नौकर का कर्ज | Hindi Story of Father for Kids

Hindi Story of Father for Kids

Hindi Story of Father for Kids : ‘‘रितेश तुम स्कूल जाओगे या नहीं’’ मां की आवाज सुनकर रितेश ने गुस्से में कहा – ‘‘नहीं मैं स्कूल नहीं जाउंगा।’’

शारदा जी को बहुत गुस्सा आया, लेकिन अपने गुस्से को कंट्रोल करके उन्हेंने कहा – ‘‘बेटा स्कूल नहीं जाओगे तो बड़े होकर क्या बनोंगे? क्या मेरी तरह मेहनत मजदूरी करोगे?’’

‘‘हां मां मैं अभी से काम करना चाहता हूं। आपको काम करता देख मुझे बहुत दुःख होता है।’’ रितेश की आंखें नम थीं। यह सुनकर शारदा जी की भी आंखें नम हो चली थीं।

पहले पति की बीमारी से जूझती रहीं। कभी किसी अस्पताल में दिखाया कभी किसी में बाद में पता लगा कि दोंनो किडनी फेल हो चुकी हैं। एक साल पहले वे चल बसे। तब से घरों में काम करके किसी तरह अपने आठ साल के बेटे को पढ़ाना चाहती थीं।

शारदा जी ने रितेश को समझाते हुए कहा – ‘‘बेटा मेरी चिन्ता छोड़ दे मैं सब कर लूंगी बस तू किसी तरह अपनी पढ़ाई पूरी कर ले फिर हमारे पहले जैसे दिन आ जायेंगे। तुझे याद है तेरे पापा कितनी अच्छे से हमें रखते थे। उनके बीमार पड़ते ही सब कुछ बिक गया। अब तो बस ये मकान ही बाकी है। इसे बचाय रखना है तो मुझे तो काम करना ही पड़ेगा। नहीं तो हम सड़क पर आ जायेंगे।’’

रितेश बोला – ‘‘मां इस समय हमें पैसों की जरूरत है। पापा की बीमारी में जो कर्ज लिया था वो कैसे चुकेगा। जब कर्जदार आकर तुम्हें गालियां सुनाते हैं तो मुझसे बर्दाशत नहीं होता।’’

शारदा जी बोली – ‘‘बेटा सब धीरे धीरे चुक जायेगा। मैं तेरी जिन्दगी बर्बाद नहीं कर सकती। तू मेरी बात मान पढ़ना मत छोड़।’’

रितेश उनकी बात को नजरअंदाज करते हुए बोला – ‘‘मां आपको पता है, कितनी फीस है मेरे स्कूल की पापा ने इतने बड़े स्कूल में दाखिला करा दिया। वहां की फीस में आपकी आधे महीने की कमाई चली जाती है। कर्ज कैसे उतरेगा?’’

शारदा जी भी मन ही मन यह बात समझती थीं, उनकी हैसियत नहीं थी अब उस स्कूल में पढ़ाने की, लेकिन उन्हें याद है उनके पति ने कैसे भाग दौड़ करके रितेश का एडमिशन करवाया था। उनका सपना था, कि रितेश पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जाये। जब तक राजेश जी जिन्दा थे। शारदा जी को कभी किसी बात की कमी नहीं होने दी। घर में हमेशा पार्टियां होती रहती थीं।

कभी कोई मेहमान, कभी कोई हमेशा आते रहते थे। उनके स्वागत सत्कार में शारदा जी को बहुत खुशी मिलती थी। ऐसा लगता था, जैसे वो एक बड़े से परिवार के साथ रहती हैं। सब लोग उनका हाल चाल पूछते।

लेकिन जब से राजेश जी बीमार हुए। धीरे धीरे सबने किनारा कर लिया। जहां तक कि जब राजेश जी ने प्राण छोड़े वहां शारदा जी और रितेश के अलावा कोई नहीं था।

ऐंबूलेंस घर आई तब कुछ पड़ोसियों ने मदद की और उनका अतिंम संस्कार किया।

उस दिन से आज तक उनका एक भी करीबी रिश्तेदार उनसे मिलने नहीं आया। हां एक दूर के रिश्तेदार ने कई बार मकान खरीदने की बात की, लेकिन शारदा जी ने उसे फटकार दिया।

दोंनो मां बेटे एक दूसरे को समझा रहे थे, तभी दरवाजे की घंटी बजी। शारदा जी ने गेट खोला तो सामने एक बुर्जुग व्यक्ति खड़े थे।

‘‘तुम ही राजेश की पत्नी हो?’’ उन्होंने भारी सी आवाज में पूछा।

शारदा जी को कुछ समझ नहीं आया तो उन्होंने कहा – ‘‘जी मैं ही हूं, लेकिन आप कौन हैं और इन्हें कैसे जानते हैं।’’

‘‘बेटी क्या मैं अन्दर आकर बैठ सकता हूं। बहुत दूर से आया हूं। क्या मुझे एक गिलास पानी मिल सकता है।’’ एक ही सांस में सब कुछ बोल कर वे बुजुर्ग जबाब का इंतजार करने लगे।

