पुत्रदा एकादशी 2024 | शुक्रवार 16 अगस्त 2024 |
शुभ मुहूर्त | एकादशी 15 अगस्त 2024 सुबह 10 बजकर 26 मिनट से 16 अगस्त 2024 सुबह 09 बजकर 39 मिनट तक रहेगी |
Putrada Ekadashi : पुत्रदा एकादशी का अनुष्ठान विधि-विधान के साथ संकल्पपूर्वक करने से जिनके पुत्र प्राप्त न होते हों। उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इस दिन चक्रधारी भगवान् विष्णु की पूजा-अर्चना बड़े ही धूम-धाम के साथ की जाती है।
इस व्रत को पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखने वाले स्त्री तथा पुरुष दोनों रख सकते हैं। इसका वे अन्त में अपने सारे बन्धनों से मुक्त होकर विष्णुलोक को प्राप्त होते हैं।
इसलिए जो लोग निःसन्तान हैं और पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखते है तथा स्वर्ग की कामना करते हैं, उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
पुत्रदा एकादशी व्रत की पूजन विधि (Putrada Ekadashi Puja Vidhi)
साधक को प्रातःकाल उठकर स्नानादि नित्यक्रियाओं से निवृत्त होकर पुत्रदा एकादशी व्रत का संकल्प धारण करें। विष्णु भगवान् को अच्छे आसन में बैठावें, फिर उनके चरण धोकर आचमन करावें और भोग लगाकर अच्छे कपड़े से सजावें।
पुनः धूप, दीप, फूल, चन्दन, आदि से पूजा-अर्चना करें और आरती उतारें। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन करावें और अपनी श्रद्धा के अनुसार दान देकर आशीर्वाद लें और विदा करें।
दिन में कीर्तन करें और रात्रि में भगवान् विष्णु के मूर्ति के समीप ही सोयें। दिन में केवल फलाहार करें। इस प्रकार जो व्रत का पालन करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और जो संतान की इच्छा रखते है उन्हें सन्तान की प्राप्ति होती है।
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पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha)
प्राचीन काल में एक समय भद्रावती नामकी एक नगरी में सुकेतुमान नामका राजा राज्य करता था। उनकी स्त्री का नाम शैव्या था।
वे दोनों ही बहुत बड़े धर्मात्मा तथा दानी थे। उनके राज्य में सभी जनता सुखी सम्पन्न थी, परन्तु राजा-रानी दोनों निःसन्तान होने के कारण हमेशा दुःखी रहा करते थे। इस दुःख से विरक्त होकर वे दोनों अपना राज्य मंत्रियों को सौंपकर वन को चले गये।
वन में जाकर वे दोनों ने अपना प्राण त्यागना चाहा। लेकिन तुरन्त ही याद आया कि आत्महत्या के बराबर कोई दूसरा पाप नहीं है। इसलिए आत्महत्या नहीं करनी चाहिए। यह सोचते-सोचते दोनों आगे बढ़ गये।
आगे कुछ दूर जाने पर देखा कि यहाँ मुनियों का आश्रम है और एक तालाब भी बना हुआ है। राजा रानी वहाँ पहुँचे और मुनियों को प्रणाम कर वहीं बैठ गये।
मुनियों ने देखा कि वे बड़े ही दुःखी हैं। तब उन्होंने अपने योगबल से राजा के दुःख का कारण जान लिया और कहने लगे,- ‘हे राजन्! आज तुम स्नान करो और भोजन करो।
कल पुत्रदा नामकी एकादशी है। अतः कल तुम व्रत रखना और भगवान् विष्णु की पूजा-अर्चना करना। इससे तुम्हें एक योग्य पुत्र प्राप्त होगा।
जो दशों दिशाओं में अपना कीर्ति फैलाएगा।’ राजा ने वैसा ही किया। व्रत के एक वर्ष बाद राजा को एक बहुत ही सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ। यह देखकर राजा रानी बहुत प्रसन्न हुए और पूरे राज्य में समारोह मनाया गया।
राजा उस दिन से पूरे राज्य मे पुत्रदा एकादशी को मनाने का घोषणा किया। तभी से इस व्रत का प्रचार पूरे संसार मे हुआ इस व्रत के करने से नि:सन्तान को संतान का सुख मिलता है।
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