Dattatreya Jayanti 2023 : भगवान् दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और शंकरजी के संयुक्त अवतार माना गया हैं। यह महर्षि अत्रि के पुत्र थे। इनकी माता का नाम अनुसूया था।
भगवान् विष्णु के देने के कारण तथा अत्रि का सन्तान होने के कारण इनका नाम दत्तात्रेय पड़ा था। मार्गशीर्ष की पूर्णिमा तिथि को दत्तात्रेय के उद्देश्य से व्रत करने एवं उनके मन्दिर में जाकर दर्शन-पूजन करने का विशेष महत्त्व है। पुराणों के अनुसार इस व्रत के अनुष्ठान से अभीष्ट की प्राप्ति होती है।
दत्तात्रेय जयंती पूजा करने की विधि (Dattatreya Jayanti 2023)
भगवान् दत्तात्रेय की जयन्ती मार्गशीर्ष मास के पूर्णिमा को प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर भगवान् दत्तात्रेय की जयन्ती के व्रत का संकल्प लें। दिनभर व्रत धारण करने के बाद शाम के समय भगवान् दत्तात्रेय का पूजा धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प तथा सुगन्धित द्रव्यों से करें। फिर ब्राह्मणों को भोजन कराकर आशीर्वाद लें और विदा करें।
दिनभर ईश्वर के नाम का कीर्तन करें। रात्रि को भगवान् दत्तात्रेय की मूर्ति के समीप ही शयन करें। जो इस प्रकार का व्रत रखते हैं। वे अपनी दस पीढ़ियों का उद्धार करते हुए स्वयं मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
दत्तात्रेय जयंती पहली व्रत कथा (Dattatreya Jayanti 2023)
प्राचीन काल में एक बार एक कोढ़ी ब्राह्मण रहता था। उसकी पतिव्रता पत्नी अपने पति को कन्धे पर बैठाकर उसे कहीं ले जा रही थी। मार्ग में उसके कोढ़ी पति का पैर माण्डव्य नामके एक क्रोधी मुनि के शरीर से छू गया। वह मुनि क्रोधित होकर शाप दे दिया : ‘तुम्हारे पति की प्रभात होते ही मृत्यु हो जाएगी।’ मुनि की यह शाप सुनकर उस पतिव्रत पत्नी ने कहा – ‘वह प्रभात अब कभी नहीं होगा।’ पतिव्रता की वाणी झूठी नहीं हुई।
न तो रात बीती न तो सबेरा हुआ। कई महिनोंतक रात्रि ही रही। संसार में हाहाकर मच गया। लोग भूख तथा रोग से मरने लगे। सबलोग मिलकर देव प्रार्थना करने लगे। अन्त में सब देवता मिलकर महामुनि अत्रि की पत्नी अनुसूया के पास गये और उनसे इस महान संकट से संसार को बचाने की प्रार्थना की।
अनुसूया उस पतिव्रता स्त्री के पास गयी और उससे कहा,- ‘हे पतिव्रते! तुम सूर्योदय होने की अनुमति दे दो। यदि सूर्योदय होने पर तुम्हारा पति मर जाएगा तो मैं उसे जीवित कर दूँगी।’ उस पतिव्रता ने वैसा ही किया।
सूर्योदय हो गया, किन्तु उसका पति मर गया। तब महासती अनुसूया ने उसे पुनः जीवित कर दिया। फिर क्या था? चारों तरफ यह सुख संवाद फैल गया और सर्वत्र महासती अनुसूया के पुण्य चरित्र की चर्चा होने लगी। अनुसूया ने प्रसन्न देवताओं से ब्रह्या, विष्णु महेश को पुत्र रूप में प्राप्त करने की प्रार्थना की। देवताओं ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया।
दत्तात्रेय जयंती दूसरी व्रत कथा (Dattatreya Jayanti 2023)
एक बार देवर्षि नारदजी ने जब ब्रह्माजी की पत्नी सावित्री, विष्णुजी की पत्नी लक्ष्मी तथा शंकरजी की पत्नी पार्वती के सम्मुख अनुसूया के पवित्र चरित्र की चर्चा करते हुए उन्हें संसार में सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता तथा अनुपम गुणवती स्त्री घोषित कर दिया।
