जीवन की गाड़ी | Motivational Hindi Short Story

Motivational Hindi Short Story
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Motivational Hindi Short Story : नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ट्रेन अभी पहुंचने वाली थी। धीरे धीरे ट्रेन प्लेटर्फाम की ओर बढ़ रही थी।

दीपाली जी अपना समान समेट कर आगे बढ़ रहीं थी तभी उनके बेटे अक्षित ने उन्हें रोका – ‘‘मां आप रुको सामान मुझे दे दो मैं पहले उतर कर सामन उतार लूंगा बाद में आप आराम से उतर जाना।’’

‘‘ठीक है बेटा लेकिन संभल कर गाड़ी पूरी तरह रुक जाये तभी निकलना।’’  दीपाली जी ने हिदायत देते हुए कहा। गाड़ी स्टेशन पर पहुंचती उससे पहले ही तीन-चार कुली जबरदस्ती डिब्बे में चढ़ गये और अक्षित और दूसरी सवारियों से पूछने लगे साहब आपका सामान उठा लूं। अक्षित ने पूछा – ‘‘कितना लोगे?’’

तो कुली तीन सौ रुपये मांगने लगे यह सुनकर अक्षित बोला – ‘‘नहीं नहीं यह तो बहुत ज्यादा हैं हमें नहीं जाना रख दो सामान नीचे। बात करते करते प्लेटर्फाम आ गया। अक्षित और दीपाली जी नीचे उतर गये। वह कुली अब भी उनका सामान उठाने की कोशिश कर रहा था।

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अक्षित उससे पैसे कम करने के लिये कह रहा था। इसी बीच दीपाली जी की नजर दूर खड़े एक बूढ़े कुली की ओर गई। वह आती जाती सवारियों को एक आस से देख रहा था।

दीपाली जी ने उसे इशारे से बुलाया लेकिन वह नहीं आया तो दीपाली जी खुद उसके पास पहुंच गईं – अरे मैं तुम्हें सामान उठाने के लिये बुला रही थी, तुम आये नहीं चलना नहीं है क्या?’’

बूढ़ा कुली इधर उधर देख कर बोला – ‘‘मेमसाहब ये जो कुली हैं ये भाग कर ट्रेन में चढ़ जाते हैं मैं चलती ट्रेन में चढ़ नहीं पाता। उपर से जिस सवारी को ये लेकर आते हैं उससे कोई दूसरा कुली बात करे तो ये उसे मारते हैं। इसलिये मैं आपसे बच रहा था।’’

दीपाली जी को उस बूढ़े कुली पर दया आ गई। उन्होंने अक्षित के पास जाकर कहा – ‘‘अक्षित हमें कुली नहीं चाहिये इतने पैसे देने से अच्छा है अपना सामान खुद ले चलें।’’ यह सुनकर दोंनो कुली गुस्सा होते हुए दूसरे पैसेन्जर से बात करने चले गये। कुछ देर में सामान उठा कर बाहर की ओर चल दिये।

तभी दीपाली जी उस बूढ़े कुली के पास गईं और बोली – ‘‘वो दोंनो चले गये हैं। आप बताईये इतने सामान का कितना पैसा लेंगे।’’

बूढ़े कुली की आंखों में आंसू छलक आये वह बोला – ‘‘मेमसाहब जो चाहें दे दीजियेगा। मुझे बूढ़ा समझ कर कोई सामान नहीं उठाने देता।’’

तभी अक्षित आ गया – ‘‘मां ये सामान उठा भी पायेगा आप भी बेकार में चक्कर में पड़ गईं। अच्छा भला दो सौ में तय हो रहा था।’’

दीपाली जी ने कहा – ‘‘कुछ सामान ये उठा लेंगे कुछ हम उठा लेंगे।’’

अक्षित ने सामान उठाने में मदद की बूढ़ा कुली दो सूटकेस लेकर धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा।

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अक्षित पीछे मां से बोला -‘‘मां ये तो बहुत देर में पहुंचेगा। वो दोंनो अच्छे से सामान पहुंचा देते।’’ यह सुनकर दीपाली जी बोली – ‘‘बेटा कभी कभी किसी की मदद के लिये कुछ कष्ट उठाना पड़े तो उठा लेना चाहिये। ये बता रहे थे। इन्हें यही सोच कर कोई काम नहीं देता। पता नहीं क्या मजबूरी होगी तो इस उम्र में इतना भारी काम कर रहे हैं।’’

