बाइस्कोप की कीमत | Kahani Hindi Mai

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Kahani Hindi Mai : बुलंदशहर के पास एक कस्बे में दो महीने की गर्मीयों की छुट्टियों में बच्चे घरों में खेल रहे होते थे, लेकिन जैसे ही बाईस्कोप वाले की आवाज आती अपने घर से चवन्नी लेकर दौड़ पड़ते थे बाईस्कोप देखने।

निर्मल भी अपनी मां से जिद करने लगा –

निर्मल : मां जल्दी से पैसे दो बाईस्कोप शुरू हो जायेगा।

मां : नहीं बेटे वो अच्छी चीज नहीं है उसे देखने से क्या होगा गर्मी पड़ रही है ये ले दस पैसे और आईस्क्रीम खा लेना।

निर्मल : नहीं मां तुम हर बार ऐसे ही करती हों। मुझे तो चवन्नी चाहिये। मेरे सभी दो बाईस्कोप देख कर बाताते हैं कि कितना मजा आया और मेरे पास बताने के लिये कुछ नहीं होता।

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मां : अच्छा ठीक है ये ले चवन्नी लेकिन ये आखिरी बार है आगे से हर दिन केवल दस पैसे मिलेंगे आईस्क्रीम खाने के लिये।

मां की बातों को अनसुना करके निर्मल फटाफट भाग कर गली में और गली से चौराहे के पास बने मन्दिर के सामने पहुंच गया।

रंग बिरंगे चित्रों से सजा लकड़ी का बाईस्कोप जिसे बाईस्कोप वाला लकड़ी के स्टेंड पर लगा रहा था। सामने तीन बड़ी कटोरी चैन से बंधी हुई लगी थी। एक एक कटोरी दोंनो साईड में लगी थी। जो भी पैसे देता उसकी कटोरी खोल कर उसे अन्दर झाकने के लिये गोले में आंखे लगा कर बैठा दिया जाता था।

निर्मल ने भी जल्दी से चवन्नी देकर अपनी जगह बना ली। अन्दर शीशे के सामने एक सफेद सा पर्दा लगा था। जिसमें केवल राशनी दिख रही थी।

निर्मल : भैया इसमें तो कुछ दिख ही नहीं  रहा।

बाईस्कोप वाला : हसते हुए अभी शुरू कहां हुआ है और बच्चे आ जायें फिर एक साथ शुरू करेंगे।

कुछ ही देर में बच्चे आ गये तभी बाईस्कोप वाले ने दिखाना शुरू किया। एक एक फोटो दिखाता फिर उसके बारे में बताता जाता साथ में मजाकिया बातें भी बोलता जाता। कुछ ही देर में शो खत्म हो गया। निर्मल और उसके दोस्तों को बहुत मजा आया।

एक दोस्त : भैया आप रोज क्यों नहीं आते हो रंगीन फिल्म देख कर मजा आ जाता है।

बाईस्कोप वाला : भैया इसे बनाना भी तो पड़ता है नई नई कहानी याद करनी पड़ती हैं। दो दिन लग जाते हैं फिल्म इकट्ठी करने में फिर एक दिन उन्हें जोड़ कर फिल्म बनाने में लग जाता है। तीसरे दिन आता हूं तभी तो नई नई चीजें देखने को मिलती हैं।

निर्मल अपने दोस्तों के साथ घर की ओर चल देता है। वह पलट पलट कर बाईस्कोप वाले को देखता है। वह दूसरे बच्चों को वही शो दिखा रहा होता है।

निर्मल : कितने मजे का काम है न, काम काम, मजाक की मजाक।

दोस्त : अरे मेहनत भी तो है इतना भारी लकड़ी का बॉक्स उठा कर गली गली घूमना, बहुत मेहनत लगती है।

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दो दिन बाद फिर से निर्मल अपनी मां से जिद करता है, लेकिन उसकी मां उसे साफ पैसे देने के लिये मना कर देती है। निर्मल को केवल दस पैसे मिलते हैं आईस्क्रीम खाने के लिये।

निर्मल गली से निकल कर चौराहे पर पहुंच जाता है। बाईस्कोप वाला आवाज लगा रहा था। निर्मल को देख कर वह कहने लगता है।

बाइस्कोप वाला : भैया आज बहुत अच्छी फिल्म है आज नहीं देखोगे क्या।

निर्मल : भैया मेरे पास पैसे नहीं हैं।

बाइस्कोप वाला : अच्छा मैं मुफ्त में दिखा दूं तो। लेकिन मेरा एक काम करना पड़ेगा। मेरा ये बाईस्कोप उठा कर मेरी पीठ पर रखवा देना।

यह सुनकर निर्मल बहुत खुश हो गया दस पैसे भी बच गये और बाईस्कोप भी देखने को मिल रहा था।

सप्ताह में दो बार बाईस्कोप वाला आता और निर्मल उसकी आवाज सुनकर दौड़ पड़ता था। उसका बाईस्कोप उतारने में सहायता करता। फिर मजे से शो देखता उसके बाद जाते समय उसका बाईस्कोप रखवा देता था।

इसी तरह समय बीतने लगता है। निर्मल की छुट्टिया खत्म हो जाती हैं। अब बाईस्कोप वाला भी शाम को आता था। निर्मल शाम को उसका इंतजार करता रहता था।

खाली समय में बाईस्कोप वाला निर्मल से बात करता रहता था।

निर्मल को पता लगा कि बाईस्कोप वाले की पत्नी बीमार रहती है। उसकी देखभाल करता है। खाना बनाता है, बाईस्कोप वाले के कोई बच्चा नहीं था।

