Emotional Story in Hindi : निशा – ‘‘क्या बात है सौरभ तुम्हारी आंखें क्यों नम हो गईं।’’ सौरभ के सामने की टेबल पर बैठी पत्नी निशा की बात सुनकर सौरभ ने सम्हलते हुए कहा – ‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। चलो खाना खाते हैं।’’
निशा और सौरभ बहुत दिनों के बाद आज लंच करने के लिये एक रेस्टोरेन्ट में आये थे। वहां सौरभ ने मक्के की रोटी और सरसों का साग ऑडर किया तो निशा को बहुत हैरानी हुई।
उसने सौरभ को पहले कभी ये सब खाते नहीं देखा। उसने पूछा – ‘‘क्या बात है सौरभ हमेशा पिज्जा और कोल्ड ड्रिंक ऑडर करने वाले आज ये सब ऑडर कर रहे हो।’’
सौरभ ने हसते हुए कहा – ‘‘कुछ नहीं आज खाकर देखो मजा आ जायेगा।’’ कुछ देर में वेटर खाना टेबल पर सजा गया। सौरभ ने एक कौर खाया तो उसकी आंखे नम हो गईं।
निशा के पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया बस खाना खाकर चुपचाप चल दिये। निशा को उसने इशारे से गाड़ी में बैठने के लिये कहा और पेमेंट करके ड्राईविंग सीट पर आकर बैठ गया।
गाड़ी स्टार्ट कर ही रहा था कि निशा ने पूछा – ‘‘अब तो बता दो क्या बात है आज इतने इमोशनल कैसे हो रहे थे?
सौरभ – ‘‘तुम मानोंगी नहीं तो सुनो।’’ जैसा तुम आज मुझे देखती हों मैं वैसा बिल्कुल नहीं था। यहां एमएनसी में जॉब करके मॉडर्न लुक में दिखने वाला तुम्हारा पति एक गांव के गरीब घर का लड़का है ये तो तुम जानती हों।
लेकिन वो सब छूट गया उसका दुःख मुझे आज भी है। ये कोई नहीं समझ सकता।’’
निशा ने हसते हुए कहा – ‘‘उस गांव में ऐसा क्या छूट गया एक टूटा सा मकान ही तो था। थोड़ी बहुत जमीन होगी। वहां मां पिताजी हैं तुम्हारा छोटा भाई उनका ध्यान रखता है और फिर हर महीने हम पैसे भेज तो देते हैं।’’
सौरभ ने एक फीकी हसी हसते हुए कहा – ‘‘निशा यही तो फर्क है शहर वाले और गॉव वालों में यहां हर रिश्ते को हर चीज को पैसे से तौला जाता है।
तुम्हें पता है, मां जब चूल्हे पर बाजरे और मक्का की रोटी बनाती थी साथ में कभी कभी सरसों का साग बनता था। उस स्वाद के लिये मैं तरस जाता हूं। उस स्वाद के आगे यहां के सारे स्वाद फीके हैं।’’
यह सुनकर निशा को बहुत आश्चर्य हुआ वह बोली – ‘‘ओह अच्छा तभी तुम वो मक्का की रोटी सरसों का साग देख कर इमोशनल हो गये थे। मां की याद आ गई होगी।’’
सौरभ ने कहा – ‘‘हां निशा मां के हाथ के खाने के स्वाद को कभी नहीं भूल सकता उस समय इतनी गरीबी थी, कि कभी कभी साग भी नहीं होता था तो प्याज के साथ रोटी खा लेते थे।
निशा ने उसकी बात को सुनकर बोला – ‘‘वो तो ठीक है मुझे भी अपने घर की याद आती है लेकिन अब क्या करें मैं तो यहां शहर में पली बढ़ी, मम्मी-पापा भी पास में रहते हैं। फिर भी उनसे मिलने का मन करता है।’’
चलो इस महीने के लास्ट में गांव चलते हैं। मां-पिताजी से मिल आते हैं। सौरभ ने उसकी हां में हां मिलाई और गाड़ी स्टार्ट करके घर आ गये। अगले दिन से दोंनो अपने अपने ऑफिस में बिजी हो जाते हैं। निशा भी एक आईटी कंपनी में काम करती थी।
सौरभ के पिता ने उसे अच्छे पढ़ा लिखा दिया। इधर शहर से नौकरी के ऑफर आने लगे तो दस साल पहले वह नौकरी करने शहर आ गया था। अभी तीन साल पहले निशा से शादी हो गई।
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उसके बाद तो गांव में जाना आना बहुत कम हो गया था। बस वो हर महीने कुछ पैसे भेज देता था। शायद उसे ही अपना फर्ज समझता था।
लेकिन इस महीने जब से वह रेस्टोरेंट से खाना खाकर आया जैसे उसका मन बदल गया। उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। अपनी मां का चेहरा उसकी आंखों के सामने आ जाता था। कैसे उसकी मां आज भी चूल्हा फूंक रही होगी।
घर आकर भी वह बैचेन रहने लगा। न खाना अच्छा लगता था। न किसी से बात करने का मन करता था। इतनी बड़ी कंपनी में मैंनेजर, बड़ा सा पैकेज, शहर की सबसे पॉश कॉलोनी में बड़ा सा फ्लेट।
किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी। लेकिन आज उसे यह सब फीका लग रहा था।
एक दिन उसने निशा को अपने मन की बात बता दी। सौरभ ने कहा – ‘‘निशा मैं जानता हूं तुम एक मॉर्डन लड़की हो शहर के माहौल में पली बढ़ी हों। लेकिन मैंने फैसला किया है कि मैं ये जॉब छोड़ दूंगा और अबतक जो पैसे कमाये हैं। उसमें से काफी पैसे इनवेस्ट करके गांव में जाकर रहूंगा।’’
