भोली लड़की | Desi Kahani in Hindi

Desi Kahani in Hindi

Desi Kahani in Hindi : गांव के एक छोटे से घर में सुधा अपने माता पिता के साथ रहती थी। सुधा के पिता किसान थे। उनके पास एक खेत था।

जिसमें वे खेती किया करते थे। सुधा गांव के बच्चों को पढ़ाती थी। जिससे उसे कुछ पैसे मिल जाते थे। इधर गांव में कभी सूखा पड़ जाता था। कभी बाढ़ आ जाती थी। जिससे फसलें नष्ट हो जाती थीं। कभी कभी तो भूखे मरने की नौबत आ जाती थी।

ऐसे में सुधा अपने परिवार को लेकर बहुत परेशान रहती थी। इधर उसके माता पिता उसकी शादी को लेकर बहुत परेशान रहते थे।

सुधा की एक सहेली थी। सपना वह अच्छे सम्पन्न परिवार से थी। उसके पिता ने उसे पढ़ने के लिये शहर भेज दिया। एक बार सपना छुट्ट्यिों में गांव आई –

‘‘सुधा तू इतनी परेशानी उठा रही है तू मेरे साथ शहर चल वहां तुझे मैं नौकरी दिलवा दूंगी। मजे से रहना। घर भी पैसे भेज देना।’’

सुधा ने ध्यान से उसकी बात सुनी बात उसे समझ आ रही थी वैसे भी वह दिन रात परेशान रहती थी, कि अपने परिवार की मदद कैसे करे। सुधा बोली – ‘‘ठीक है मैं पिताजी से बात करके देखती हूं।’’

इस पर सपना ने कहा – ‘‘अरे तू चिंता मत कर मैं अपने पापा से कह दूंगी वो चाचा से बात कर लेंगे। तू मेरे साथ रहेगी तो किसी को तेरी फिक्र भी नहीं होगी।’’

उसी दिन शाम को सुधा ने बात की लेकिन उसके पिता ने मना कर दिया। सुधा बोली – ‘‘पिताजी कब तक यहां भूखे मरते रहेंगे। यहां कुछ नहीं रखा है मुझे जाने दीजिये अगर अच्छी सी नौकरी लग गई तो मैं आपको भी बुला लूंगी।’’

पिताजी बोले – ‘‘नहीं नहीं अब हम तेरी कमाई पर जिन्दा रहेंगे क्या?’’

यह सुनकर सुधा ने कहा – ‘‘इसमें मेरी कमाई की बात कहां से आ गई कुछ दिन की बात है थोड़े पैसे इकट्ठे हो जायें तो आप भी कुछ काम शुरू कर लेना वहां तो छोटी सी रेहड़ी पर सामान बेच कर भी अच्छे पैसे कमाये जा सकते हैं।’’

कुछ ही देर में सपना के पापा भी आ गये वे पढ़े लिये समझदार आदमी थे। उन्होंने सुधा के माता पिता को समझाया तो वे सुधा को शहर भेजने के लिये राजी हो गये।

एक सप्ताह बाद दोंनो सहेलियां शहर आ गईं। सुधा ने कुछ पैसे जोड़ रखे थे। जिससे कुछ दिन काम चल गया। इसी बीच सुधा को एक नौकरी मिल गई। वह ऑफिस जाने लगी। पढ़ी लिखी तो वह थी, लेकिन शहर के तौर तरीके उसे नहीं आते थे। इसलिये वह हमेशा चुपचाप अपने काम में लगी रहती थी।

सुधा का ऑफिस वह घर जिसमें सुधा, सपना के साथ रहती थी। बहुत दूर था। बस से जाने आने में उसे दो घंटे लग जाते थे। शाम को ऑफिस से निकल कर घर आते आते उसे रात हो जाती थी। रात को आवारा लड़के इधर उधर घूमते थे। जिनसे बचते बचाते वह घर पहुंचती थी।

एक दिन सुधा ऑफिस के बाद बस स्टेंड की ओर जा रही थी। तभी पीछे से एक बाईक पर महेश उसके पास आकर रुका। महेश उसके ही ऑफिस में काम करता था और कभी कभी काम में सुधा की मदद भी कर दिया करता था।

