Veshno Devi ki Kahani : रामपुर गॉव में कर्मवीर नाम का एक किसान रहता था। वह बहुत सीधा सादा था। उसकी पत्नी भागवन्ती बहुत तेज स्वभाव की थी।
कर्मवीर दिन रात मेहनत करके जितना भी कमाता था वह उसमें खुश नहीं होती थी और हमेशा उससे झगड़ा करती रहती थी।
कर्मवीर माँ भगवती का भक्त था। वह दिन रात पूजा पाठ किया करता था। उसकी पत्नि भागवन्ती भगवान में बिल्कुल विश्वास नहीं रखती थी।
एक दिन कर्मवीर का रास्ते में उसका बचपन का मित्र मिला कर्मवीर उससे बातें करने बैठ गया बातोें बातों में कर्मवीर ने अपनी पत्नि के बारे में उसे बताया तब उसके मित्र ने कहा
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“तुम दोंनों माँ वैष्णों देवी के दर्शन करने जाओं। मॉं के दर्शन करने से सारे बिगड़े काम बन जाते हैं। वैष्णों माता की कृपा से तुम्हारे घर के क्लेश भी मिट जायेंगे।”
कर्मवीर ने घर जाकर यह बात अपनी पत्नि को बताई
तब भागवन्ति ने कहा “मुझे कहीं नहीं जाना है। तुम्हें जाना है तो जाओ पर मुझे बहुत से पैसे देकर जाना”
कर्मवीर चुप रह गया
कुछ दिन और बीत गये। कर्मवीर के मन में माँ वैष्णों देवी के दर्शन करने की इच्छा प्रबल हो रही थी। लेकिन भागवन्ति को कैसे मनाये उसकी समझ में नहीं आ रहा था।
एक दिन जब कर्मवीर खेत पर गया हुआ था। तो उसके घर भागवन्ति खाना बना रही थी। तभी उसके घर के बाहर एक साधु बाबा आये। उन्होंने आवाज लगाई उनकी आवाज सुन कर भागवन्ति बाहर आई तो देखा साधू बाबा खड़े हैं।
उन्होंने कहा “माई भिक्षा दो मैं बहुत भूखा हूं” तब भागवन्ति ने कहा “मैं तुम्हें कुछ नहीं दूंगी यहां से चले जाओ इतनी मेहनत से मैंने खाना बनाया और वह तुम्हें खिला दूं? कहीं और जाकर भिक्षा मांगो”
तब साधू बाबा ने कहा “बेटी मैं माँ वैष्णों देवी के दर्शन करके आया हूं। और वहां से एक अनमोल शिला लाया हूं। यदि तुम मुझे खाना खिलओंगी तो बदले मैं में तुम्हें वह जादूई पत्थर दूंगा जिसकी यदि तुम रोज पूजा करोंगी तो एक महीने बाद वे सोने का हो जायेगा।”
भागवन्ति ने लालच में साधू बाबा को बैठाया उन्हें अच्छी तरह भोजन कराया। इसके बाद साधू बाबा ने झोले में से निकाल कर एक पत्थर दिया और कहा।
“इस पत्थर की दिन रात पूजा करना जैसे तुम्हारा पति मॉं भगवती की पूजा करता है उसी तरह इसकी सेवा करना इन्हें मॉं भगवती समझ कर मॉं को भोग लगाना। उन्हें नये नये वस्त्र पहनाना एक महीने बाद तुम्हें इसका फल अवश्य मिलेगा।”
यह कहकर साधू बाबा चले गये। शाम को जब कर्मवीर खेत से आया तो देखा। भागवन्ति पूजा कर रही है। उसके पूछने पर भागवन्ति ने सारी बात बता दी। कर्मवीर ने कहा “यदि तुम सच्चे मन से इस शिला में मॉं भगवती का रूप देखो बिना लालच के उनकी पूजा करो तो वे सदैव तुम्हारे साथ रहेंगी”
भागवन्ति ने कहा “मुझे इस पत्थर की केवल एक महीने पूजा करनी है एक महीने इसकी सेवा करने से यह सोने का हो जायेगा और इसे बेच कर हम बहुत अमीर हो जायेंगे।
कर्मवीर चुप रह गया। अब भागवन्ति दिन रात उस शिला को माँ भगवती मान कर पूजा करने लगी। एक सप्ताह होने पर भागवन्ति को बहुत गुस्सा आने लगा वह सोचने लगी। “मैंने आज तक कभी अपने पति की सेवा नहीं की अब इस पत्थर की सेवा करनी पड़ रही है। इतना काम मुझसे नहीं हो पायेगा।
मन करता है इसे उठा कर बाहर फैंक दूं पर शायद तीन हफ्ते मेहनत और करके यह सोने का बन जाये, यही सोच कर वह दिन रात सेवा में लग गई।
जैसे जैसे दिन बीत रहे थे। उस शिला की सेवा करते करते भागवन्ति को उसमें मॉं भगवती का रूप नजर आने लगा। उसके मन से लालच की जगह भक्ति जागने लगी वह उस शिला को मॉं भगवती मान कर पूजा करती रही। अब उसका स्वभाव भी बदलने लगा था। वह कर्मवीर से झगड़ा नहीं करती बल्कि उसकी सेवा करती थी।
कर्मवीर बहुत खुश था। कि उसकी पत्नि का स्वभाव बदल रहा है। परन्तु उसे डर भी था कि एक महीने बाद वह पहले जैसी हो जायेगी। इसी तरह एक महीना बीत गया। आज वही दिन साधू बाबा ने जिस दिन पत्थर का सोने में बदलने के लिए कहा था।
भागवन्ति ने नित्य की तरह पूजा की मॉं की शिला को भोग लगाया। पूरा दिन बीत गया शाम को जब कर्मवीर घर आया तो उसने भागवन्ति से कहा
“आज तुम्हारी पूजा का अखिरी दिन है। आज रात को यह पत्थर सोने का बन जायेगा। और कल तो तुम इसे बेच दोंगी।
यह सुनते ही भागवन्ति रोने लगी। बोली यह पत्थर नहीं मॉं भगवती का रूप है। यह सोने का बने या न बने मैं हमेंशा मॉं की सेवा करती रहूंगी। अब मुझे धन का जरा भी लालच नहीं है। यह सुनकर कर्मवीर बहुत खुश हुआ।
तभी उनके दरवाजे पर किसी ने आवाज दी दोंनो ने बाहर जाकर देखा तो वही साधू बाबा खड़े थे। दोंनो बाबा को अन्दर ले आये तब बाबा ने कहा “यदि मन सच्चा हो तो साधारण पत्थर में भी भगवान के दर्शन होते हैं।
भागवन्ति ने रोते हुए बाबा से माफी बाबा ने कहा मॉं वैष्णों देवी के दरबार से तुम्हारा बुलावा आया था तभी मॉं के आशीर्वाद से तुम्हारे मन में भक्ति जगाने के लिए यह साधारण पत्थर मैंने तुम्हारे घर के पास से ही उठा कर झोली में रख लिया था।
दोंनों ने बाबा को नमन किया और अगले दिन ही मॉं वैष्णों देवी की यात्रा पर चल दिये।
भक्तों यदि मॉं वैष्णों देवी का बुलावा आया है। तो कितनी भी परेशानी हो मॉं अपने भक्तों को बुला ही लेती हैं।
जय माता दी
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