Brothers Story Emotional : गुल्लू खेत के पास बनी पग्डंडी पर चल रहा था। तभी सामने से उसके चाचा रामलखन आते दिखाई दिये। गुल्लू जल्दी में था।
वह उनके बराबर से निकल गया, लेकिन उसने उन्हें देखा ही नहीं।
रामलखन जी ने गुल्लू को टोकते हुए कहा – ‘‘क्यों बे चाचा दिखाई नहीं दे रहे, ये नहीं कि राम राम भी कर ले।’’
यह सुनकर गुल्लू झेंप गया – ‘‘माफ करना चाचा मैंने देखा ही नहीं। वो घर जल्दी पहुंचना था। राम राम चाचा।’’
लेकिन तब तक रामलखन चाचा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया था – ‘‘हां हां भैया ने मना किया होगा। बटवारा क्या हुआ सबके रंग बदल गये।’’
गुल्लू बिना कुछ बोले आगे बढ़ गया।
रामलखन और तिलकराज दोंनो सगे भाई थे। दोंनो भाई दिन भर खेतों में मेहनत करते। अच्छी फसले होती और घर में हमेशा अन्न के भंडार रहते थे।
रामलखन अपने भाई की बहुत इज्जत करता था। एक दिन उनके पिता का देहान्त हो गया। धीरे धीरे तिलक राज ने खेतों पर जाना बंद कर दिया। अब सारा काम रामलखन के सिर पर आ गया था।
तिलकराज बड़ा होने के कारण पैसे का हिसाब किताब रखता था और धीरे धीरे उसने रामलखन को घाटा दिखाना शुरू कर दिया, लेकिन रामलखन भी सब समझता था। बड़े भाई की इज्जत के कारण वह कुछ बोल नहीं पाता था।
पानी जब सिर से उपर चला गया, तो एक दिन रामलखन ने बटवारे की बात कर दी – ‘‘भैया मुझे लगता है पिताजी के जाने के बाद हमें बटवारा कर लेना चाहिये था, कोई बात नहीं अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। हम बटवारा कर लेते हैं।’’
तिलकराज कहां मानने वाला था – ‘‘वाह अभी पिताजी को गये एक साल भी नहीं हुआ और इसे बटवारा करना है। क्यों भाई ऐसी क्या आफत आ गई।’’
‘‘भैया मुझे लगता है, आप पैसो में हेरा फेरी करते हैं। मैं इतनी मेहनत करता हूं। फसल भी अच्छी होती है, फिर भी घाटा क्यों होता जा रहा है।’’ रामलखन की बात सुनकर तिलकराज ने लाठी उठा ली – ‘‘तू मुझे चोर बता रहा है, एक शब्द और बोला तो तेरा सिर फोड़ दूंगा।’’
तभी तिलकराज की पत्नी सुजाता बीच में आई – ‘‘ये आप क्या कर रहे हैं। मेरी शादी के समय ये छः साल के थे बच्चे की तरह पाला है इन्हें, जो मांग रहे हैं दे दीजिये।’’
तिलकराज कुछ नर्म पड़ा और हो गया घर और खेतों का बटवारा।
तिलकराज ने अब अपने खेतों के लिये मजदूर रख दिये थे जो काम करते थे। रामलखन अकेला ही पूरा काम संभालता था। रामलखन की पत्नी सुमन अक्सर बीमार रहती थी, उसकी दो बेट्यिां थीं, लता और आशा। इधर तिलकराज के एक बेटा था। गुल्लू।
एक दिन सुबह जब तिलकराज खेत में जाने के लिये तैयार हो रहा था, तो उसने देखा। रामलखन के घर में कोई नहीं है। खेत पर पहुंचा तो देखा खेत में भी रामलखन नहीं है।
तिलकराज मजदूरों को खेत पर काम समझाकर घर आ गया और अपनी पत्नी सुजाता को पता लगाने के लिये बोला, लेकिन कुछ पता नहीं लगा।
तिलकराज और सुजाता ने पूरे गांव में पता किया लेकिन कुछ पता नहीं लग पा रहा था, उन्हें लगा रातों रात दोंनो सब कुछ बेच कर भाग गये।
इसी तरह कुछ दिन बीत गये। एक दिन रामलखन अपनी दोंनो बेट्यिों के साथ वापस आया। सुजाता ने जाकर पूछा – ‘‘क्या हुआ भैया कहां चले गये थे, और सुमन कहां है।’’
यह सुनकर दोंनो बेट्यिां अपनी ताई से लिपट कर रोने लगीं – ‘‘ताई जी मां हमें छोड़ कर चली गईं।’’
यह सुनकर सुजाता का कलेजा धक से बैठ गया। उसने रामलखन की ओर देखा वह रोते हुए बोला – ‘‘भाई उसकी बीमारी उसे खा गई, शहर के बड़े अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन उसे बचा न सका।’’ यह कहकर वह फूट फूट कर रोने लगा।
सुजाता झट से बाहर गई और गुल्लू को अपने पिता को बुलाने भेजा गुल्लू खेत पर पहुंचा – ‘‘पिताजी मां और चाचा दोंनो रो रहे हैं, जल्दी चलो।’’
तिलकराज तेजी से घर की ओर चल दिया। घर आकर पूरी बात को समझा रामलखन को गले लगाया और बोले – ‘‘चिंता मत कर मैं हमेशा तेरे साथ हूं।’’
सुजाता ने दोंनो बच्चियों को संभाला। तेहरवीं के बाद सभी मेहमान जाने लगे तो तिलकराज ने सबको रोका और कहा – ‘‘मुझे कुछ बात करनी है। मैं चाहता हूं। कि हमने जो बटवारा किया था उसे रद्द कर दें। मैं अपने भाई को ऐसे नहीं देख सकता। रामलखन तू सारा काम संभाल ले। सारे पैसे भी रख ले। तेरी दोंनो बेट्यिों की शादी हम मिल कर करेंगे।’’
रामलखन बोला – ‘‘भैया मुझे भी अब जमीन जायदाद और खेत घर का कोई लालच नहीं है। बस मेरी बेट्यिों को मां का प्यार मिल जाये। भाभी इन्हें संभाल लो मैं जो अब हरिद्वार जाना चाहता हूं। मेरा सब कुछ आप रख लो।’’
यह सुनकर तिलकराज रोने लगा वह बोला – ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है। हरिद्वारा जाने का समय तो हमारा है। तू कहीं नहीं जायेगा। आज से तेरी सारी जिम्मेदारी मेरी।’’
यह सब देख कर सुजाता अपने आंसू पौंछते हुए बोली – ‘‘देवर जी जब मैं आपको पाल सकती हूं, तो क्या दोंनो बेट्यिों को अनाथ छोड़ दूंगी। मेरी ममता में न कोई कभी पहले थी, न अब होगी और हां जिस पैसे के हेरफेर का इल्जाम आपने इन पर लगाया था, वह सारा पैसा इन्होंने शहर के सरकारी बैंक में जमा करा रखा है। तुम्हारी बेट्यिों के नाम पर।’’
तिलकराज ने हां में हां मिलते हुए कहा – ‘‘हां छोटे, मैं चाहता था, कि सारा पैसा खर्च न करके उसमें से कुछ बचा लिया जाये, बस एक गलती कर दी। कि तुझे बिना बताये ये सब कर दिया मैंने।’’
रामलखन अपने बड़े भाई के पैरों में गिर जाता है – ‘‘भैया मुझे माफ कर दीजिये मैंने आपसे कितनी लड़ाई की।’’
तिलकराज ने उसे उठा कर गले लगा लिया। इस तरह दोंनो परिवार एक हो गये।
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