वह बोला – ‘‘सुधा घर जा रही हों लेकिन आज तो बसों की हड़ताल है। दोपहर को यहां बस से किसी का एक्सीडेंट हो गया था। पब्लिक ने बस फूंक दी तब से सारे बस वाले हड़ताल पर चले गये।’’

यह सुनकर सुधा डर गई अब वह घर कैसे जायेगी। वह इधर उधर ऑटो ढूंढने लगी लेकिन जो भी ऑटो आ रहा था वह पहले से भरा हुआ था। तब महेश ने कहा – ‘‘सुधा बैठो मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं। बस न होने के कारण आटो पहले से ही भरे हुए आ रहे हैं।’’

सुधा डरते डरते महेश की बाईक पर बैठ गई। कुछ ही देर में दोंनो घर पहुंच गये। सुधा ने महेश से कहा – ‘‘आपका बहुत बहुत धन्यवाद आज आप नहीं होते तो पता नहीं क्या होता।’’

महेश बोला – ‘‘मैं यहां पास ही में रहता हूं और रोज इसी रास्ते से जाता हूं। अगर तुम्हें बुरा न लगे तो मेरे साथ चला करो जाना तो हमें एक ही जगह है फिर बसो में धक्के खाने का क्या फायदा।’’

सुधा झेपते हुए बोली – ‘‘नहीं आप क्यों परेशान हो रहे हैं मैं चली जाउंगी।’’

महेश ने मुस्कुराते हुए कहा – ‘‘अच्छा बाबा तुम्हारा आत्मसम्मान आड़े आ रहा है तो कभी कभी बाईक में पेट्रोल भरवा देना या कभी कभी चाय पिला देना।’’

फिर उसने सीरियस होते हुए कहा – ‘‘देखो सुबह की तो कोई बात नहीं लेकिन रात को यहां गुंडागर्दी शुरू हो जाती है। अन्जान शहर हो तुम अकेली हो अपनी सेफ्टी के बारे में सोचो।’’

सुधा हां कर देती है और मुड़ कर अपने फ्लेट की ओर चल देती है। रात को सुधा सपना को सारी बातें बताती है तो सपना कहती है – ‘‘सुधा अपनी गांव की सोच से बाहर निकल कर दुनिया देख अच्छा खासा दोस्त मिल रहा है। शहरों में यह सब आम बात है। यहां कोई टोकने थोड़े आ रहा है।’’

अगले दिन से सुधा, महेश के साथ ऑफिस जाने लगी धीरे धीरे उनकी नजदीकियां बढ़ने लगीं। दोंनो को एक दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा। ऑफिस से निकल कर दोंनो इधर उधर घूमते। साथ में काफी पीते बातें करते फिर महेश सुधा को घर छोड़ देता था।

समय जैसे पंख लगा कर उड़ रहा था। एक दिन सुधा जब घर पहुंची तो देखा उसके पिताजी बैठे थे।

‘‘अरे पिताजी आप कब आये?’’

पिताजी बोले – ‘‘बस बेटा तुझे बहुत समय से देखा नहीं था। इसलिये चला आया। कैसी है तू? और इतनी देर से घर आती है।’’

सुधा को लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई वह बोली – ‘‘बाबा शहर में ऐसा ही होता है नौकरी में बहुत काम करना पड़ता है आते आते रात हो जाती है।’’

पिताजी ने चिंता जताते हुए कहा – ‘‘बेटा देख ले नहीं तो घर चल वहां भी तो खर्चा चल ही रहा था। तुझे परेशान देख कर बहुत तकलीफ होती है। तेरी मां भी बहुत परेशान रहती है।’’

यह सुनकर सुधा सकपका गई वह बोली – ‘‘नहीं पिताजी आप परेशान न हों मैं बहुत मजे में हूं। यहां रहना मुझे बहुत अच्छा लग रहा है और मैंने काफी पैसे भी जोड़ लिये हैं कल मैं बैंक से निकाल कर आपको दे दूंगी आप ले जाना।’’

यह सुनकर उसके पिता बोले – ‘‘नहीं बेटा हम तेरी कमाई कैसे ले सकते हैं तू अपने पास ही रख पर जब भी तू परेशान हो घर आ जाना।’’

