Inspirational Story in Hindi : विकास और कविता की शादी को अभी दो साल हुए थे। दोंनो अलग अलग ऑफिस में काम करते थे। एक दिन विकास घर जल्दी आया। तो उसे कविता घर पर ही मिल गई।
विकास: क्या बात है आज ऑफिस से जल्दी आ गईं?
कविता: नहीं मैं आज ऑफिस ही नहीं जा पाई आपके जाने के बाद मम्मी का फोन आया था। पापा की तबियत ठीक नहीं है। वे मुझे याद कर रहे हैं।
विकास: अरे तो इसमें सोचने की क्या जरूरत है उनसे मिल आओ उन्हें भी अच्छा लगेगा। वैसे भी वे दोंनो गॉव में अकेले रहते हैं। तुम्हारे भाई भाभी तो शहर में रहते हैं।
कविता: हॉं पर अकेले जाने बहुत परेशानी होती है। गॉव तक का रास्ता भी ठीक नहीं है। क्या आप मेरे साथ चलेंगे। हम दो दिन में वापस आ जायेंगे।
विकास: मुझे तो ऑफिस में बहुत जरूरी काम है एक काम करो दो दिन बाद का प्रोग्राम बना लो में कल ऑफस में छुट्टी के लिये बात कर लेता हूं।
कविता: ठीक है आप कल बता देना तो रिर्जवेशन करा लूंगी।
अगले दिन दोपहर को कविता विकास को फोन करती है।
कविता: विकास आपने बात कर ली छुट्टी के लिये कब निकलना है।
विकास: हॉं कविता कल का रिर्जवेशन करा लो हम कल सुबह निकल जायेंगे।
अगले दिन दोंनो ट्रेन से गॉव पहुंच जाते हैं। कविता और विकास जब घर पहुंचते हैं तो उसके पिता अंतिम सांसे ले रहे थें उन्हें देख कर कविता फूट फूट कर रोने लगती है।
कविता: मॉं आपने तो कहा था पिताजी की तबियत ठीक नहीं है। ये इतने बीमार थे तो पहले क्यों नहीं बताया हम इन्हें शहर के किसी अच्छे हॉस्पिटल में दिखा लेते।
मॉं: बेटी तेरे पापा ने जिद पकड़ रखी थी। कि वे अपना अन्तिम समय यहीं गॉव में बिताना चाहते हैं।
तभी पीछे से संजय की आवज आई संजय कविता का भाई था।
संजय: हॉं सब कुछ बेटी ही करेगी बेटे के लिये तो इस घर के दरवाजे पहले ही बंद हो चुके हैं। सारी खबर बेटी को दी जायेगी। यही इलाज करायेगी।
कविता: भैया आप यह क्या कह रहे हैं। मैं भी अभी अभी आई हूं। और आपका फर्ज है मॉं बाप का ख्याल रखने का। आप यहां से जाने के बाद कभी इनसे मिलने आयें हैं।
संजय: तुम दोंनो जा आ जाते हैं। गॉव का हिस्सा अपने नाम करवाने हमारी क्या जरूरत है।
कविता: भैया आपको शर्म नहीं आती इस समय भी ऐसी बात कर रहे हो देख नहीं रहे पिताजी की हालत।
विकास: संजय हम दोंनो को तुम्हारे गॉव की जमीन जायदाद की जरूरत नहीं है। हमारे पास बहुत कुछ है। यह हिस्सा तुम्हें ही मुबारक हो और जरूरी नहीं कि बेटी अपने पीहर आये तो हिस्सा मांगने ही आयेगी।
संजय मौके की नजाकत को देखकर चुप हो जाता है।
कविता को अपने भाई की बातें बहुत बुरी लग रही थीं। वह अपने पापा के सिरहाने बैठ कर रो रही थी। पिछले कुछ सालों की बातें उसके दिमाग में घूम रही थीं।
पापा: बेटी तूने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली अब क्या विचार है।
कविता: पापा मैं नौकरी करना चाहती हूं उसके लिये शहर जाना पड़ेगा।
पापा: ठीक है मैं तू नौकरी के लिये अप्लाई कर मैं तेरे साथ शहर चलूंगा।
कुछ ही दिनों में कविता की नौकरी पक्की हो जाती है। उसके पापा उसके साथ शहर आ जाते हैं। अच्छे से उसके रहने खाने का इंतजाम कर देते हैं। कुछ दिन उसके साथ रहकर वापस गॉव आ जाते हैं।
इस बात से संजय और उसकी पत्नि बहुत गुस्सा होते हैं। वे दोंनो हर दिन माता पिता से लड़ते थे। एक दिन दुःखी होकर पिता ने दोंनो से कहा
पिता: तुम अपना रहने का इंतजाम कहीं ओर कर लो हमें चैन से रहने दो ये लो एक लाख रुपये।
संजय अपनी पत्नि के साथ शहर आ जाता है। और नौकरी करने लगता है।
उसके बाद संजय कभी गॉव नहीं गया। जहां तक कि बहन की शादी में भी वह नहीं पहुंचा।
यही सब सोच कर कविता रो रही थी।
तभी उसके पिता ने आंख खोल कर अपनी बेटी को देखा उनकी आंखों में अब पहले जैसी चमक नहीं थी। अकेलापन और उदासी छायी हुई थी उन्होंने एक बार कविता को देखा और एक बार अपनी पत्नि को देखा। जो उनके पैरों के पास बैठी रो रही थी।
जैसे वे कह रहे हैं कि मेरे बाद तेरी मॉं का क्या होगा।
कविता: पापा आप मॉं की चिन्ता न करें इन्हें मैं अपने साथ रखूंगी।
कविता की बात सुनकर उनके चहरे पर संतोष के भाव आये लेकिन आंखों से आंसू बह निकले।
कुछ देर बाद उन्होंने आंखे बंद कर लीं और कुछ ही देर में प्राण त्याग दिये।
तेरह दिन तक घर में रिश्तेदारों का जमावड़ा लगा रहा रीति रिवाज होते रहे। तेरहवीं के बाद सब चले गये।
कविता: विकास क्या हम मॉं को अपने साथ रख सकते हैं।
विकास: हॉं क्यों नहीं लेकिन मेरी एक शर्त है।
कविता: वह क्या
विकास: यह पूरी जायदाद मॉं को संजय के नाम करनी होगी। जेवर रुपया सब कुछ, नहीं तो वह यही कहेगा जायदाद के चक्कर में मॉं को ले गये।
कविता ने संजय को बुला कर अपना फैंसला सुनाया, ओर पेपर तैयार करवा कर सब कुछ उसके नाम कर दिया।
चलते समय कविता ने संजय से कहा
कविता: भैया एक बाद याद रखना बेटिंया केवल दुख-दर्द बांटने आती हैं। जमीन जायदाद नहीं।
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