निशा जो अब तक महीने के लॉस्ट में दो दिन के लिये गांव जाने की बात कर रही थी। अचानक यह बात सुनकर आश्चर्य चकित रह जाती है। वह बोली – ‘‘क्या बात कर रहे हो सौरभ तुम ऐसा कैसे कर सकते हो? वहां गांव में हमारा क्या फ्यूचर है।
कल हमारे बच्चे होंगे तो वहां एक अच्छा स्कूल तक नहीं मिलेगा। तुम इतनी अच्छी जॉब सब कुछ दांव पर कैसे लगा सकते हो? मेरा क्या होगा मैं गांव में कैसे रहूंगी।’’
सौरभ बोला – ‘‘मैं तुम्हें फोर्स नहीं कर रहा तुम अपनी जॉब करती रहो मैं कभी कभी तुमसे मिलने आ जाया करूंगा। लेकिन अब मैं अपना जीवन पैसे के पीछे भागने में नहीं लगा सकता। तुम सोचो अभी कोई जल्दी नहीं है।’’
अचानक आये इस तूफाने के कारण निशा बहुत परेशान हो जाती है। वह सौरभ के बिना रहने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी।
निशा ने अपने मम्मी-पापा से बात की। उन्होंने भी सौरभ को समझाया। लेकिन सब बेकार हो गया। सौरभ का मन शहर की भाग दौड़ से उब चुका था। वह गांव में रहकर कुछ करना चाहता था। थोड़ा कमा कर संतुष्ट रहना चाहता था।
सारी कोशिशों के बाद निशा ने सौरभ से कहा – ‘‘सौरभ मैं एक बार गांव जाकर सासु जी और ससुर जी से बात करना चाहती हूं। शायद उनके समझाने से आप मान जायें। इस घर को बचाने की यह आखिरी कोशिश में करना चाहती हूं।’’
महीने के लॉस्ट में दोंनो गांव पहुंच जाते हैं। मां-पिता से मिलकर सौरभ रोने लगता है। निशा यह देख कर इमोशनल हो जाती है। रात के खाने के समय सौरभ की मां राधिक जी पूछती हैं- ‘‘बेटा क्या खाना बनाउं?’’
सौरभ वही मक्के की रोटी और सरसों के साग की फरमाईश करता है। राधिका जी चूल्हा जला कर गर्म गर्म रोट्यिां सेकने लगती है। सौरभ अपने पिता और भाई के साथ बैठ कर चूल्हे की रोटी खाने लगता है।
वह बहुत संतोष महसूस करता है। अभी तो सौरभ और निशा ने बात नहीं की थी।
रात के खाने के बाद सौरभ और निशा ने राधिका जी और पिता जी के सामने अपनी बात रखी। यह सुनकर राधिक जी ने कहा – ‘‘बेटा जब तू शहर जाने की जिद करता था, तो हम चाहते थे, कि तू न जाये, लेकिन आज दस साल बाद तू वापस आना चाहता है तो मुझे बहुत खुशी होगी, लेकिन एक बात यह भी है कि तुम्हारी और हमारी जिन्दगी में बहुत फर्क आ चुका है।
जहां तुम पहुंच चुके हो वहां से एक रास्ता गांव आता है लेकिन अपने घर परिवार को दांव पर लगा कर नहीं।
जीवन में तुम्हारी जिम्मेदारी निशा के लिये ज्यादा है। माता पिता कल नहीं होंगे। कल तुम अगर अलग अलग हो गये। आने वाले सालों में हम नहीं होंगे फिर तू अकेला रहेगा क्या।’’
यह सुनकर सौरभ कुछ बोल नहीं सका – लेकिन निशा रो रही थी। वह बोली – ‘‘मांजी मैं भी चाहती हूं कि ये आपके साथ रहें, लेकिन सब कुछ छोड़ कर यहां आना क्या ठीक होगा।’’
यह सुनकर राधिका जी उसे चुप करवाती हैं – ‘‘बेटा सौरभ मां का चूल्हा हमेशा तेरा इंतजार करता रहेगा। जब भी तू गांव आयेगा तुझे वही रोटी खाने को मिलेगी। लेकिन उसके लिये अपने घर के चूल्हे को बुझा देना कोई समझदारी नहीं है।’’
सौरभ बोला – ‘‘मां मुझे लगता है मुझे आपके साथ रहना चाहिये। मां-बाप को छोड़ कर तरक्की करने का क्या लाभ।’’
यह सुनकर राधिका जी ने कहा – ‘‘बेटा कुछ चीजों का समय निकल जाता है। जब हमें तुझे गांव में रखना चाहते थे, उस समय तू मान जाता यहीं कुछ कर लेता यहीं की लड़की से शादी कर लेता तो सब ठीक था।
लेकिन अब यह सब करना गलत होगा। मैं तुझे आने से मना नहीं करना चाहती लेकिन पत्नी को छोड़ देना मैं कभी बर्दास्त नहीं कर सकती।
सौरभ के पिता ने भी सख्त लहजे में सौरभ को गांव आने के लिये मना कर दिया।
सौरभ को अब समझ आ चुका था कि अब गांव उसका नहीं रहा। वह गांव में केवल मेहमान बनकर आ सकता है।
अगले दिन सौरभ, निशा के साथ वापस आ जाता है। रास्ते भर कोई बात नहीं होती इधर निशा परेशान थी कि पता नहीं सौरभ क्या फैसला करेगा।
घर पहुंच कर सौरभ ने निशा से कहा – ‘‘निशा मैं गलत था। मैं भावना में बह गया था। अब से मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा। शायद मेरे लिये मां का चूल्हा अब ठंडा हो चुका है।
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