Hindi Kids Story : एक राज्य में सुरेन्द्र सिंह नाम का राजा राज करता था। राजा बहुत ईमानदार था। लेकिन उसके मंत्री और उसके राज्य की प्रजा बहुत बेईमान थी।
उसके राज्य में राजधर्म नहीं था। हर व्यक्ति अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये दूसरे को लूटने का प्रयास करता था।
राजा को इन बातों का पता था। क्योंकि इसी भ्रष्टाचार के कारण उसका राजकोष खाली होता जा रहा था। राजा किसी पर विश्वास नहीं कर पा रहा था क्योंकि सभी बेईमान थे।
उसी राज्य में एक ब्राह्मण रहता था। वह दिन रात पूजा पाठ में लगा रहता था। वह ब्राह्मण बहुत ईमानदार था। इसी कारण राज्य के लोग उसे अपना दुश्मन मानते थे।
ब्राह्मण मन्दिर में पूजा करने आने वाले लोगों से ईमानदारी और सच्चाई पर चलने की बात करता था, जो लोगों को समझ नहीं आती थी। एक दिन राजा उसी मन्दिर में भगवान के दर्शन करने गया।
राजा ने भगवान की पूजा कर वहां पांच सोने के सिक्के चढ़ाये। पूजा समाप्त होने पर उस ब्राह्मण ने वही पांच सोने के सिक्के राजा को प्रसाद के रूप में वापस कर दिये। यह देख कर राजा को बहुत गुस्सा आया। उसने ब्राह्मण से पूछा
राजा: पंडित जी आपने मेरे चढ़ाये हुए सिक्के ही मुझे वापस कर दिये ऐसा क्यों क्या इनमें कोई खोट है।
ब्राह्मण: महाराज क्षमा करें इन सिक्कों में खोट है या नहीं यह तो सुनार ही बता सकता है लेकिन मैंने ये सिक्के इसलिये वापस किये क्योंकि इस राज्य के अधिकतर लोग बेईमान हैं।
जो लोग पूजा करने आते हैं वे अगर भगवान के चरणों में पड़े चमकते हुए सोने के सिक्के देखेंगे तो उनका मन पूजा पाठ में नहीं लगेगा। वे इन सिक्कों को चुरा कर ले जायेंगे। बाद में इनका उपयोग गलत कार्यों में करेंगे।
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राजा: लेकिन आपने मुझे ये वापस क्यों दिये?
ब्राह्मण: राजन् यह सिक्के आपके राजकोष में रहेंगे तो किसी अच्छे कार्य में लगेंगे, क्योंकि मैं जानता हूं आप बहुत ईमानदार हैं और आपका हर काम राज्य की भलाई के लिये ही होता है।
राजा को ब्राह्मण की बात बहुत पसंद आई।
राजा: हे ब्राह्मण देवता मैं चाहता हूं आप मेरे महल में पधारें मुझे आपसे कुछ जरूरी सलाह करनी है।
ब्राह्मण: ठीक है महाराज मैं कल आपके सामने उपस्थित हो आउंगा।
अगले दिन ब्राह्मण राजा से मिलने पहुंच जाते हैं।
राजा: आईये ब्राह्मण देवता मैं आप ही का इंतजार कर रहा था।
ब्राह्मणः महाराज मेरे लिये क्या आज्ञा है।
राजा: मेरे मंत्रीयों से लेकर प्रजा तक सब बेईमान हैं। मुझे अपने राज्य को बचाने के लिये क्या करना चाहिये।
ब्राह्मण: आपको उन्हें दण्ड देना चाहिये।
राजा: लेकिन कैसे मुझे उनके बारे में कुछ भी पता नहीं लग पाता लेकिन मेरा राजकोष खाली होता जा रहा है।
ब्राह्मण: महाराज यदि एक व्यक्ति को दण्ड दिया जाये तो सौ सुधर जायेंगे। मैं आपको एक उपाय बताता हूं। आपका जो मुकुट है यह सोने का है और इसमें कई हीरे भी जड़े हुए हैं आप अपने मंत्री से कहिये कि आप एक नया सुन्दर मुकुट बनवाना चाहते हैं। जिसमें इतने ही हीरे जड़े हों। लेकिन मुकुट शुद्ध सोने का होना चाहिये।
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राजा लेकिन उससे क्या होगा?