शारदा जी ने कहा – ‘‘हां हां आप अन्दर आईये। बैठ्यिे मैं आपके लिये पानी लाती हूं।’’

शारदा जी के जाने के बाद बुजुर्ग सामने पड़ी एक पुरानी सी कुर्सी पर बैठ गये। रितेश से बात करते हुए उन्होंने पूछा – ‘‘बेटा कौन सी क्लास में पढ़ते हो।’’

‘‘जी थर्ड में’’ इतना कहकर रितेश चुप हो गया।

शारदा जी पानी लाईं। पानी पीकर बुजुर्ग ने कहा – ‘‘बेटी यहां बैठो। मेरा नाम शान्ती लाल है। तुम्हारे पति मेरी ही कंपनी में काम करते थे। बहुत छोटी उम्र से उन्होंने मेरे यहां नौकरी कर ली थी। धीरे धीरे उन्होंने मेरा विश्वास जीत लिया। मेरी कंपनी की सारी जिम्मेदारी वे अकेले संभाल रहे थे, इसी बीच मेरी तबियत खराब रहने लगी। फिर मेरे बेटे ने कंपनी संभाल ली। मैंने अपने बेटे से कहा था, बेटा राजेश जी को कभी कोई परेशानी नहीं आने देना।

मैंने कंपनी आना छोड़ दिया। अपना इलाज कराने के लिये मैं विदेश चला गया। अभी एक सप्ताह पहले ही वापस आया हूं तो पता चला राजेश जी नहीं रहे। मुझे बहुत अफसोस है, जिस आदमी ने मेरी बीमारी में भी मेरी कंपनी को डूबने नहीं दिया। उसके अंतिम समय में मैं उसका साथ न दे सका। मेरे बेटे ने केवल एक महीने की सैलरी देकर आप लोगों को अपने हाल पर छोड़ दिया।

काश मैं यहां होता तो उनका ढंग से इलाज करा पाता। यह कहते कहते वे रुक गये और कुछ देर के लिये खामोश हो गये।’’

शारदा जी ने कहा – ‘‘जी सेठ जी वो आपके बारे में बहुत बात करते थे। माफ कीजियेगा मैंने आपको पहचाना नहीं। वैसे भी होनी को कौन टाल सकता है। उनकी दोंनो किडनी फेल हो गईं थीं। डॉक्टरो ने जबाब दे दिया था।’’

शान्तीलाल जी ने शारदा जी की और देखा और कहा – ‘‘नहीं बेटी मैं राजेश का गुनेहगार हूं। मैं होता तो उनका अच्छे से इलाज करवाता। खैर अब जो हो गया उसे तो नहीं बदला जा सकता। अब तुम चिन्ता मत करो। राजेश की सैलरी जब तक तुम्हारा बेटा अट्ारह साल का नहीं हो जाता तुम्हें मिलती रहेगी। कल मैं रहू या न रहूं। सैलरी तुम्हारे खाते में आती रहेगी। अपने बेटे को खूब पढ़ाओ। राजेश के सारे काम तुम पूरे करो।’’

यह सुनकर शारदा जी रोने लगीं। रितेश की आंखों से भी आंसू बह रहे थे। शारदा जी ने कहा – ‘‘सेठ जी आपकी बहुत मेहरबानी। भला कौन ये सब करता है। मरते समय भी उन्होंने कहा था, काश सेठ जी होते तो मेरा ध्यान रखते, लेकिन उन्हें क्या पता था, उनके सेठ जी उनके जाने के बाद भी उनका ख्याल रख रहे हैं।’’

शान्ती लाल जी बिना कुछ बोले चल दिये जाते जाते उन्होंने कहा – ‘‘बेटा पढ़ लिख कर अपने पिता जैसा बनना। जिनकी कमी हम आज भी महसूस करते हैं।’’

उनके जाने के बाद रितेश अपनी मां से लिपट गया – ‘‘मां मैं खूब पढ़ूगा, कल से स्कूल जाउंगा।’’

अगले दिन ही शारदा जी के एकाउंट में सैलरी आ गई। इसी तरह कई महीने बीत गये। एक दिन शारदा जी के मन में आया, कि एक बार शान्ती लाल जी से मिल कर उनका शुक्रिया अदा कर दिया जाये।

वो पता मालूम करते करते उनके बंगले के पास पहुंची। चौकिदार से पता किया तो पता लगा। वे जब विदेश से आये थे उसके पन्द्रह दिन बाद ही उनकी तबियत बिगड़ गयी और वे चल बसे।

शारदा जी की आंखों से आंसू बह रहे थे – ‘‘क्या वो केवल उनका भला करने ही आये थे। या अपना कर्ज उतारने।’’ यही सब सोच कर वे घर की ओर चल दीं।

इसके बाद भी हर महीने सैलरी आती रही। रितेश की पढ़ाई, बहुत अच्छे से चल रही थी। जब भी शारदा जी सैलरी के पैसे बैंक से निकालती उनकी आंखे नम हो जाती थीं।

Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.