Importance of Makar Sankranti 2024 : भारत में अनेकों प्रकार के व्रत-त्योहार और पर्व मनाये जाते हैं। उन पर्वों में मकर संक्रांति का अपना एक अलग महत्त्व है। इस पर्व में सूर्य का देदीप्यमान प्रकाश जनसामान्य को दृष्टिगत होता है। उनकी अराधना एवं पर्यावास करने से सम्पूर्ण प्राणियों के जीवन में प्रभास्वरता एवं प्रखरता आती है।
मकर संक्रांति 2024 किस दिन मनाई जायगी?
15 जनवरी 2024
मकर संक्रान्ति शुभ मुहूर्त | सुबह 06:41 से शाम 06:22 तक |
मकर संक्रान्ति महा पुण्य काल | सुबह 06:41 से सुबह 08:38 तक |
वराहमिहिर तथा आधुनिक पाश्चात्य मनीषियों ने संक्रान्ति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर प्रदक्षिणा करता है। सूर्य के परिक्रमा करने के इस मार्ग को क्रांतिवृत्त कहते हैं।
प्रारम्भ से अन्त तक इस क्रांतिवृत्त को बारह भागों में बाँटा गया है। प्रत्येक भाग को एक राशि का नाम दिया है। जिस प्रकार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, उसी प्रकार चन्द्रमा भी पृथ्वी का प्रदक्षिणा करता है। उसकी एक प्रदक्षिणा समाप्त होने में एक मास लगता है। इसको चन्द्रमास कहते हैं।
जिस चन्द्रमास में सूर्य का संक्रमण क्रांतिवृंत्त के मेष भाग पर होता है, उसे चन्द्रमास तथा वृश के संक्रमण को वैशाख कहते हैं। उसी प्रकार पौषमास के चन्द्रमास में जो संक्रमण होता है; उसे ‘मकरसंक्रांति’ कहते है। मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का बहुत बड़ा दिन है। कहते हैं कि यशोदाजी ने इस दिन कृष्ण के जन्म के लिए व्रत रखी थी। मकर संक्रान्ति के व्रत का विधान बहुत सरल और सुखदायक है।
सूर्य के अराधना की परम्परा प्राचीन काल से रही है। सूर्य की अराधना से अप्राप्य भी प्राप्त हो जाता है। भारतीय वाङ्मय में यह प्रतिबद्ध धारणा परिव्याप्त है कि सूर्य के सान्निध्य से शरीर में अपूर्व शक्ति, ओज, तेज और कांति की अभिवृद्धि होती है।
सूर्य सम्पूर्ण संसार के जीवों का वैद्यराज हैं। वे अपनी रक्ताम चिन्मय रश्मियों से अपनयन कर सम्पूर्ण चराचर जगत् के समस्त प्राणियों के मित्र हैं और सबों को अपनी प्रभास्वरूप रश्मियों से अनुप्राणित करते हैं। अन्य सभी देवों का प्रत्यक्ष दर्शन नहीं हो पाता, किन्तु सूर्य एक ऐसे देवता हैं। जिनका प्रत्यक्ष दर्शन सभी जीव करते हैं।
सूर्य कालस्वरूप और काल के नियंता भी है। ऋतुएँ जो परिक्रमा करती हैं, उनके कर्ता और नियामक सूर्य ही हैं। सूर्य ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के स्वरूप हैं।
सर्वोत्कृष्ट शत्रुजनित भय एवं शोक के विनाशक, महापापहारी, अमिट तेजस्वी, समस्त लोकों के अधिपति, जगत के नायक; ज्ञान-विज्ञान, मोक्षादि के प्रदान कर्ता भगवान् भास्कर की ही अर्चना एवं वन्दना मकर संक्रान्ति के अवसर पर करने की परम्परा है। मकर संक्रान्ति के पहले दिन एकभुक्त भोजन का विधान है। मकर संक्रांन्ति के प्रातःकाल तिलों से तैलाभ्यंग स्नान अपेक्षित है।
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