Hindi Sort Story : आज तो किसी ने नहीं देखा … सुबह ही घर से निकलते हुए प्रकाश बार बार पीछे मुड़ कर देख रहा था। जल्दी से साईकिल के पैडल मार कर वह इस बस्ती से दूर बड़े शहर की भीड़ में खो जाना चाहता था।
शहर पहुंचते ही वह सीधा रेलवे स्टेशन के सामने फुटओवर ब्रिज पर एक कोने में खड़ा हो गया। कुछ देर इधर उधर देख कर उसने अपने बैग से एक छोटा सफेद तौलिया निकाला और जमीन पर बिछा दिया।
कंधे पर लटकाये बड़े थैले में से रुमाल, कंघा, शेविंग ब्रश, नेल कटर निकाल कर सजाने लगा। कुछ देर बाद उसने देखा सामने स्टेशन पर ट्रेन आ गई है। अब सभी उस पुल से गुजरेंगे। वह खड़ा हुआ उसने अपने रुमाल को मास्क की तरह मुंह पर बांधा सिर पर कैप लगा कर आवाज लगाना शुरू किया।
कुछ रही देर में काफी लोग पुल से गुजर रहे थे। उसमें से कुछ लोग रुक कर सामान देख रहे थे।
अरे भाई ये कंघा कितने का है … एक आदमी ने आवाज दी तो प्रकाश ने कहा दस रुपये का है …. उस आदमी ने कंघा ले लिया … चलते हुए उसने प्रकाश से कहा भाई करोना गये एक साल हो गया है अब मास्क की तरह रुमाल क्यों बांधा है।
अब प्रकाश उसे क्या बताये कि यह रुमाल उसने अपनी पहचान छिपाने के लिये लगा रखा है। गॉव में पिताजी ने बार बार बोला बेटा … गॉव में रहकर ही पढ़ ले शहर में जाकर किसी की नौकरी करने से अच्छा है अपने खेत पर काम कर लेकिन प्रकाश नहीं माना और पिता के खेत बेच कर शहर में बी.टेक करने पहुंच गया।
सारे खेत बेच कर शहर में रहकर किसी तरह बी.टेक पूरी हुई।
प्रकाश खुशी खुशी पिता के पास पहुंचा … पिताजी बी.टेक हो गई अब मैं नौकरी करके आपका सारा पैसा उतार दूंगा … पिता ने मुस्कुरा कर कहा … बेटा अगर कुछ बचाना है तो नौकर करके घर को बिकने से बचा ले … खेत तो पहले ही चले गये … दूसरे के खेत पर काम करने नहीं दे रहा … आखिर इज्जत भी कोई चीज होती है … अब तो भूखे मरने की नौबत आ गई है।
प्रकाश अगले ही दिन शहर में नौकरी ढूंढने लगा … बहुत कोशिश की लेकिन नौकरी न मिल सकी … गॉव में उसकी बहुत इज्जत थी … लड़का इंजिनियर बन गया … घर वाले न किसी से कुछ छिपा सकते न बता सकते थे।
इसी तरह कुछ दिन और बीत गये … इधर पिता भी बीमार रहने लगे … अब इंजनियरिंग का भूत उतर चुका था … प्रकाश घर से निकल आता और नौकरी की तलाश में इधर उधर भटकता रहता।
एक दिन उसने अपने दोस्त से कुछ रुपये उधार लेकर बेचने के लिये सामन खरीदा फिर एक साईकिल किसी दोस्त से मांगी और सुबह चार बजे ही साईकिल पर सामान बांध कर निकल जाता था सामान बेचने।
कहीं कोई पहचान न ले इसलिये सिर पर टोपी और मुंह पर कपड़ा बांधे रहता… गॉव के लोग रात को जल्दी सो जाते थे वह रात को यह सुनिश्चित करता कि पूरा गॉव सो गया … उसके बाद ही घर में घुसता था।
अगर बी.टेक. न की होती तो पिता के साथ खेत पर काम कर रहा होता। यही सोच कर चुपचाप खाना खा कर सो जाता।
पंद्रह घंटे मेहनत करके किसी तरह घर का खर्च चल जाता था … कहीं उस पुल पर कोई परिचित न मिल जाये … इसी डर ने उसका जीवन नर्क कर दिया था।
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