ब्राह्मण: जब मुकुट बन कर आ जाये तब आप मुझे बुलवा लेना। बाकी आप मुझ पर छोड़ दीजिये।
राजा तुरन्त अपने मंत्री को बुला कर मुकुट बनवाने के लिये कहता है।
मंत्री तुरन्त सोने के सबसे बड़े व्यापारी को बुलाता है।
मंत्री: सुनो व्यापारी महाराज के मुकुट के बराबर वजन का सोना तुम सुनार को पहुंचा दो। तुम्हें उसका पूरा मूल्य मिलेगा लेकिन उसमें दस प्रतिशत तांबा मिला देना। उसमें से जो बचत हो उसका आधा मुझे चाहिये।
उसके बाद मंत्री हीरे के व्यापारी को बुलाता है।
मंत्री: महाराज के मुकुट के लिये जो हीरे चाहियें उसमें से दो हीरे कम देना उनकी जगह कांच के टुकड़े लगा देना। एक हीरे का दाम मुझे चाहिये।
सोने का व्यापारी सोचता है जब मिलावट ही करनी है तो दस प्रतिशत क्या बीस कर देता हूं पांच प्रतिशत मंत्री को भी तो देना है।
वही बीस प्रतिशत तांबा मिला कर सोना सुनार को भिजवा देता है। इसी तरह हीरे का व्यापारी भी दो की जगह चार हीरे कम देकर कांच के भेज देता है।
सुनार जब देखता है कि इसमें तांबा मिला है और चार हीरे नकली हैं। तो उसके मन में भी लालच आ जाता है वह उसमें और मिलावट कर देता है। और दो हीरे और निकाल कर नकली कांच के हीरे लगा देता है।
उसके बाद वह उस सोने और हीरों को अपने कारीगर को बनाने के लिये देता है।
कारीगर देखता है। इसमें तो केवल चालीस प्रतिशत सोना है बाकी तो तांबा है। वह उस सोने को अपने पास रख लेता है और सोने की जगह तांबे का मुकुट बना कर उस पर सोने का पानी चढ़ा देता है। साथ ही सारे हीरे निकाल कर कांच के नकली हीरे लगा देता है।
तय समय पर महाराज के सामने मुकुट पहुंच जाता है। मुकुट बहुत सुन्दर बना था। राजा बहुत खुश होता है। वह तुरंत ब्राह्मण को बुलवाता है। ब्राह्मण अपने साथ दूसरे राज्य का एक सुनार लेकर पहुंच जाते हैं।
राजा: पंडित जी मेरा मुकुट तैयार है अब क्या करना है।
ब्राह्मण: राजा इस मुकुट बनाने की प्रक्रिया में जिस जिस ने भाग लिया उन्हें बुलवाईये।
राजा के आदेश पर सभी आ जाते हैं। उसके बाद ब्राह्मण अपने साथ लाये सुनार को मुकुट देते हैं। मुकुट को कसौटी पर परखने के बाद वह सुनार कहता है।
सुनार: महाराज यह तो पूरा मुकुट तांबे है इस पर सोने का पानी चढ़ा कर ये कांच के टुकड़े लगा दिये गये हैं।
राजा को बहुत गुस्सा आता है। वे मंत्री से पूछते हैं।
मंत्री, सोने के व्यापारी का नाम लेता है, सोने का व्यापारी सुनार का और सुनार अपने कारीगर का नाम लेता है।
राजा: इस कारीगर को राज्य के बीच फांसी पर लटका दिया जाये।
कारीगर: महाराज मुझे क्षमा कर दीजिये।
राजा: नहीं तुम बेईमान हो तुम्हें फांसी देनी ही पड़ेगी।
कारीगर: ठीक है महाराज लेकिन मुझे चालीस प्रतिशत फांसी दीजिये क्योंकि मुझे सोना चालीस प्रतिशत मिला था। अगर मैं उससे मुकुट बनाता तो वो तांबे का नजर आता।
इस तरह कारीगर सुनार की, सुनार, सोने के व्यापारी की, सोने का व्यापारी हीरे के व्यापारी की और दोंनो मिलकर मंत्री की पोल खेल देते हैं।
राजा: इन सबको कल सुबह राज्य के बीच में फांसी दे दी जाये।
अगले दिन पूरे राज्य में हड़कम्प मंच जाता है। बीच राज्य में राजा के सामने सभी को फांसी पर लटका दिया जाता है।
राजा: आज के बाद अगर किसी ने भी बेईमानी की तो उसका भी यही हाल किया जायेगा।
राजा: ब्राह्मण देवता मैं आपको मंत्री पद देना चाहता हूं। आज से राज्य के सारे फैसले मैं आपके परामर्श से लूंगा।
उसके बाद ब्राह्मण की सूझ बूझ से पूरा राज्य ईमानदारी से अपना कार्य करने लगा। कुछ ही दिनों में राजकोष भरने लगा।
Image Source : Playground
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