Moral Story : सजल एक सरकारी दफतर में काम करता था। उसे बहुत कम तन्ख्वाह मिलती थी। सजल की पत्नि निशा बहुत तेज थी वह अपनी सास विभा जी को पसंद नहीं करती थी।
एक दिन सजल घर आया तो उसकी मॉं विभा जी ने उसे हलवा खाने को दिया।
सजल: मॉं यह तो बहुत अच्छा हलवा बना है। आज क्या बात है आपने हलवा कैसे बना लिया।
विभा जी: बेटा बहुत दिनों से ठाकुर जी को हलवे का भोग नहीं लगाया था इसलिए आज मैंने हलवा बना लिया। तुझे पसंद भी है न यह हलवा।
सजल: हॉं मॉं मन करता है रोज आपके हाथ का हलवा खाउुं
तभी निशा वहां आ जाती है।
निशा: मांजी आपको पता है देशी घी कितना मंहगा है। और आप हलवा बना कर दावत कर रही हैं। पूरे महीने हम कैसे खर्च चलाते हैं। यह आपको पता है।
विभा: लेकिन बहुत मैंने तो बहुत दिनों बाद हलवा बनाया है।
सजल: कोई बात नहीं निशा कभी कभी तो हलवा बनाना भी चाहिये और फिर यह तो प्रसाद है तुम भी खा लो।
निशा: कल से आपको सूखी रोटी मिलेगी वह सही रहेगा। इतनी मंगाई में कैसे खच चलता है यह मैं जानती हूं।
विभा जी चुपचाप अपने कमरे में चली जाती हैं।
कुछ दिन बाद विभा जी सजल से बात करती हैं।
विभा जी: बेटा जब तेरी नौकरी लगने की बात चल रही थी। तब मैंने ठाकुर जी से कहा था कि अगर मेरे बेटे की नौकरी लग गई तो हम सब उनके दर्शन के लिए वृन्दावन जायेंगे। क्या हम सब जा सकते हैं।
सजल: मॉं ठीक है अभी तो मेरे पास पैसे नहीं हैं लेकिन अगले महीने तन्ख्वाह मिलते ही हम वृन्दावल चलेंगे।
अगले महीने विभा जी सजल को फिर याद दिलाती हैं। लेकिन वह टाल देती है।
तीसरे महीने विभा जी सजल से बात करती हैं।
विभा जी: बेटा तू साफ साफ बता दे तू वृन्दावन जायेगा या नहीं।
निशा: मांजी आपको दिखाई नहीं देता हमारे पास पैसे नहीं हैं कहां से जायेगे वृन्दावन इसीलिये ये हर महीने आपको टाल देते हैं।
विभा जी: इसी महीने तुम दोंनो किसी दूसरे की शादी में जाने के नाम पर कितने पैसे खर्च कर दिये तुम्हें कुछ याद है। और ठाकुर जी के दर्शन के लिए पैसे नहीं हैं। रहने दे अगले महीने मैं अकेली चली जाउंगी।
सजल: मॉं तुम तो बेकार परेशान हो रही हों। सब ठीक ही चल रहा है फिर बेकार में पैसे बर्बाद करने का क्या मतलब है।
विभा जी: तू ठाकुर जी का निरादर कर रहा है बेटा यह अच्छी बात नहीं है। एक बार उनके दर्शन करके देख तेरा जीवन बदल जायेगा।
सजल: मॉं आपकी बेकार की बातों का मेरे पास कोई जबाब नहीं है साफ साफ सुन लो मैं कहीं नहीं जाउंगा।
यह सुनकर विभा जी को बहुत दुख होता है। वे अपने बचाए हुए पैसों को इकट्ठा करने लगती हैं जिससे वे अगले महीने वृन्दावन जा सकें।
अगले महीने विभा जी वृन्दावन जाने की तैयारी करती हैं। तभी सजल और निशा उनके पास आते हैं।
सजल: मॉं कहां जा रही हों।
विभा: मैं वृन्दावन जा रही हूं तुझे चलना है तो चल।
निशा: वह तो ठीक है मांजी लेकिन आपके पास इतना पैसा कहां से आया लगता है घर खर्च में से बचा लिया होगा।
विभा जी: बहु तू मुझ पर चोरी का इल्जाम लगा रही है। यह पैसे तो मेरे पति की कमाई के हैं। उनके समय में बचाये थे।
विभा जी दुखी होकर वहां से चली जाती हैं। और वृन्दा वन में ठाकुर जी के दर्शन करने के बाद वहीं एक आश्रम में रहने लगती हैं उनका मन अब उस घर में जाने का नहीं था। जहां उन पर चोरी का इल्जाम लगाया गया था।
एक दिन सजल और निशा उन्हें ढूंढते हुए आते हैं।
विभा: अब तुम दोंनो यहां क्या लेने आये हो मैंने तुम्हारे घर से कुछ नहीं चुराया।
सजल: मॉं हमें माफ कर दो आपके जाने के बाद मेरी नौकरी भी चली गई। अब तो हमारे पास न घर बचा न पैसे।
विभा: मैंने कहा था ठाकुर जी का अपमान मत कर जा उनके मन्दिर में जाकर प्रार्थन कर यदि उन्होंने तुझे माफ कर दिया तो सब ठीक हो जायेगा।
निशा भी अपनी सास से माफी मांगती है। और दोंनो ठाकुर जी के दर्शन करने चले जाते हैं। वहां से वापस आने पर।
सजल: मॉं अब में यहीं रह कर समाज सेवा करना चाहता हूं।
निशा: हॉं मांजी मैं भी अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हूं इसका प्रायश्चित करने के लिए मैं यहीं रहना चाहती हूं।
उस दिन से वे दोंनो उसी आश्रम में बुर्जुगों की सेवा करने लगे।
शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अपने माता पिता का दिल कभी नही दुखाना चाहिये
Leave a Reply
View Comments