Prernadayak Kahani for Kids : नवीन को उसके पिता सुबह चार बजे उठा रहे थे – ‘‘बेटा उठ जा, खेत पर चलना है।’’ नवीन को बहुत गुस्सा आ रहा था।
उसने कहा – ‘‘बाउजी अभी जाकर क्या करेंगे अभी तो दिन भी नहीं निकला है। वहां क्या नजर आयेगा।’’
नवीन के पिता मोहनलालजी ने कहा – ‘‘बेटा यही सही समय है खेत में काम करने का दोपहर को सो लेना।’’
झुंझला कर नवीन उठा और पिता के साथ खेत पर पहुंच गया। दोंनो बाप बेटे अपने खेत पर काम करने में जुट गये। नवीन को खेत पर काम करना अच्छा नहीं लगता था। वह तो पढ़ लिख कर शहर जाना चाहता था। लेकिन मोहनलाल जी चाहते थे कि उनका बेटा खेती करे। शहर का जीवन उन्हें पसंद नहीं था।
सूरज सर पर चढ़ आया था। तेज गर्मी से बुरा हाल था। दोंनो बाप बेटे काम अधूरा छोड़ कर घर की ओर चल देते हैं। अब शाम को चार बजे दोबारा काम पर लौटेंगे।
रास्ते में एक दुकान के बाहर मोहनलाल जी के पुराने दोस्त रोशन जी मिल गये। उन्हें देखते ही मोहनलाल ने कहा – ‘‘रोशन यहां दुकान पर बैठ कर क्या कर रहा है।’’
रोशन ने कहा – ‘‘बस कुछ सामान लेने आया था। तू सुना खेत से आ रहा है क्या?’’
नवीन ने रोशन जी के पैर छुए तो वो बोले – ‘‘लगता है बेटे को खेती सिखा रहा है। इसे यहीं गांव में रखने का विचार है क्या? अरे इसे पढ़ने दे फिर शहर में अच्छी सी नौकरी लग जायेगी।’’
यह सुनकर मोहनलाल जी ने कहा – ‘‘अरे क्या रखा है शहर में पैसों के पीछे पागल हैं लोग। वैसे तू सामान लेने क्यों आया आज क्या घर में दावत है।’’
रोशन जी ने झेंपते हुए कहा – ‘‘वो कल कमल का फोन आया था वो छुट्टी मनाने के लिये घर आ रहा है अपने बच्चों के साथ।’’
मोहनलाल जी ने कहा – ‘‘और तू लग गया मेहमान नवाजी करने तेरा बेटा छुट्टी पर पिकनिक मनाने आ रहा है। क्या फायदा बच्चे मेहमानो की तरह आते हैं हम उनका स्वागत करते रहते हैं। दो दिन बाद वो चले जाते हैं। कभी तू भी गया है शहर उनके घर?’’
