Makar Sankranti 2024 Puja Vidhi : माघ मास कृष्णपक्ष के दिन मकर संक्रान्ति पर्व मनाया जाता है। संक्रान्ति का अर्थ होता है, एक स्थान से दूसरे स्थान में जाना। सूर्य जब एक राशि से दूसरे राशि में जाता है, तो उसे संक्रान्ति कहते हैं। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में जाता है ये संक्रान्तियाँ बारह होती हैं, किन्तु इनमें मेश तथा मकर राशि की संक्रान्तियाँ प्रमुख हैं।
मकर संक्रांति 2024 कब है? Makar Sankranti Date
15 जनवरी 2024
मकर संक्रान्ति शुभ मुहूर्त | सुबह 06:41 से शाम 06:22 तक |
मकर संक्रान्ति महा पुण्य काल | सुबह 06:41 से सुबह 08:38 तक |
मकर संक्रान्ति के दिन पूजा करने की विधि
- मकर संक्रान्ति के दिन प्रातःकाल उठकर स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प धारण करना चाहिए। स्नान किसी नदी अथवा सरोवर में तिल मालिश कर करना चाहिए।
- इस दिन तिल का विशेष महत्त्व है। तिलयुक्त जल से स्नान, तिल का बना हुआ उबटन, तिल का हवन, तिल मिश्रित जल का पान, तिल का भक्षण, ये छः कार्य तिल के हों तो संक्रान्ति का फल बढ़ जाता है।
- स्नान के अनन्तर चन्दन से अष्टदल कमल की रचना कर उसमें सूर्यनारायण का आवाहन तथा यथाविधि पूजन करना चाहिए।
- दक्षिणा समेत सब सामग्री ब्राह्यणों को दान कर देना चाहिए। संक्रान्ति के दिन गंगा स्नान और गंगातट पर दान का विशेष महिमा है।
- तिल के लड्डू के साथ खिचड़ी का दान करने का विशेष फल बताया गया है।
- इस दिन विवाहित स्त्रियाँ तेल, कपास, नमक आदि का दान सौभाग्यवती स्त्रियों को करती हैं।
- इस दिन घी और कम्बल दान देने का विशेष महात्म्य बतलाया गया है।
मकर संक्रान्ति के दिन तीर्थराज प्रयाग तथा गंगा सागर में बहुत बड़ा मेला लगता है। गंगा आदि पुण्य नदियों के तट पर भी अनेक जगह छोटे-मोटे मेले लगते हैं।
मकर संक्रान्ति की व्रत कथा
प्राचीन काल में जाबालि ऋषि अपने समय के एक परमपूज्य महापुरुष थे। एक बार सुनाग नामक मुनि ने उनसे मकर संक्रान्ति के महात्म्य बताते हुए उनसे कहा था कि मकर संक्रान्ति के अवसर पर शिवजी की प्रतिमा को घृत से अभिशिक्त करके उसपर तिल के फल तथा बेलपत्र चढ़ाने की विशेष महिमा है।
तिल का फल न मिले तो कमल का फूल उससे भी बढ़कर है। धूप, दीप, नैवेद्य आदि के साथ प्रार्थना और प्रदक्षिणा भी विशेष फल देने वाली होती है।
रात्रि में जागरण के साथ ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप तथा प्रातःकाल स्नान तथा पूजा करने से शिवगति प्राप्त होती है। इस जीवन से दरिद्रता एवं विपदा का विनाश होता है।
मकर संक्रान्ति पर दधि-मंथन दान का भी महत्त्व है। अखण्ड सुख-सौभाग्य एवं धन-धान्य तथा संतति की प्राप्ति के लिए यशोदा एवं कृष्ण की प्रतिमाओं का विधिपूर्वक पूजन करें और दधि-मंथन की सभी सामग्रियों के साथ प्रतिमायें किसी सत्पात्र को दान कर दें।
एक बार कृपाचार्य की पत्नी कृपी ने दुर्वासा ऋषि से अपनी दरिद्रता एवं कोई संतान न होने का दुःख दूर होने का उपाय पूछा था तब दुर्वासा मुनि ने यही उन्हें दधि-मन्थन का व्रत करने का उपाय बताया था। जिससे उनका दुःख-दारिद्रय दूर हो गया था।
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