भगवान राम का पिता के लिए भयभीत होना

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Ramayan ke Prasang : भगवान श्री राम का अपने पिता के प्रति स्नेह का एक प्रसंग उस समय का है जब राम के राज्याभिषेक की तैयारी हो रही थी। अयोध्या में चारों और खुशियां मनाई जा रहीं थी। उसी समय राम को संदेश मिलता है कि महाराज दशरथ उन्हें अपने कक्ष में बुला रहे हैं।

यह संदेश महाराज दशरथ की ओर से कैकयी ने भिजवाया था। वाल्मीकी रामायण के अनुसार राम के कक्ष में पहुंचने पर पहली बार राम को भयभीत देखा गया। इसका क्या कारण था। आईये जानते हैं।

प्रभु राम ने कक्ष में जाकर देखा महाराज दशरथ और माता कैकयी सुन्दर पलंग पर बैठे हुए हैं।

रामेत्यूक्त्वा च वचनं बाष्पपर्याकुलेक्षणः। शशाक नृपतिर्दीनो नेक्षितुं नाभिभाषितुम्।।

(वाल्मीकी रामायण, अयोध्याकाण्ड, सर्ग १८/३)

महाराज दशरथ के मुख से केवल एक शब्द निकला राम! वे सर झुकाये बैठे थे। उनके नेत्र आंसुओं से भरे थे। इसके साथ ही उन्होंने न तो राम की ओर देखा और न ही कुछ बोल पाये।

महाराज दशरथ के इस रूप को देख कर पहली बार राम भयभीत हुए।

अचिन्त्यकल्पं हि पितुस्तं शोकमुपधारयन्। बभूव संरब्धतरः समुद्र इव पर्वणि।।

(वाल्मीकी रामायण, अयोध्याकाण्ड, सर्ग १८/७)

राम का हाल पिता को देख कर ऐसा हो गया जैसा कि पूर्णिमा के दिन समुद्र का होता है अर्थात शांत समुद्र में भी पूर्णिमा के दिन तेज उंची लहरे उठती हैं। इसी तरह राम पिता के दुख को देख कर व्याकुल हो उठे।

राम जब बहुत परेशान हो गये तो उन्होंने कैकयी से प्रश्न किया। मॉं क्या बात है। पिताजी मुझसे क्रुद्ध हैं। मुझसे क्या अपराध हुआ है।

यहां राम का पिता के प्रति असीम स्नेह उजागर होता है। वे हर हाल में पिता को प्रसन्न देखना चाहते हैं। राम जैसे ज्ञानी पुरुष का पिता के लिये अधीर हो जाना इस बात का संकेत है।

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कच्चिन्न किचिंद्भरते कुमारे प्रियदर्शने। शत्रुघ्ने वा महासत्तवे मातृणां वा ममाशुभम्।।

(वाल्मीकी रामायण, अयोध्याकाण्ड, सर्ग १८/१४)

प्रभु राम के मन में तरह तरह की शंकाये उत्पन्न हो रही हैं। वे माता कैकयी से प्रश्न कर रहे हैं। हे माता क्या प्रियदर्शन कुमार भरत से कोई भूल हुई है? शत्रुघ्न या मेरी माताओं से कोई अपराध हुआ है। जिसके कारण पिता दुःखी हैं।

अतोषयन्महाराजमकुर्वन् वा पितुर्वचः। मुहूर्त्तमपि नेच्छेयं जीवितुं कुपिते नृपे।।

(वाल्मीकी रामायण, अयोध्याकाण्ड, सर्ग १८/१५)

यहां राम कहते हैं कि यदि मैंरे किसी कार्य से पिता को संतोष की प्राप्ति नहीं हुई है, या कहीं अनजाने में मुझसे उनकी आज्ञा का पालन नहीं हुआ है, तो मैं इसी पल मर जाना चाहता हॅंू पिता को क्रुद्ध करके एक पल भी जीना मेरे लिये बेकार है।

पिता के प्रति ऐसा समर्पण। ऐसा स्नेह कि पिता की एक मुस्कुराहट के लिये प्राणों को न्योछावर करने वाले सिर्फ मर्यादापुरुषोत्तम राम ही हो सकते हैं।

इस प्रकार के वचनों को सुनकर जब माता कैकयी ने अपने वचन के बारे में राम को बताया तो राम ने क्या कहा –

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हितेन गुरुणा पित्रा कृतज्ञेन नृपेण च। नियुज्यमानो विस्रब्धः किं न कुर्यामहं प्रियम्।।

(वाल्मीकी रामायण, अयोध्याकाण्ड, सर्ग १९/४)

मेरे परम हितैषी पिता, वे ही गुरु हैं मेरे उपर कृपा करने वाले, इनकी आज्ञा से कोई भी ऐसा कार्य है जो मैं कर न सकूं। मेरे पिता को मेरे उपर शंका नहीं होनी चाहिये।

वाल्मीकी रामायण में ऐसे मार्मिक प्रसंग को देख कर हमें यह सीख मिलती है। कि माता पिता की हर आज्ञा का पालन करना सबसे बड़ा कर्तव्य है।

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