रोशन ने शर्मिन्दा होते हुए कहा – ‘‘हां भाई कह तो तू ठीक ही रहा है जब से शहर गया है बस साल में एक दो बार अपनी गाड़ी लेकर पिकनिक मनाने आ जाते हैं। दस दिन पहले फोन कर देते हैं हम पूरा घर सजाने में लग जाते हैं और दो दिन बाद मेहमान की तरह चले जाते हैं। रही बात मेरे जाने की तो उनके फ्लेट में हमारे लिये जगह ही नहीं है।’’
नवीन को इन बातों से चिढ़ हो रही थी। वह बोला – ‘‘क्या चाचा आप भी कमल भैया को बुरा बोल रहे हो। जानते हो वो कितनी बड़ी कंपनी में मैनेजर हैं।’’
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‘‘मैनेजर अरे जो अपना घर मेेनेज नहीं कर पाया अपने माता पिता को बेसहारा छोड़ गया वो कंपनी क्या मैंनेज करेगा। पढ़ लिख कर पैसों के पीछे अपने परिवार को छोड़ देना कहां की समझदारी है।’’ मोहनलाल जी ने उसकी बात काटते हुए कहा।
नवीन को उनकी बात बुरी लग रही थी। इधर रोशन जी शर्म से पानी पानी हो रहे थे। वो बोले – ‘‘अब जैसा भी है ठीक है। अच्छा मैं चलता हूं।’’
उनके जाने के बाद दोंनो बाप बेटे घर आ जाते हैं। नवीन और उसके पिता के विचारों में कोई मेल नहीं रह गया था।
मां बिमला जी ने नाश्ता बनाया दोंनो नहा धो कर नाश्ता करने बैठे ही थे तभी बाहर गाड़ी की आवाज सुनकर दोंनो बाहर निकल आये। नई चमचमाती गाड़ी में कमल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रोशन जी के घर की ओर जा रहा था।
नवीन बोला – ‘‘देखा इसे कहते हैं तरक्की कितनी बड़ी गाड़ी है। मैं अभी कमल भैया से मिल कर आता हूं।’’
मोहनलाल जी ने कहा – ‘‘अरे नाश्ता तो करता जा।’’
लेकिन नवीन उनकी बात सुने बगैर रोशन जी के घर की ओर चल दिया।
मोहनलाल जी ने कहा – ‘‘बिमला सुन तेरे बेटे पर शहर का रंग चढ़ रहा है। यह भी एक दिन हमें छोड़ कर भाग जायेगा।’’
बिमला जी ने कहा – ‘‘कहां जरा से बच्चे के पीछे पड़ गये अभी तो वो आठवीं में पढ़ रहा है।’’
मोहनलाल जी बाहर पेड़ के नीचे खाट बिछा कर आराम करने लगे। बिमला जी अपने काम में लग गईं।
इधर नवीन, कमल भैया से मिल कर आया वह बहुत खुश था। कमल भैया ने उससे कहा – ‘‘नवीन तू पढ़ लिख कर शहर आ जा मैं तुझे कहीं न कहीं फिट कर दूंगा। यहां गांव में क्या रखा है।’’
नवीन भी बड़ी गाड़ी और शहर में अच्छी सी नौकरी के सपने देखने लगा।
दो दिन बाद कमल तो वापस चला गया। लेकिन नवीन के मन के तार झकझोर गया। वह अब खेत पर नहीं जाता था। बस पढ़ाई करने में लग रहा था। उसे जल्द से जल्द शहर जो जाना था।
इधर उसके पिता मोहनलाल जी नवीन को लेकर चिंता में रहने लगे थे।
इसी तरह समय बीत रहा था। कुछ सालों बाद नवीन की ग्रजुऐशन पूरी हो गई अब वह बस शहर जाना चाहता था।
वह रोशन जी के घर गया और बोला – ‘‘चाचाजी मुझे नवीन भैया का नम्बर दे दो उनसे बात करनी है वो मेरी नौकरी लगवाने की बात कर रहे थे।’’
रोशन जी बहुत बीमार थे। उन्होंने कहा – ‘‘बेटा जानता है तेरे पिता ठीक कह रहे थे मैं पिछले एक साल से बीमार हूं कई बार बेटे को फोन कर चुका हूं लेकिन एक बार भी मुझसे मिलने नहीं आया। उसके पास मेरे लिये टाईम ही नहीं है।’’
