करें ‘ओम नमः शिवाय’ का जाप करें रात्रि के समय भजन कीर्तन करने से भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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सावन के सोमवार व्रत की कथा Savan Somvar Vrat Katha

भविष्य पुराण के अनुसार सरस्वती नदी के किनारे बिमला नामकी एक नगरी थी। उसमें कुबेर के बराबर का धनी चन्द्रप्रभु नामका राजा राज्य करता था।

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उसकी स्त्री रूप लावण्य और सौंदर्य से परिपूर्ण थी। एक दिन चन्द्रप्रभु राजा ने कुतुहलवश शिवपूजन का माहात्म्य अपने पत्नी को सुनाते हुए कहा,- ‘हे बड़े-बड़े नयनों वाली मृग की सी देवी! सुनो, एक राजा के परमबुद्धिमान सात बेटे थे।

उनमें से एक लड़के की पत्नी पतिव्रता थी। उसने समय आने पर दो लड़कों को जन्म दी। उससे एक सब शुभ लक्षणों वाली लड़की पैदा हुई।

उम्र आने पर उसका विवाह हुआ, पर वह पति को प्यारी न लगी। इस कारण वह वन को चली गयी। एक दिन वह बहुत सी गायों को चराती हुई वहाँ शार्दूल, बाराह, वन भैसा और हाथी को देख भयभीत होकर मूर्छित हो गई।

फिर उठकर प्यास के मारे बड़े भारी घन-घोर वन में घूमने लगी। वहाँ उस राजकुमारी ने एक ऐसा अपूर्व सरोवर देखा जो सैकड़ों चकोर, चक्र, कारण्ड और भौरों से सुशोभित हो रहा था।

खिले हुए उत्पल, पद्य, कल्हार और कुमुद उसकी निराली शोभा को और भी अधिक बढ़ा रहे थे। वह जब उस सुहावने सरोवर के पास पहुँची और उस सरोवर का पानी पिया।

वहाँ उस रानी ने बहुत सी अप्सराओं को उमा-पार्वती का पूजन करते देखा। जब उसने उन अप्सराओं को पूछा तब उन्होंने रानी को बताया कि हम यह शिवामुष्टि सोमवारी का व्रत कर रहे हैं। यह स्त्रियों को सौभाग्य और सम्पत्ति देनेवाला व्रत है।

इसलिए हे प्रतिव्रते! तुम भी इस व्रत को करो। उन अप्सराओं ने उसे व्रत का सारी विधि-विधान भी बताई। व्रत का विधान सुनकर संयमित चित्तवाली राजपत्नी ने उस व्रत को ग्रहण कर लिया। वह श्रावण मास के चारो सोमवार को शिवामुष्टि का व्रत रखी।

शंकरजी की श्रद्धा और भक्ति के साथ मनोयोग से पूजा-अर्चना की। सभी ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन कराकर आशीर्वाद ली। इस व्रत के प्रभाव से वह अपने पति की अत्यन्त प्यारी रानी हो गई। इसलिए यह सुन्दर व्रत सभी स्त्रियों को अनिवार्य रूप से करना चाहिए।

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