अगले दिन सुबह होते ही उसके पिता गांव चले गये। उस दिन सुधा को थोड़ा डर तो लग रहा था। कि कहीं उसकी चोरी पकड़ी न जाये क्योंकि वह महेश के प्यार में पड़ चुकी थी, और गांव में यह सब बहुत बुरा माना जाता है।

महेश उसे लेने आया तो वह उसके साथ ऑफिस के लिये निकल गई। रास्ते में उसने सारी बात बता दी। वह महेश से कुछ नहीं छुपाना चाहती थी।

यह सुनकर महेश हसने लगा वह बोला – ‘‘पगली बस इतनी सी बात बात इसमें डरने की क्या बात है। हम एक दूसरे से प्यार करते हैं कोई गुनाह नहीं किया मैं कुछ दिनों में गांव जाकर तुम्हारे माता पिता से मिल लूंगा।’’

सुधा बोली – ‘‘नहीं नहीं ऐसा मत करना पहले मौका देख कर मैं बात करूंगी।

इसी तरह समय पंख लगा कर उड़ रहा था। महेश के साथ रहते रहते सुधा के तौर तरीके बदल गये थे। अब वह गांव की भोली सी लड़की नहीं शहर की तेज तरार लड़की बन चुकी थी।

सुधा ने काफी पैसे इकट्ठे कर लिये थे। इस बार उसने सोचा क्यों न दिवाली पर मां-पिताजी से मिल आउं। वह ऑफिस से छुट्टी लेकर गांव के लिये निकल गई मां-पिताजी के लिये उसने कपड़े खरीदे शहर से बढ़िया सी मिठाई ली और गांव पहुंच गई।

अचानक बेटी को देख कर सुधा की मां बहुत खुश हुई उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। दोंनो मां बेटी घंटो बातें करती रहीं। फिर उसकी मां उसकी पसंद का खाना बनाने चली गईं। शाम तक उसके पिताजी भी खेत से आ गये थे। सुधा को देख कर वे बहुत खुश हुए, लेकिन जैसे जैसे सुधा उनसे बात कर रही थी उन्हें एहसास हो रहा था कि यह वो सुधा नहीं है जो गांव से शहर गई थी।

अब वह केवल पैसों की बातें करती थी। शहर की चमक दमक की बातें। उसे अब उसके माता पिता बेकार नजर आ रहे थे। सुधा के पिता उसकी बातों को सुनकर असहज महसूस कर रहे थे।

दो दिन बात दिवाली थी। सबने मिल कर दिवाली मनाई। लेकिन सुधा के पिता अपनी बेटी के व्यवहार से खुश नहीं थे। उन्हें लग रहा था। कि अब वह उनकी बेटी नहीं रही।

दिवाली के अगले दिन सुधा अपनी मां के साथ बैठी थी – ‘‘मां कल मैं चली जाउंगी मेरी छुट्टी खत्म हो रही हैं। आपसे एक बात करनी थी। मां मैं एक लड़के से प्यार करती हूं हम दोंनो शादी करना चाहते हैं। आप पिताजी से बात कर लीजिये।’’

‘‘बेटी यह तू क्या कह रही है तेरे पिता सुनेंगे तो बहुत गुस्सा करेंगे। यह सुनकर सुधा बोली – ‘‘मां यह सत्य है आप दोंनो को मानना ही पड़ेगी अब में किसी गांव के लड़के से शादी करके यहां तो रह नहीं सकती। आप मान जाओ तो अच्छा है वरना शादी तो हम वैसे भी कर लेंगे।’’

अपनी बेटी अब पराई सी लगने लगी थी। शाम को सुधा की मां ने उसके पिता को सारी बात बता दी। यह सुनकर उसके पिता बहुत गुस्सा हुए – ‘‘इसी दिन के लिये मैंने तुझे शहर भेजा था कि तू हमारी नाक कटवा दे। यह रिश्ता नहीं हो सकता और न तुझे अब शहर जाने की जरूरत है। मैं कोई ढंग का लड़का देख कर तेरी शादी करा दूंगा।’’

सुधा बोली – ‘‘देखिये पिताजी मैं शादी करूंगी तो महेश से ही करूंगी। मैं आपको शादी का निमंत्रण भेज दूंगी मन करे तो आशीर्वाद देने आ जाना।’’

सुधा की बात सुनकर उसके माता पिता आश्चर्यचकित रह गये। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। सुधा की मां ने कहा – ‘‘सुनों जी अभी आप गुस्से में हो वो भी उल्टे जबाब दे रही है। सुबह बात कर लेंगे।’’

