Spiritual Story in Hindi : श्रीमद्भागवत् महापुराण के दसवें स्कन्ध के चौसठवें अध्याय में राजा नृग की कहानी है, जिसे पढ़ कर आप जानेंगे कि एक छोटी सी भूल के लिये उन्हें कितना कष्ट उठाना पड़ा।
राजा परीक्षित एक समय यदु वंश के राजकुमारों – साम्ब, प्रद्युम्न, चारुभानु और गद को लेकर एक उपवन में घूमने गये। वे एक उपवन में बहुत देर तक खेलते रहे। बहुत देर खेलने के बाद उन्हें प्यास लगी। पास ही में एक कुएं के समीप गये लेकिन उसमें पानी नहीं था।
वहां एक पर्वत के समान एक गिरगिट जैसा दिखने वाला जीव दिखाई दिया। उस जीव को देख कर वे कुछ समझ नहीं पाये और उसे कुऐं में पड़ा देख कर उसे बाहर निकालने का प्रयास करने लगे।
एक रस्सी के सहारे से उसे बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू हुई। लेकिन वे उसे नहीं निकाल सके। तब उन्होंने यह बात भगवान् कृष्ण को बताई। कृष्ण जी कुएं के पास गये और उस गिरगिट को देख कर सब समझ गये उन्हें अपने एक हाथ से उसे कुऐं से बाहर निकाल दिया।
भगवान् श्री कृष्ण के कर कमलों से उसका उद्धार हो गया। वह स्वर्ण के समान कांति लिये एक देवता के रूप में प्रकट हो गया। यह देखकर सभी आश्चर्यचकित रह गये। किन्तु भगवान् कृष्ण जी यह सब देख कर मुस्कुरा रहे थे।
उस देवता ने श्री कृष्ण को दण्डवत् प्रणाम किया। तब कृष्ण जी ने कहा कि मान्यवर आप अपना परिचये बताईये।
तब उस देवता ने भगवान से कहा प्रभु आप से क्या छिपा है। फिर भी मैं बतलाता हूं। मैं इक्ष्वाकु का पुत्र नृग हूं। मैं महादानी के रूप से विख्यात था।
मैं नृग राजा के नाम से विख्यात था। मैंने हजारों गयें दान की, जिनमें कपिला गाये, दुधारू, सीधी व सुन्दर सुलक्ष्ण गायों के सींगों पर सोना मढ़वा कर उनके बछड़ों के साथ वस्त्र, माला, आभूषण से अलंकृत गायें शामिल थीं।
मैंने दूर दूर से तपस्वी, वेदपाठी, तथा गुरू स्वरूप युवकों और श्रेष्ठ ब्राह्मणों को यह गोदान दिया।
इसके अलावा मैंने भूमि, घोड़े, हाथी, सोना, वस्त्र, रत्न, गह सामग्री और रथों को दान दिया साथ ही जगह जगह कुऐं और बाबली बनवाईं।
इतने पुण्य कर्म करते करते भी एक समय मैं गाय दान कर रहा था। उसी समय एक ब्राह्मण की गाय मेरी गायों में आकर मिल गई। अन्जाने में मैंने उसे दूसरे ब्राह्मण को दान में दे दिया।
इस तरह उस ब्राह्मण ने दूसरे ब्राह्मण से कहा यह तो मेरी गाय है। यह सुनकर दान लिये ब्राह्मण ने कहा यह गाय तो मुझे राजा नृग ने दान में दी है। इस तरह वार्तालाप करते वे दोंनो ब्राह्मण मेरे पास आये।
पहले ब्राह्मण ने कहा आपने मेरी गाय का अपहरण किया है। वहीं दूसरे ब्राह्मण ने कहा आपने मुझे यह गाय दान में दी है।
मैंने दोंनो से क्षमा मांगी और दान लिये जाने वाले ब्राह्मण से प्रार्थना की कि आप यह गाय इन ब्राह्मण देवता को दे दें। बदले में मैं आपको एक लाख श्रेष्ठ गाय दे दूंगा।
किन्तु वह नहीं माने, फिर मैंने पहले वाले ब्राह्मण से भी यही आग्रह किया। हे ब्राह्मण देवता मुझसे अनजाने में यह पाप हो गया। अब आप ही मुझे नरक में जाने से बचा सकते हैं।
गाय के स्वामी ब्राह्मण ने कहा नहीं मुझे तो यही गाय चाहिये। फिर दान लिये ब्राहमण ने कहा तुम मुझे एक लाख क्या दस लाख गायें भी दोगे तो भी मैं नहीं लूंगा। यह कहकर दोंनों ब्राह्मण देवता चले गये।
इसी शोक और पछतावे में मेरी उम्र बीती और अब में यमलोक यम के सामने पहुंचा तो उन्होंने कहा – राजन् तुम्हारे पुण्य कर्म ज्यादा हैं। पहले पाप कर्म भोगोगे या पुण्य कर्म।
मैंने कहा – हे यम देवता मुझे पहले पाप कर्म भोगने हैं। उसी क्षण उन्होंने मुझे नीचे भेज दिया। नीचे आते हुए मेरा शरीर एक गिरगिट के रूप में बदल गया।
आज आपके कर कमलों द्वारा मेरा उद्धार हो गया। यह कहकर राजा नृग श्री कृष्ण के चरणों में गिर गये। भगवान् के चरणों में बैठ कर वे भगवान श्री कृष्ण का गुणगान करने लगे कुछ देर बाद एक विमान आया।
श्री कृष्ण के चरणों की रज को माथे पर लगा कर राजा नृग उस विमान पर चढ़ कर स्वर्गलोक को चले गये।
इसके बाद राजा परीक्षित को श्रीकृष्ण ने संदेश दिया –
दुर्जरं बत ब्रह्मस्वं भुक्तमग्नेर्मनागपि। तेजीयसोsपि किमुत राज्ञामीश्वरमानिनाम्।।
श्रीमद् भागवत् महापुराण – १०/६४/३२
हे राजन जिनका तेज भी अग्नि के समान है अथवा तेजस्वी राजा है वह भी ब्राह्मण का थोड़ा सा धन पचा नहीं सकते। जो राजा अपने आप को झूठे ही ईश्वर का रूप मानते हैं। उनकी तो बात ही क्या।
ब्रह्मस्वं दुरनुज्ञातं भुक्तं हन्ति त्रिपूरुषम्। प्रसह्य तु बलाद्भुक्तं दश पूर्वान्दशापरान्।।
श्रीमद् भागवत् महापुराण – १०/६४/३३
अगर किसी ब्राह्मण की अनुमति के बिना ब्राह्मण के धन को खाया जाये तो उसके पुत्रों का नाश होगा। अगर बल पूर्वक किसी ब्राह्मण का धन छीना जाये तो उसकी दस पीढ़ी का नाश हो जाता है।
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