बेटी का नसीब | Desi Kahani Destiny of Daughter

Desi Kahani Destiny of Daughter
Desi Kahani Destiny of Daughter

Desi Kahani Destiny of Daughter : लाजो गांव के कुए से पानी भर कर घर की ओर जा रही थी। रास्ते में उसे दूर से एक बुर्जुग आते दिखे। जब वे पास आये तो उन्होंने कहा – ‘‘बेटी मुझे थोड़ा सा पानी पिला दो।’’

लाजो ने कहा – ‘‘हां हां बाबा क्यों नहीं ये लीजिये पानी पीजिये।’’ यह कहकर उसने पानी का घड़ा हाथ में लेकर उन्हें पानी पिला दिया। पानी पीकर बुजुर्ग ने उसका धन्यवाद दिया और आगे चल दिये।

कुछ देर बाद लाजो घर पहुंची तो देखा। वे बुजुर्ग और उसके पिता खाट पर बैठे थे।

रामधन जी जो कि लाजो के पिता थे। रत्नलाल उनके ही पुराने दोस्त थे, जो कि दूसरे गांव में रहते थे। कई साल बाद वे रामधन से मिलने आये थे।

रामधन जी ने जैसे लाजो को देख वे बोले – ‘‘ले भई रत्नलाल आ गई मेरी बेटी। इसी के बारे में पूछ रहा था न, बहुत ही होशियार बच्ची है। बस मेरी गरीबी और इसकी मां के न रहने के कारण इससे इसका बचपन छिन गया। आ बेटा ये तेरे चाचा हैं। मेरे बचपन के दोस्त।’’

लाजो कुछ बोलती उससे पहले ही रत्नलाल जी ने कहा – ‘‘भाई रामधन तेरी बेटी बहुत संस्कारों वाली है। आज कुएं पर इसने ही मुझे पानी पिलाया था और कोई होता तो पहले मेरी जात पात पूछता फिर कहीं जाकर पानी पिलाता। तेरी बेटी बहुत परोपकारी है।’’

अपनी तारीफ सुनकर लाजो शर्मा कर अन्दर चली गई। तभी रामधन ने आवाज लगाई – ‘‘बेटी अपने चाचा के लिये कुछ मीठा ले आ।’’

रत्नलाल जी ने उसे रोकते हुए कहा – ‘‘भाई मुंह बाद में मीठा कर लेंगे। पहले मैं जिस काम से आया हूं, वो तो सुन ले।’’

‘‘हां भाई बोल क्या बात है? घर में सब ठीक तो है न?’’ रामधन की बात सुनकर रत्नलाल ने गंभीर होते हुए कहा –

‘‘भाई मैं अपने बड़े बेटे के लिये तेरी बेटी का हाथ मांगना चाहता हूं। अब इस दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल देते हैं।’’

यह सुनकर रामधन बहुत खुश हुआ। उसने कहा – ‘‘बात तो तेरी ठीक है। अगर तेरा बेटा है तो मैं तैयार हूं। लेकिन भाई मेरी हैसियत तो तू जानता ही है। जहां तक मुझे पता है। तेरा तो शहर में बहुत बड़ा कारोबार है। कहां मैं कहां तू।’’

रत्नलाल जी ने कहा – ‘‘पैसा की तू चिन्ता मत कर मेरे बेटे के लिये कई बड़े घरों से रिश्ते आये, लेकिन मैं एक ऐसे बच्चे को अपने घर की बहु बनाना चाहता था, जिसमें संस्कार हों। वो मैंने तेरी बेटी के अन्दर देख लिये। तू बस हां कर दे बाकी सब कुछ मेरे पर छोड़ दे।’’

रत्नलाल जी की बातें सुनकर रामधन ने तुरन्त हां कर दी। ऐसा घर बैठे रिश्ता आये तो कोई भी मना नहीं कर सकता है।

किवाड़ की ओट से लाजो यह सब सुन रही थी।

रत्नलाल जी ने आगे कहना शुरू किया – ‘‘हां ये बात हुई न खुशी की। अब जल्दी से मिठाई मंगा। अब मजा आयेगा मुंह मीठा करने में।’’

रामधन के आवाज लगाने पर लाजो शर्माते हुए मिठाई की प्लेट लेकर आ गई। रामधन ने कहा – ‘‘बेटी आज से ये तेरे ससुर हैं। इनके पैर छू।’’

लाजो जल्दी से पैर छूकर वापस चली गई। उसके जाने के बाद रत्नलाल जी ने कहा – ‘‘भाई मेरा बड़ा बेटा सत्यम मेरा शहर का कारोबार संभालता है और छोटा बेटा वंश गांव में खेती देखता है। मैंने उससे सत्यम से शादी के बारे में पूछा तो वो बोला पिताजी आप अपने आप देख कर मेरी शादी कर दो।’’

रामधन बोला – ‘‘हां भाई बड़े नसीब से मिलती है ऐसी सन्तान, जो माता पिता का सम्मान करे। मेरे तो भाग खुल गये, मैं तो हमेशा इसी चिन्ता में रहता था, कि इस बिन मां की गरीब बच्ची को कौन अपनायेगा।’’

रत्नलाल जी बोले – ‘‘बस अब तू चिन्ता मत कर मैं शादी का सारा इंतजाम कर लूंगा। अच्छा अब मैं चलता हूं।’’

रत्नलाल जी अपने घर के लिये निकल गये। उनके जाने के बाद रामधन ने घर में जाकर लाजो से पूछा – ‘‘बेटी तू खुश तो है न इस रिश्ते से।’’