रात भर दोंनो करवटें बदलते रहे। उनकी आंखों से नींद उड़ चुकी थी। सुबह जब दोंनो उठे तो देखा सुधा एक चिट्ठी छोड़ कर चली गई है। उसमें लिखा था – ‘‘पिताजी मैं इस गांव और यहां के दकियानूसी विचारों को छोड़ कर जा रही हूं। शादी का कार्ड भिजवा दूंगी। आपका मन हो तो आ जाना आशीर्वाद देने।’’

सुधा को अब किसी की परवाह नहीं थी। वह शहर पहुंच गई अगले दिन सुबह वह ऑफिस जाने के लिये तैयार हुई उसे आज महेश को सारी बातें बतानी थीं।

वह महेश का इंतजार कर रही थी। लेकिन वह नहीं आया। न ही सुधा का फोन उठा रहा था। सुधा ऑफिस पहुंची तो भी महेश ने उससे बात नहीं की। वह बहुत परेशान थी। लंच में उसने महेश को रोक लिया –

‘‘क्या बात है तुम मुझसे बात क्यों नहीं कर रहे हो?’’

महेश बोला – ‘‘सुधा अब मेरे तुम्हारे रास्ते अलग अलग हैं मैंने शादी का फैसला कर लिया है मेरा रिश्ता पक्का हो गया। है।’’

यह सुनकर सुधा के पैरों तले जमीन खिसक गई – ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो हम दोंनो शादी करने वाले थे?’’

महेश ने कहा – ‘‘मैंने अपने पापा से बात की थी लेकिन वो नहीं माने और मेरा जिस जगह रिश्ता पक्का किया है वे करोड़पति हैं उनकी इकलौती लड़की है। मैं तो इस ऑफिस से भी रिजाईन दे रहा हूं। शादी के बाद मुझे ही उनका सारा बिजनेस संभालना है और तुमसे शादी करके मुझे क्या मिलता हम दोंनों जिन्दगी भर इसी ऑफिस में घिसते रहते एक एक चीज के लिये तरसते रहते हो सके तो मुझे भूल जाओ।’’

सुधा वहां से उठ कर सीधे अपने बॉस के केबिन में गई और बोली – ‘‘सर मेरी तबियत ठीक नहीं है मुझे हाफ डे चाहिये।’’ उसके बॉस ने उसे छुट्टी दे दी वह अपना बैग उठा कर ऑटो लेकर अपने फ्लेट पर आ गई। आते ही बिस्तर पर लेट गई उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे – ‘‘मेरे साथ ठीक ही हुआ मैंने अपने माता पिता को धोखा दिया बदले में मुझे तो धोखा मिलना ही था। अब किस मुंह से गांव जाउं। मन कर रहा है आत्महत्या कर लूं।’’

शाम को उसने सपना को सारी बात बता दी। सपना समझ गई कि परिस्थिती बहुत नाजुक है सुधा कुछ गलत कदम न उठा ले इसलिये उसने कहा – ‘‘माता पिता आखिर माता पिता ही होते हैं वे तुझे माफ कर देंगे कल सुबह हम दोंनो गांव चलेंगे।’’

सुधा मना करती रही लेकिन सपना उसे लेकर गांव पहुंच गई। घर पहुंचते पहुंचते शाम हो गई थी। सुधा सपना के साथ अपने घर पहुंची। आंगन में उसके माता पिता एक चारपाई पर बैठे थे। सुधा जाते ही अपने पिता के पैरों में गिर गई – ‘‘पिताजी मुझे माफ कर दीजिये मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई मैंने आपके सपनों को तोड़ा आपको धोखा दिया उससे बड़ा धोखा मुझे भी मिला। अब मैं कभी शहर नहीं जाउंगी। जहां आप मेरी शादी करेंगे मैं कर लूंगी।’’

सुधा के पिता ने उसे उठाया और गले से लगा लिया – ‘‘बेटा सब भूल जा जो बीत गया उस पर पछतावा करने की जरूरत नहीं। मेरी बेटी मुझे वापस मिल गई इससे बड़ी कोई बात नहीं है।’’

इस तरह गांव की भोली लड़की अपने घर वापस आ गई।