चौबे जी और मूंग दाल का हलवा | Funny Story for Kids

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Funny Story for Kids : बनारस में एक पंडित जी गंगा के घाट पर पूजा पाठ कराते थे। घाट पर सब उन्हें चौबे चौबे जी बोलते थे। पंडित जी यजमानों का माल खा खा कर मोटे हो गये थे। इसलिये कुछ लोग उन्हें मोटे लाला भी कहते थे।

पंडित जी का रोज का नियम था सुबह उठ कर स्नान ध्यान करके गंगा किनारे अपने ठिकाने पर बैठ जाते। पिण्ड दान, श्राद्ध आदि कराने में उन्हें महारथ हासिल थी। यजमान एक बार उनकें चंगुल में आ जाये तो पूरे साल भर खर्चा बातें बना कर निकाल ही लेते थे।

चौबे जी को खाने का बहुत शोक था। दोपहर को घर आते समय किसी न किसी हलवाई की दुकान पर बैठ जाते।

एक दिन चौबे जी रात की आरती के बाद अपने घर जा रहे थे। रास्ते एक हलवाई की दुकान पड़ी गर्मागर्म जलेबी तली जा रहीं थी।

चौबे जी: हाय क्या खुशबू आ रही है दूध जलेबी की कम से कम आधा किलो तो मैं खा ही सकता हूं फिर पंडिताईन के लिये भी आधा किलो चाहिये।

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चौबे जी हलवाई की दुकान पर पहुंच जाते हैं।

हलवाई: आईये चौबे जी क्या हाल हैं सब कुशल मंगल?

चौबे जी: महादेव के भक्त पर कभी कोई मुसिबत आ सकती है।

हलवाई: हां महाराज आप सही कह रहे हैं।

चौबे जी: लेकिन गंगा मैया तुझसे बहुत नाराज हैं।

हलवाई: क्या हुआ गंगा मैया के किनारे बैठ कर मैं गंगा मैया को कैसे नाराज कर सकता हूं।

चौबे जी: तूने पिछली बार दूध जलेबी का भोग गंगा मैया को कब लगाया था।

हलवाई: महाराज ये तो याद नहीं लेकिन कच्चा दूध तो में रोज गंगा जी की आरती के समय चढ़ता हूं।

चौबे जी: तो क्या गंगा मैया हमेशा फीका दूध ही पीती रहेंगी। उनका मन मिष्ठान खाने का नहीं करता। एक काम कर आधा किलो दूध में जलेबी डाल कर बांध कर दे दे मैं सुबह चढ़ा दूंगा।

हलवाई: लेकिन महाराज अभी तो ताजी बनी हैं आप बैठ्यिे मैं अभी चढ़ा कर आता हूं।

चौबे जी: मूर्ख आरती के बाद मां के विश्राम का समय है। मुझे दे दे में कल सुबह चढ़ा दूंगा।

हलवाई डर के मारे दूध जलेबी बांध कर दे देता है।

चौबे जी: एक ब्राह्मण से मुफ्त में काम करवायेगा तो नर्क में जायेगा। ला मेरी दक्षिणा।

हलवाई चौबे जी को दस रुपये देता है।

चौबे जी: इतने में आज बनारस में पान भी नहीं आता। मैं तेरी दूध जलेबी घर लेकर जाउं फिर रात भर बिल्ली से इसे बचाने के चक्कर में जागता रहूं। उसके बाद सुबह सवेरे लोकर गंगा जी का भोग लगाउं। उसके बाद तेरे नाम की पूजा करूं।

हलवाई: महाराज क्या सेवा करू?

चौबे जी: आधा किलो दूध में जलेबी और सौ रुपये दक्षिणा के दे।

हलवाई उन्हें दे देता है। चौबे जी मजे से घर पहुंच जाते हैं। झक के दूध जलेबी खाते हैं और सौ रुपये अपनी पत्नि को दे देते हैं।

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चौबे जी: तू भी यही खा ले आज खाना मत बनाना।

पत्नि: लेकिन आप तो ये गंगा मैया में चढ़ाने लाये हैं।

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चौबे जी: गंगा मैया में तो इतना चढ़ावा चढ़ता है उन्हें इस दूध जलेबी की कहां जरूरत है। तू खा ले।

पत्नि: नहीं मैं नहीं खा रही आप झूठ बोल कर लाये हैं। मैं तो खाना बनाने जा रही हूं।

चौबे जी: बाकी बची दूध जलेबी भी खा लेते हैं। और सो जाते हैं।

इसी तरह चौबे जी हर दिन कभी पान वाले की, कभी चाय वाले की, कभी हलवाई की दुकान पर जाते और अपने मतलब की खाने की चीज लेकर चलते बनते।

एक दिन सभी दुकान वाले दोपहर को गंगा किनारे बैठ कर धूप का आनन्द ले रहे थे। सर्दी में गंगा किनारे बैठना; एक अलग ही सुख था।

बातों बातों में चौबे जी का जिक्र छिड़ गया। उनकी इस आदत से सभी परेशान थे।

हलवाई: भाई हद हो गई इस चौबे को सबक सिखाना पड़ेगा।

दूसरा हलवाई: हां भाई हमारा तो रोज का हो गया है। हमेशा कुछ न कुछ लेकर ही टलता है।

तीसरा हलवाई: भाई कुछ कर नहीं सकते पंडित जी हैं। कहीं श्राप दे दिया तो दुकान बर्बाद हो जायेगी। अब तो गंगा मैया ही पार लगा सकती हैं।

अगले दिन चौबे जी का मूंग की दाल का हलवा खाने का बड़ा मन था।

चौबे जी कई दुकानों पर गये लेकिन किसी ने हलवा नहीं बनाया था। चौबे जी बहुत परेशान हो गये।

तभी एक हलवाई ने कहा –

हलवाई: चौबे जी में सुबह हलवा बना सकता हूं अगर आप सुबह नहा कर गंगा किनारे मेरे नाम की पूजा करें लेकिन यह पूजा पांच बजे होनी चाहिये।

चौबे जी खाने के लालच में मान गये। लेकिन ठंड के कारण कुछ हिचक रहे थे।

अगले दिन चौबे जी गंगा पर नहाने लगे और हलवाई का इंतजार करने लगे। कुछ दूर उन्हें हलवाई नजर आया। वे ठंड में नहा रहे थे। फिर नहा कर बाहर आये। कुछ देर पूजा करने के बाद बोले –

चौबे जी: ला भाई हलवा दे। बहुत ठंड लग रही है। गरम गरम हलवा धाकर मजा आ आयेगा।

हलवाई ने उन्हें हलवा दिया।

चौबे जी ने हलवा चखा और बोले

चौबे जी: ये तो बिल्कुल ठंडा है। ठंडा हलवा खाकर तो मुझे और ठंड लग गई। तू बासी हलवा ले आया।

चौबे जी का गला अकड़ गया उनसे बोला भी नहीं जा रहा था। वो ठंड से कांपने लगे उन्हें लगा आज तो प्राण निकल जायेंगे।

हलवाई: क्यों चौबे जी आप तो रोज मां गंगा को बासी दूध जलेबी, बासी मिठाई खिलाते हो तब मां को कितना कष्ट होता होगा। आज पता लगा।

तभी वहां और दुकानदार आ गये जिन्हें चौबे जी ने ठगा था।

चौबे जी: मुझे आप सब माफ कर दीजिये अब में कभी किसी को मूर्ख नहीं बनाउंगा।

चौबे जी फटा फट अपना सामान उठा कर घर की ओर भागे।

Image Source : Playground

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