गीता जयन्ती पूजा विधि व व्रत कथा 2023 | Gita Jayanti 2023

Gita Jayanti 2023
Advertisements

Gita Jayanti 2023 : गीता केवल उपदेश मात्र नहीं है, वल्कि यह मानव समाज का जीवनमूल्य है। जो मानव जीवन को अपने उपदेशों से पवित्रकर मुक्त कर देती है। जिस दिन गीता जयंती मनायी जाती है।

उस दिन भगवान् श्रीकृष्ण ने इस दिन कुरुक्षेत्र की रणस्थली में कर्म से विमुख हुए अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। गीता संजीवनी विद्या है। गीता जीवन के संघर्ष में विजय का मार्ग प्रशस्त करती है।

अन्तर्द्वन्द्व में फंसे मन को संशय से बाहर निकालती है। मनुष्य जब किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है, तब गीता उसे राह दिखाती है। जगद्गुरु श्रीकृष्ण की वाणी गीता स्वयं भी जगद्गुरु के समान पथप्रदर्शक है। मन जब निराशा के अन्धकार से घिर जाता है, तब गीता आशा की किरण बनकर रोशनी देती है।

श्रीमद्भागवद्गीता में ऐसी संजीवनी शक्ति है, जो बुझे हुए मन में नई चेतना डाल देती है। गीता की छोटी सी गागर में ज्ञान का अथाह सागर भरा हुआ है। गीता के जीवनदर्शन के अनुसार मनुष्य महान् है, अमर है, असीम शक्ति का भंडार है।

गीता जयंती पूजा करने की विधि (Gita Jayanti 2023)

मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प धारण करें। दिनभर का उपवास रखने के बाद विधिपूर्वक भगवान् विष्णु की मूर्ति का पूजा-अर्चना करें। रात्रि में जागरण करके द्वादशी को एकभुक्त पारण करें।

यह एकादशी मन के मोह का क्षय करने वाली होती है। इसी दिन भगवान् श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। अतः इस दिन गीता, श्रीकृष्ण, व्यास आदि की पूजा करके गीता जयन्ती का उत्सव मनाना चाहिए। गीतापाठ, गीता पर व्याख्यान आदि होना चाहिए। सम्भव हो तो गीता के शुभ अवसर पर जुलूस भी निकालना चाहिए।

Advertisements

गीता जयंती व्रत कथा (Gita Jayanti 2023)

द्वापर काल में जब कौरव और पाण्ड़वों के बीच युद्ध प्रारम्भ हुआ तो कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन ने अपने परिजनांे को देख मोह-माया के जाल में पड़कर भगवान् श्रीकृष्ण को कहा,- ‘हे भगवन्! मैं यह युद्ध नहीं लड़ूँगा। अपने बंधु-बांधवों तथा गुरुजनों का संहार करके राजसुख भोगने की मेरी इच्छा नहीं है।’

वही अर्जुन कुछ क्षण पूर्व कौरवों की सारी सेना को धराशयी करने के लिए संकल्प कर चुका था। परिस्थितिवश वह मोहग्रस्त हो गया। वह अपने कर्म से विमुख हो गया। कर्तव्य से विमुख अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में जो उपदेश दिया गया वही गीता है। भगवान् के उसी उपदेश को महामुनि व्यास ने एक महान उपदेशात्मक गीता का रूप दिया, जो आज सम्पूर्ण संसार को अपने उपदेशों से मार्ग दर्शन का काम कर रही है।

गीता की गणना विश्व के सर्वश्रेष्ठ महान् ग्रंथों में की जाती है। श्री शंकराचार्य से लेकर श्री बिनोबा भावे तक के महान् साधकों ने गीता के महत्त्व को स्वीकार किया है। श्री लोकमान्य तिलक ने गीता से ‘कर्मयोग’ को लिया था और उसी के आधर पर अपने जीवनमूल्यों को स्थापित किया था।

Advertisements

इस गीता के आधार पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने ‘अनाशक्ति योग’ का प्रतिपादन किया था। गीता के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए महात्मा गाँधीजी ने लिखा है,- ‘जब मैं किसी विषय पर विचार करने में असमर्थ हो जाता हूँ तो गीता से ही मुझ्ो प्रेरणा मिलती है।’ महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय के अनुसार गीता अमृत है। इस अमृत का पान करने से व्यक्ति अमर हो जाता है।

गीता का आरम्भ ‘धर्म’ से तथा अंत ‘कर्म’ से होता है। गीता मनुष्य को प्रेरणा देती है कि मनुष्य का कर्तव्य क्या है? इसी का बोध करवाना गीता का लक्ष्य है। इसी आधार पर अर्जुन ने स्वीकारा था कि हे भगवन्! मेरा मोह क्षय हो गया है। अज्ञान से मैं ज्ञान में प्रवेश पा गया हूँ। आपके आदेश का पालन करने के लिए मैं कटिबद्ध हूँ।

Advertisements