इसी तरह दो साल बीत जाते हैं। निर्मल को अब बाईस्कोप देखने में मजा नहीं आता था। वह केवल उसकी मदद करने के लिये चला जाता था। बाईस्कोप वाला भी अब केवल रविवार के दिन ही आता था।

निर्मल को बाईस्कोप वाले की बातें बहुत अच्छी लगती थीं। वह खाली समय में उसकी बातें सुनता रहता था। बहुत सारी जानकारी थी उसे निर्मल को कभी कभी लगता कि स्कूल में जो उसके टीचर उसे रटारटाया पढ़ाते हैं उससे ज्यादा तो इस बाईस्कोप वाले को पता है।

एक रविवार को बाईस्कोप वाला नहीं आया। निर्मल परेशान हो गया। फिर उसे पछतावा भी हुआ कि उसने कभी उसका पता क्यों नहीं पूछा।

इसी तरह तीन रविवार बीत गये लेकिन वह नहीं आया। अब निर्मल समझ गया कि शायाद वह अब न आये या कुछ परेशानी में होगा।

दो महीने बाद एक रविवार को बाईस्कोप वाले ने निर्मल के घर के सामने आवाज लगाई।

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निर्मल दौड़ कर उसके पास पहुंचा।

निर्मल : कहां रह गये थे भैया पता है मैं कितना परेशान हो गया था। अपना पता भी बता कर नहीं गये थे।

लेकिन तभी निर्मल ने गौर से देखा उसकी आंखे नम थीं। वह कुछ नहीं बोला बहुत पूछने पर उसने बताया

बाईस्कोप वाला : भैया मेरी पत्नी चल बसी। मेरा अब कोई नहीं है। अब किसके लिये काम करूं उसकी अंतिम क्रिया करने में पन्द्रह दिन निकल गये। तब से अकेला बैठा सोच रहा था कि क्या करूं?

निर्मल : भैया आप अकेले कहां हो? मैं हूं न आपका। क्या आप मुझे अपना बेटा नहीं मानते? और अगर मानते हैं तो इतनी बातें क्यों करते थे मेरे साथ।

बाईस्कोप वाला : बस भैया यही सब सोच कर आ गया। कि चलो बच्चों के साथ कुछ समय बीत जायेगा और दो पैसे भी मिल जायेंगे।

निर्मल : भैया आप रहते कहां हो?

बाईस्कोप वाला : वो जो पुराना खंडर स्कूल है न उसके पीछे के सड़क के किनारे मेरी झुग्गी है वहीं रहता हूं।

बाईस्कोप वाले से बातें करते करते निर्मल को अहसास हुआ कि उसकी बातों में अब वो जादू नहीं था जिससे निर्मल खिचता चला आता था। अब उसकी बातों उदासी थी।

कुछ दिन बीतने पर बाईस्कोप वाले ने आना बंद कर दिया। इधर निर्मल भी आगे की पढ़ाई के लिये दिल्ली चला गया।

निर्मल पढ़ने में बहुत तेज था। इधर परिवार का साथ मिला तो वह कलेक्टर बन गया।

एक दिन निर्मल अपनी गाड़ी में किसी सरकारी काम से जा रहा था। तभी एक जगह उसे सड़क के किनारे कुछ दिखा। निर्मल ने अपने ड्राईवर से गाड़ी रोकने के लिये कहा।

गाड़ी से उतर कर निर्मल पास में गया तो उसके साथ सक्योरिटी गार्ड और सहायक भी गये। वहां पहुंच कर निर्मल ने देखा यह तो वही बाईस्कोप है।

निर्मल : सुनो शर्मा जी पता करो ये बाईस्कोप किसका है?

शर्मा जी : लेकिन सर हमें देर हो रही है मिटिंग है।

निर्मल : जैसा आपसे कहा जा रहा है करो।

इधर उधर पता करने देखा शर्मा जी के पीछे एक बूढ़ा आदमी लड़खड़ा हुआ आ रहा था।

बूढ़ा आदमी : साहब इसे अभी हटा लेता हूं मेरी झुग्गी मत तोड़िये साहब मैं गरीब कहां जाउंगा?

निर्मल : चलो कहां है तुम्हारी झुग्गी दिखाओ।

बूढ़ा आदमी उन्हें अपनी झुग्गी के पास ले जाता है।

अंदर एक खाट पड़ी थी, पास ही मैले कुचैले कपड़े पड़े थे।

निर्मल : शर्मा जी इनका सारा सामान और वो बाईस्कोप एक गाड़ी में चढ़ा कर मेरे घर के पीछे जो सर्वेन्ट क्वाटर हैं वहां भिजवा दीजिये।

बूढ़ा आदमी : साहब मुझे माफ कर दीजिये। अब कभी सामान बाहर नहीं छोड़ूंगा।

निर्मल : चिन्ता मत करो आज से आप हमारे साथ रहोगे।

निर्मल के साथ के लोग कलैक्टर साहब का चेहरा देख रहे थे।

निर्मल : भैया जी पहचाना नहीं। आपका बाईस्कोप उठाता था। आप मुफ्त में शो दिखाते थे।

यह सुनकर बाईस्कोप वाले की आंखों से टप-टप आंसू बहने लगे।

बाईस्कोप वाला : भैया आप कहां से भगवान बन कर आ गये मैं तो अकेले अपनी मौत का इंतजार कर रहा था।

निर्मल : मैंने कहा था न आपका बेटा हूं मैं। चलो मेरे साथ आपसे बहुत सारी बातें भी तो करनी है।

निर्मल उन्हें अपने घर ले आता है।

एक अन्जान रिश्ता जो खत्म हो रहा था फिर से जीने की उम्मीद के साथ खड़ा हो गया।

Image Source : playground

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