सोमवती अमावस्या | Somavati Amavasya व्रत कथा पूजा विधि

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Somavati Amavasya : हर मास में अमवस्या का विशेष महत्व होता है। जो अमावस्या सोमवार के दिन पड़ती है उसे सोमवती अमावस्या कहते हैं। किसी भी वर्ष में केवल एक या दो बार ही अमावस्या सोमवार के दिन हो सकती है।

सोमवती अमावस्या का महत्व

सोमवार के दिन पड़ने वाली इस अमावस्या को विशेष माना जाता है। क्योंकि इस यह दिन भगवान शिव को समर्पित होता है, और भगवान शिव ने चन्द्रमा को अपने शीश पर स्थान दिया है।

सोमवार के दिन यदि अमावस्या है तो इस दिन जो भी भक्त पूजा या व्रत रखते हैं। उन्हें दुगना पुण्य मिलता है। एक ही व्रत में सोमवार और अमावस्या दोंनो का फल मिलता है। इसके साथ ही भगवान भोलेनाथ के साथ साथ पित्तरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।

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सोमवती अमावस्या की पूजा कैसे करें?

  1. प्रातः जल्दि उठ का स्नान आदि से निवृत हों।
  2. घर में पित्तरों के निमित्त भोजन पकाएं।
  3. भगवान शिव की पूजा करें।
  4. पित्तरों को ध्यान कर उन्हें नमन करें।
  5. भगवान शिव और मॉं पावर्ती का सर्वप्रथम मीठे का भोग लगायें जैसे खीर, हलवा आदि।
  6. भगवान शिव और मॉं पार्वती को जो भोजन आपने बनाया है उसका भोग लगायें।
  7. अपने पूज्य पित्तरों के निमित्त किसी ब्राह्मण को भोजन करा सकते हैं। अथवा उनके निमित्त भोजन मन्दिर में भेज दें।
  8. पित्तरों के निमित्त दान अवश्य करें।
  9. भगवान शिव और मॉं पार्वती का ध्यान कर उपवास शुरू करें।
  10. सांयकाल में किसी मीठे व्यंजन से भगवान का भोग लगा कर उसे ग्रहण करें।

सोमवती अमावस्या से जुड़ी सच्ची कहानी

एक गॉव में एक बुढ़िया माई रहती थी। बुढ़िया माई का इस संसार में कोई नहीं था। वह दिन रात भगवान शिव और मॉं पार्वती की पूजा करती थी।

एक दिन बुढ़िया माई बहुत बीमार हो गई। वह भगवान की पूजा नहीं कर सकी। बुढ़िया माई रो रही थी।

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बुढ़िया माई: हे भगवान मुझे भी एक संतान दी होती तो आपको बिना भोग लगाये नहीं रहना पड़ता आज मैं बीमार हूं, मेरे अंदर इतनी ताकत नहीं है कि आपका भोग लगा सकूं।

तभी उसके दरवाजे पर दस्तक होती है।

बुढ़िया माई दरवाजा खोलती है तो देखती है। एक नवयुवक और एक नवयुवती खड़े हैं।

बुढ़िया माई: अरे तुम दोंनो कोन हो?

नवयुवक: मांजी मैं आपका बेटा हूं अभी आप भगवान से बेटा बहु मांग रही थी समझो भगवान ने आपकी सुन ली और हम दोंनो को भेज दिया यह आपकी बहु है।

बुढ़िया माई: यह क्या कह रहे हो मेरा तो कोई बेटा नहीं है। मैं तुम्हें नहीं जानती चले जाओ यहां से।

नवयुवती: मांजी में आपकी बहु हूं इनसे आपका कोई पिछले जन्म का रिश्ता होगा तभी शिवजी ने हमें यहां भेजा है। लाईये मैं भोग का प्रसाद बना देती हूं। आप आराम कीजिये।

बेटा बहु को पाकर बुढ़िया माई बहुत खुश हुई। बहु बेटे बुढ़िया माई की दिनरात सेवा करने लगे जिससे वह बहुत जल्दि ठीक हो गई।

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एक दिन बहु उदास बैठी थी। तब बुढ़िया माई ने उससे पूछा।

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बुढ़िया माई: बेटी क्या बात है तू इतनी उदास क्यों है।

बहु: मांजी सोमवती अमावस्या आ रही है, इसी दिन हमें यहां से जाना पड़ेगा।

बुढ़िया माई: लेकिन क्यों तुम तो मेरे बहु बेटे बन कर आये हो।

बहु: हॉं मांजी हमें कहीं ओर जाना है आप तो अब ठीक हो गई हैं। संसार में जहां भी कोई परेशान होता है। भगवान हमें उसकी मदद के लिये भेज देते हैं।

यह सुनकर बुढ़िया माई रोने लगी। वह भगवान शिव और मॉं पार्वती से प्रार्थना करने लगी।

बुढ़िया माई: भगवान या तो मेरे प्राण ले लो या फिर इन मेरे बहु बेटों को मेरे पास ही रहने दो इनके बगैर मैं जिंदा नहीं रह सकती मैं मर जाउंगी।

इसी तरह सोमवती अमावस्या आ जाती है। बहु बेटे जाने की तैयारी करने लगते हैं। बुढ़िया माई ने व्रत किया प्रसाद बनाया और बहु बेटे से कहा

बुढ़िया माई: तुम दोंनो प्रसाद खाकर जाना।

सांय काल में दोंनो ने प्रसाद खाया और जाने लगे। तो बुढ़िया माई फूट फूट कर रोने लगी।

तभी दोंनो भेष बदल कर भगवान शिव ओर मॉं पार्वती के रूप में प्रकट हो गये।

बुढ़िया माई उनके पैरों में गिर गई

बुढ़िया माई: हे भोलेनाथ मुझे कैसे पाप में डाल दिया मैं अनजाने में आप दोंनो से सेवा कराती रही मुझे अपने चरणों में जगह दो और आपने साथ ले चलो।

शिव जी: मांजी आप चिन्ता न करें। हम आपका हमेशा ध्यान रखेंगे अपने भक्त को हम कभी कष्ट में नहीं छोड़ सकते। आप जब भी हमें याद करेंगी हम आ जायेंगे।

इतना कहकर दोंनो अर्न्तध्यान हो गये।

इस तरह बुढ़िया माई का जीवन सफल हो गया। उसके घर में अन्न धन के भंडार भर गये। 

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