लाजो बोली – ‘‘पिताजी मेरे जाने के बाद आपका ध्यान कौन रखेगा। मुझे नहीं करनी शादी।’’

रामधन बोला – ‘‘बेटी ऐसा न बोल मैं अपना ध्यान रख लूंगा। बड़े नसीब से ऐसा रिश्ता मिला है। रत्नलाल को मैं बचपन से जानता हूं उसके घर में तुझे कोई परेशानी नहीं होगी।’’

कुछ दिन बाद पास के गांव से दो लोग आये और रामधन को शादी का शुभ मुहुर्त बता कर चले गये। उन्हें रत्नलाल जी ने भेजा था। अब रामधन शादी की तैयारियों में जुट गया।

इसी तरह कुछ दिन बीत गये। रामधन ने अपना खेत गिरवीं रख कर बेटी की शादी की तैयारियां पूरी कर लीं थीं। शादी से एक सप्ताह पहले एक दिन रामधन अपने समधी से मिलने उनके गांव पहुंच गया।

रत्नलाल जी ने उसे देख कर गले लगा लिया। उन्होंने अपने परिवार से मिलवाया अपने होने वाले दामाद सत्यम से मिल कर रामधन बहुत खुश हुआ। रत्नलाल जी ने कहा – ‘‘भाई तू यहां आया है जरूर कोई बात है। बता क्या बात है।’’

रामधन हाथ जोड़ कर बोला – ‘‘नहीं भाई मैं तो बस ये बताने आया था, कि मैंने शादी की सारी तैयारियां कर ली हैं। आप एक बार आकर देख लो कुछ कमी लगे तो बता देना जिससे आपके मेहमानों के सामने आपको शर्मिन्दा न होना पड़े।’’

रत्नलाल जी ने कहा – ‘‘हां हां मुझे पता है। तेरे पास एक ही खेत था। तूने वो भी गिरवीं रख दिया। उसी पैसे से सारी तैयारियां की हैं। तुझे मुझ पर विश्वास नहीं था। जब मैंने कह दिया था मैं शादी की तैयारी कर लूंगा, फिर तूने ये सब क्यों किया।’’

रामधन आश्चर्य में पड़ गया वह बोला – ‘‘माफ करना भाई लेकिन बेटी की शादी के लिये कुछ तो मुझे भी करना चाहिये।’’

रामधन यह कह कर रोने लगा उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। तभी रत्नलाल जी ने अपने छोटे बेटे वंश को बुलाया और इशारे से कुछ समझाया।

कुछ देर बाद रत्नलाल जी ने रामधन के कंधे पर हाथ रखा। रामधन सिर झुकाये शर्मिन्दा हुआ बैठा था। रत्नलाल जी ने कहा – ‘‘ले भाई अपनी अमानत, दुबारा फिर कभी ऐसा मत करना।’’ यह कहकर उन्होंने खेतों के कागज रामधन के हाथ में रख दिये।

रामधन ने देखा – ‘‘अरे ये क्या ये तो वही कागज हैं तो मैंने गिरवी रखे थे। ये आपके पास कैसे आये।’’

रत्नलाल जी ने कहा – ‘‘वंश आस पास के गांव के सभी लोगों को जानता है। उनमें से ही एक ने खेत गिरवीं रखने वाली बात हमें बता दी। वही यह कागज छुड़ा कर लाया है।’’

रामधन की आंखों से आंसू बह रहे थे। रत्नलाल जी ने उसे गले लगा लिया और बोला – ‘‘भाई खेत ही गिरवीं रख देगा तो कर्ज कहां से चुकायेगा और खायेगा क्या। आगे से ऐसा कुछ मत करना मैं अपनी बेटी लेने आउंगा। बस तू मिठाई बढ़िया सी बनवाना।’’

यह सुनकर सब लोग हस पड़े। रत्नलाल जी ने आवाज लगाई – ‘‘वंश’’

वंश ने पचास हजार रुपये लाकर अपने पिता के हाथ में रख दिये।

रत्नलाल जी ने कहा – ‘‘ले भाई शादी की तैयारियां कर और वंश इन्हें घर छोड़ आ। और हां सुन भाई कल हम चार पांच आदमियों को तेरे घर भेज देंगे, वो सारा काम संभाल लेंगे। बस तू चिन्ता मत करना।’’

रामधन कुछ बोल नहीं पा रहा था उसके मुंह से बस इतना ही निकला – ‘‘मेरी बेटी के नसीब खुल गये।’’

यह कहते ही वह कुर्सी पर बैठे बैठे लुढ़क गया। इतनी खुशी बर्दाशत नहीं कर पाया। उसने अपने प्राण त्याग दिये।

रत्नलाल जी उसे संभालते इससे पहले ही वह दुनिया छोड़ चुका था।

रत्नलाल जी अपने दोस्त से लिपट कर रोते रहे। वे अपने दोस्त की अंतिम यात्रा लेकर उसके गांव पहुंचे। लाजो को जब यह पता लगा वह रोते रोते बेहोश हो गइ। रामधन का अंतिम संस्कार किया गया।

रत्नलाल जी अपने परिवार के साथ वहीं रुक गये। तेहरवीं के एक सप्ताह बाद उन्होंने सादा तरीके से सत्यम और लाजो की शादी एक मन्दिर में करवा दी।

लाजो के चमकते नसीब की खुशी में रामधन अपना जीवन जीना भूल गया था।

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Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.