कार्तिक पूर्णिमा शुभ मुहूर्त : 26 नवम्बर 2023 दोपहर 3:53 मिनट से प्रारंभ होकर इसका समापन 27 नवम्बर 2023 को 2:45 मिनट पर होगा। पूर्णिमा का व्रत सोमवार 27 नवम्बर को रखा जायेगा।
Kartik Purnima 2023 Vrat Katha Puja Vidhi : कार्तिक पूर्णिमा के दिन हमारे देश के करोड़ों धर्मपरायण लोग पवित्र नदियों में स्नान कर अपने कायिक, वाचिक और मानसिक पापों से मुक्ति पाते हैं।
यह तिथि पूरे भारतवर्ष के लिए एक पुण्य पर्व के समान है, जिसमें किसी प्रकार के व्रत या उपवास का विधान नहीं है। फिर भी व्रत उपवास में विश्वास रखनेवाले धर्मावलम्बी लोग स्नान करने के पूर्व का व्रत तो रखते ही हैं।
इस दिन हमारे इस विशाल देश के हजारों पवित्र नदियों तथा धार्मिक स्थलों पर छोटे-बड़े मेले लगते हैं। भारत की आध्यात्मिक नदी गंगा में स्नान करने को इस दिन विशेष महत्त्व है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इसी दिन सायंकाल के समय भगवान् का मत्स्यावतार हुआ था।
कार्तिक पूर्णिमा की पूजा विधि (Kartik Purnima 2023 Vrat Katha Puja Vidhi)
- कार्तिक स्नान शरद पूर्णिमा से आरम्भ होकर कार्तिक पूर्णिमा तक पूरे एक महिना तक चलता हैं।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रती प्रातःकाल नदियों, तालाबों, कुओं तथा नहरों में जहाँ जैसी सुविधा हो, स्नान करने जाते हैं।
- स्नान करने के उपरान्त पूजा-पाठ करते हैं और कार्तिक पूर्णिमा से सम्बन्धित कहानी सुनते हैं।
- हर रविवार को पूर्णिमा रखा जाता है और राधा-दामोदर की पूजा की जाती है।
- कार्तिक मास के अन्तिम दिन व्रती राधा-दमोदर की मूर्ति पर भोग लगाकर हवन करते हैं और भगवान् की पूजा कर दीप जलाते हैं।
- इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर आशीर्वाद लेकर और दान-दक्षिणा देकर विदा करते हैं।
- इस दिन विधिपूर्वक उपवास करके भगवान् का स्मरण करने से अग्निष्टोम के समान फल मिलता है और सूर्यलोक की प्राप्ति होती है।
- इसी प्रकार यदि इस दिन स्वर्ण का पात्र दान किया जाय तो ग्रहयोग के कष्ट नष्ट हो जाते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा की व्रत-कथा
प्राचीन काल में त्रिपुर नामका एक महान आततायी राक्षस हुआ। एक बार उस राक्षस ने एक लाख वर्षतक प्रयागराज में तप किया। जिससे सब चराचर और देवता भयभीत हो उठे।
अन्त में सब देवताओं अप्सराओं को उसका तप भ्रष्ट करने के लिए भेजा, परन्तु वह उनके फन्दे में नहीं आया। यह देखकर स्वयं ब्रह्माजी उनके पास गये और उससे वर माँगने के लिए कहा।
उसने किसी मनुष्य अथवा देवता द्वारा न मारे जाने का वर माँगा। ब्रह्मा का यह वरदान पाकर त्रिपुर और भी अधिक निर्भय होकर अत्याचार करने लगा।
उसने मनुष्यों तथा देवताओं की दूर्गती कर डाली। सबने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली, किन्तु उसके मुख्य शत्रु थे देवगण, जिन्हें सर्वदा वह विविध प्रकार का कष्ट दिया करता था।
अन्त में जब देवगण अत्यन्त परेशान होकर इधर-उधर भागते-भागते थक गये। तब वे भगवान् विष्णु के शरण में गये और उनसे अपनी रक्षा की गुहार लगाई।
भगवान् विष्णु ने कहा,- ‘वह असुर विधाता के वरदान से अमर हो गया है। उसकी मृत्यु का अभी कोई भी उपाय सम्भव नहीं है।
क्योंकि ब्रह्मा ने उसे सब प्रकार से अभय बना दिया है। उसे मारने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है, जो न स्त्री हो, न पुरुष, न देवता हो न मनुष्य, न राक्षस हो और न गन्धर्व।
जिसके माता-पिता, भाई-बहन भी न हो। बताइए, ऐसा व्यक्ति कौन हो सकता है? सभी देवता चिंतित हो गये। क्योंकि ऐसे कोई व्यक्ति का उन्हें ज्ञान नहीं था।
अनन्तर भगवान् विष्णु ने स्वयं कहा,- ‘जो इस आततायी राक्षस का विनाश करने में पूर्ण समर्थ है, वह हैं आशुतोश भगवान् शंकर। हम सब को उन्हीं के शरण में चलना चाहिए।’
भगवान् विष्णु का यह आश्वासन सुनकर देवतगण परम प्रसन्न हुए। वे सभी जानते थे कि भगवान शंकर ही त्रिगुणातीत सनातन महापुरुष हैं। सब देवगण भगवान् विष्णु के साथ कैलाश पर्वत पर शंकरजी के पास पहुँचे। वहाँ सब ने भगवान् शंकरजी का बड़ी प्रार्थना की।
अन्त में शंकरजी प्रसन्न हुए। उन्होंने देवताओं की अनुरोध को सुना और त्रिपुरवध की प्रतिज्ञा की। उनकी प्रतिज्ञा से सभी देवतागण प्रसन्नता से भर उठे। अन्ततः शंकरजी से त्रिपुर का भीषण युद्ध आरम्भ हो गया और तीन दिनों की प्रलयकारी लड़ाई में त्रिपुर मारा गया।
उसके मारे जाने पर त्रैलोक्य सुखी हुआ और सर्वत्र दीपक जलाकर प्रसन्नता मनायी गई। जिस पुण्य तिथि को त्रिपुर मारा गया था। वह यही कार्तिक की पूर्णिमा थी। तभी से इस दिन लोग स्नान-दान के साथ महोत्सव मनाते आ रहे हैं।
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