तब वे सब के सब मन ही मन ईर्ष्या से भर गयी। सबों ने जाकर अपने-अपने पतियों से अनुसूया के गर्व को खण्डित करने का दुराग्रह किया। अन्ततः स्त्री हठ से विवश होकर इन त्रिदेवों को अनुसूया के पतिव्रत्य की परीक्षा लेने का निश्चय करना पड़ा और वे उनके आश्रम की ओर चल पड़े।
त्रिदेवों ने ब्राह्मण का वेश धारण किया था। वे भिक्षार्थ एक साथ ही अनुसूया के समीप पहुँचे और उनसे इच्छानुसार भोजन देने की प्रार्थना की। अनुसूया ने त्रिदेवों की प्रार्थना स्वीकार की और उनसे स्नान कर आने को कहा।
त्रिदेव स्नान कर जब भोजनार्थ आये तो अनुसूया ने भोजन परोसा किन्तु इन्होंने अनुरोध किया कि हमलोग तबतक भोजन नहीं करेंगे जबतक आप सब वस्त्रादि निकाल कर भोजन नहीं परोसेंगे।
अनुसूया ने अपनी तप के बल से उनसब की माया समझ गयी। वह भीतर चली गयी और अपने अराध्य पति का चरणोदक लाकर उन तीनों के ऊपर छिड़क दिया।
चरणोदक के पड़ते ही वे त्रिदेव बालक के समान हो गये और उनकी कलुश भावना दूर हो गयी। तब अनुसूया ने उन्हें अपने बच्चों के समान दूध पिलाया और ले जाकर अलग-अलग पालने में सुला दिया। फिर तो वे वही मजे में रहने लगे।
इधर जब बहुत दिनोंतक त्रिदेव अपने-अपने निवास स्थान को नहीं लौटे तो सावित्री, लक्ष्मी और पार्वती बहुत चिन्तित हुई। नारदजी ने उन्हें बताया कि एक दिन मैंने तीनों को अत्रि मुनि के आश्रम की ओर जाते देखा था। तीनों देवियाँ अत्रि मुनि के आश्रम में पहुँची और उन्होंने अनुसूया से पूछा कि यहाँ हमारे पति आये हैं।
अनुसूया ने पालने की ओर इशारा करते हुए कहा,- ‘हे देवियों! वही तुम्हारे पति हैं। अपने-अपने पतियों को पहचान लो।’ तीनों बच्चे एक समान थे। लक्ष्मी ने एक को देखा और विष्णु समझ उठा लिया, किन्तु वह शिव निकले। इस पर लक्ष्मी का बड़ा उपहास हुआ।
यह दशा देखकर लक्ष्मी, पार्वती और सावित्री ने हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी कि हमें अपना पति अलग-अलग लौटा दो। अनुसूया ने कहा,- ‘इन्होंने हमारा दूध पिया है।
इसलिए हमारा बच्चा बनकर रहना होगा।’ इस प्रकार तीनों के संयुक्त अंश से तीन सिर और छः भूजाओं वाले दत्तात्रेय का जन्म हुआ। इसके बाद अनुसूया ने तीनों को मुक्त कर दिया।
तीनों मुक्त होकर अपनी गलती स्वीकार की और उस गलती के लिए बाद में अनुसूया के गर्भ से ब्रह्या-सोम रूप में, विष्णु-दत्तात्रेय के रूप में, तथा शंकरजी-दुर्वासा के रूप में अनुसूया और अत्रि के घर में जन्म धारण किये।
इस पौराणिक कथा में एक सती नारी के सम्मुख ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर जैसे महान देवताओं तथा सावित्री लक्ष्मी और पार्वती जैसी देवियों के पराजय की घटना सिद्ध करती है कि हमारे देश में चरित्र की अपार महिमा है।
पतिव्रता नारी के तेज को सहन करने की शक्ति संसार में किसी में नहीं है। वह त्रैलोक्य विजयिनी है तथा उसकी कोख से भगवान् को भी अवतार धारण करना पड़ता है। इस प्रकार दत्तात्रेय जयन्ती का यह पर्व नारी तेज की इस कथा के द्वारा हमारे सम्मुख महान आदर्शों की स्थापना करता है।
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