लेकिन नवीन को कुछ समझ नहीं आ रहा है। वह बोला – ‘‘कोई बात नहीं चाचाजी मैं कमल भैया से बात करता हूं वो जरूर आयेंगे और फिर मैं भी उनके साथ चला जाउंगा।’’
नवीन ने नम्बर लेकर फोन किया दूसरी तरफ से कमल ने फोन उठाया – ‘‘कौन।’’
‘‘भैया में नवीन बोल रहा हूं आपके गांव से वो आपने नौकरी के लिये कहा था।’’
कमल ने कहा – ‘‘मेरा उस गांव से और गंवार लोगों से कोई मतलब नहीं है। मैं अगले महीने कनाडा जा रहा हूं। मेरे पिता ने फोन कर करके मेरा दिमाग खराब कर दिया अब पूरे गांव में नम्बर बांट रहे हैं। आज के बाद फोन मत करना।’’
यह कहकर कमल ने फोन काट दिया।
नवीन को बहुत बड़ा झटका लगा। उसके तो सारे सपने टूट गये। वह उदास होकर अपने घर आया।
मोहनलाल जी ने कहा – ‘‘क्या हुआ हो गई कमल से बात।’’
नवीन ने सारी बात बता दी। यह सुनकर मोहनलाल जी ने कहा -‘‘जानता है उसने यह सब क्यों कहा – जब एक साल पहले वह आया था तो अपना घर और खेत बेचना चाहता था। रोशन ने ये सब बेचने से मना कर दिया। बस इतनी सी बात पर मां-बाप से रिश्ता तोड़ लिया और वही गुस्सा उसने तेरे उपर निकाल दिया। पैसे की भूख ने उसे अंधा बना दिया।’’
यह सुनकर नीवन को भी बहुत बुरा लगा – ‘‘लेकिन पापा इस जमीन को बेचना क्यों चाहते हैं कमल भैया?’’
मोहनलाल जी ने कहा – ‘‘मैंने रोशन के कहने पर शहर जाकर पता किया था। उसकी नौकरी छूट गई थी। किश्तों पर फ्लेट और गाड़ी ले रखी थी। उसे ही भरने के लिये पैसे चाहिये थे और फिर वो विदेश जाने के चक्कर में था। बाकी बचे पैसों से विदेश में जाकर सेट होना चाह रहा था।
वो तो मैंने रोशन को समझाया, वरना इस उम्र में खेत मकान बेच कर बेटे के पीछे पीछे भागता रहता और वो नालायक इसे धक्के मार कर सड़क पर भीख मांगने को मजबूर कर देता। अब एक साल से अपने बाप को देखने भी नहीं आया।’’
नवीन के सर से शहर जाने का भूत उतर चुका था। वह मोहनलाल जी के गले लग कर रोने लगा – ‘‘बाउजी मुझे माफ कर दीजिये। मैं अब यहीं रह कर नये ढंग से खेती करूंगा।
जितने पैसे शहर में कमा कर वहीं खर्च करने हैं। उतने तो हमारे खेतों से आ जायेंगे और अपनी मर्जी के मालिक होंगे किसी की गुलामी नहीं करनी पड़ेगी।’’
मोहनलाल जी और बिमला जी नवीन की बातें सुनकर बहुत खुश हुए।
मोहनलाल जी ने कहा – ‘‘चल मेरे साथ रोशन जी के घर चलते हैं। उसका भी तो ध्यान रखना है। उससे कहता हूं। कि मेरा बेटा अब शहर नहीं जा रहा और तेरा भी ध्यान रखेगा।’’
नवीन रोशन जी के घर गया। फिर कुछ दिन बाद उन्हें लेकर शहर पहुंच गया। वहां उनका अच्छे से इलाज करवाया। कुछ दिन में रोशन जी बिल्कुल ठीक हो गये।
नवीन ने अपने दोस्तों को भी शहर जाने से रोका। सबने मिलकर नये तरीके से खेती शुरू की। कुछ ही सालों की मेहनत से नवीन ने गांव में नया घर बना लिया बड़ी सी गाड़ी ले ली।
अब वो अपने परिवार के साथ रोशन जी के परिवार का भी ध्यान रखता था। कुछ ही दिनों में नवीन की शादी हो गई।
आज नवीन और उसके दोस्त गांव में रहकर तरक्की कर रहे हैं और अपने आस-पास के लोगों को भी प्रोत्साहन दे रहे हैं कि वे शहर न जायें।
Image Source : Playground
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