धीरे धीरे वे बाहर टैक्सी स्टेंड तक पहुंच गये। अक्षित ने पूछा – ‘‘बाबा कितने पैसे हुए’’ यह सुनकर बूढ़ा कुली बोला – ‘‘साहब जो ठीक समझो दे दो।’’ यह सुनकर अक्षित ने दीपाली जी की ओर देखा दीपाली जी ने इशारे से तीन सौ रुपये देने को कहा।

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अक्षित ने बेमन से तीन सो रुपये दे दिये। रुपये देख कर बूढ़ा कुली बोला – ‘‘साहब ये तो बहुत ज्यादा हैं आपने भी तो सामान उठाया है कम दे दीजिये।’’

दीपाली जी ने बूढ़े कुली से पूछा – ‘‘बाबा आज कितने पैसे कमाये आपने?’’

तब बूढ़ा कुली बोला – ‘‘मेमसाहब बस एक ही सवारी मिली थी सौ रुपये कमाये हैं।’’

दीपाली जी ने कहा – ‘‘आप ये पैसे रख लो और घर जाकर आराम करो रात होने को है।’’ यह सुनकर बूढ़े आदमी ने चुपचाप पैसे जेब में रख लिये।

दीपाली जी ने फिर पूछा – ‘‘आप इतना भारी काम करते हैं। आप के बेटे काम नहीं करते।’’

बूढ़ा कुली यह सुनकर रोने लगा फिर आंसू पौंछ कर बोला – ‘‘मेरा जवान बेटा यहीं कुली था एक दिन सामान उठा कर सीढ़ियों से उतर रहा था पैर फिसला और गिर कर मर गया।’’

अब मैं और मेरी पत्नि यहीं स्टेशन के पीछे झुग्गी में रहते हैं। वो घरों में काम करके कुछ कमा लेती है। मैं यहां बैठा रहता हूं कभी कभी आप जैसे लोग तरस खाकर कुछ काम दे देते हैं नहीं तो खाली बैठ कर घर चला जाता हूं।’’

बूढ़े कुली की बात सुनकर अक्षित और दीपाली जी दोंनो आश्चर्य चकित रह गये। वह बूढ़ा कुली अपने आंसू पौंछते हुए हाथ जोड़ कर धन्यवाद कर धीरे धीरे स्टेशन के पीछे बनी झुग्गीयों की ओर चलने लगा।

कैब में बैठे बैठे अक्षित और दीपाली जी दोंनो अपने अपने विचारों में खोये थे। घर पहुंच कर अक्षित ने बोला – ‘‘मां आप सही कह रहीं थीं। हमें ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिये।’’

दीपाली जी बोली – ‘‘वो चाहते तो स्टेशन के बाहर बैठ कर भीख भी मांग सकते थे। लेकिन उन्होंने मेहनत का रास्ता चुना। मैंने उनकी हालत देख कर ही तुम्हें तीन सौ रुपये देने के लिये कहा था।

तुम्हारे और हमारे लिये पांच सौ रुपये का मतलब एक पिज्जा हो सकता है। लेकिन एक बेसहारा बूढ़े माता पिता के लिये वो पांच सौ रुपये तीन दिन का भोजन हो सकते हैं।

मैं कहीं भी सामान खरीदती हूं तो ये ध्यान देती हूं कि ऐसे व्यक्ति से लूं जो मजबूर हो और मैं मोलभाव भी नहीं करती।’’

मां की बातें सुन और उस बूढ़े आदमी की मजबूरी जान कर अक्षित की आंखे भी नम हो गई थीं। उसने कहा – ‘‘मां जब इनके हाथ पैर नहीं चलेंगे तब क्या होगा।’’

दीपाली जी ने समझाते हुए कहा – ‘‘बेटा वो तो पता नहीं लेकिन ईश्वर सबका ध्यान रखता है। हम जरा से दुःख में दुःखी हो जाते हैं। इनके तो पूरे जीवन से सुख ही चला गया। जवान बेटे को कंधा देना और फिर जीवन की गाड़ी को ढोना। कितना मुश्किल है।’’

अक्षित का जीवन को देखने का नजरिया ही बदल गया। अब उसे पैसे उड़ाना फिजूल लगने लगा। वह दूसरों की मदद करता। सबसे प्यार से बात करता था।

Image Source : Playground

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Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.