पैसों का प्यार | Emotional Story of Mother Father

Emotional Story of Mother Father

Emotional Story of Mother Father : ‘‘विशाखा तुम अपने पापा से ऐसे कैसे बात कर सकती हो’’। विनीता जी ने अपनी बेटी को डांटते हुए कहा।

विशाखा अभी भी अपने पापा रत्नलाल जी पर चिल्ला रही थी – ‘‘आपको तो बस अपने पैसों की पड़ी रहती है, ये नहीं कि बच्चों की क्या जरूरते हैं। मेरी सारी फ्रेंडस लग्जरी लाईफ जी रही हैं। और आप बस एक ही रट लगाये हैं कि शादी के लिये पैसा इकट्ठा करना है।’’

विनीता जी ने कहा – ‘‘बस करो विशाखा तुम्हारे सारे शौक तो हम पूरे कर नहीं सकते अपनी हैसियत भी देखनी चाहिये। तुम्हारे पापा की नौकरी से जो कुछ बचता है। उसमें तुम्हें हर महीने पॉकेट मनी मिल जाती है।’’

‘‘पॉकेट मनी? वाह मम्मी उसे आप पॉकेट मनी कहती हों। हर महीने हजार रुपये। इतने तो मेरे एक दिन में खर्च हो जाते हैं। मुझे नहीं पता मुझे इस महीने कम से कम पांच हजार रुपये चाहिये।’’ – विशाखा ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।

इधर रत्नलाल जी चुपचाप सिर झुकाये बैठे थे। बेटे की शादी की थी। वह शादी के बाद अलग हो गया। इधर बेटी की शादी के लिये पैसे भी जोड़ रहे हैं। अब बेटी को भी पूरा ऐशो आराम चाहिये। पचपन साल की उम्र में एक प्राईवेट नौकरी है उसका भी कोई भरोसा नहीं है। न जाने आगे खर्च कैसे चलेगा। यही सब सोच कर उनकी आखें नम हो चली थीं।

‘‘विनीता इसे पांच हजार रुपये दे दो इस महीने हम किसी तरह चला लेंगे।’’ – बेटी के तानों से परेशान रत्नलाल जी ने विनीता की ओर देख कर कहा।

‘‘आप इसकी आदत बिगाड़ रहे हैं। कभी हमने अपने उपर पांच हजार खर्च नहीं किये।’’ यह सुनकर विशाखा बोली – ‘‘ओ हो इसका मतलब आपके पास पैसे हैं पर देना नहीं चाह रहे। लाईये जल्दी से पैसे दीजिये।’’

‘‘विशाख तुम्हें दिखाई नहीं देता तुम्हारे पापा एक प्राईवेट नौकरी में दिन रात ऐड़िया रगड़ रहे हैं। वह भी पता नहीं कब चली जाये। बेटा है कि शादी होते ही अलग हो गया और अब बेटी को लग्जरी लाईफ जीनी है।’’ – विनीता जी ने कहा और अंदर चली गईं। अलमारी में से पांच हजार रुपये लाकर विशाखा के हाथ पर रखते हुए कहा – ‘‘आज तो दे रही हूं, लेकिन अगले महीने से कोई उम्मीद मत रखना हम तुम्हारे ऐशों आराम के जिम्मेदार नहीं हैं। दो वक्त की रोटी और कपड़ा मिल जाता है वही काफी है।’’

विशाखा पैसे लेकर मुंह बनाते हुए घर से बाहर चली गई।

‘‘सुनो जी कुछ अपने बारे में भी सोचो अपने बुढ़ापे के लिये भी पैसा इक्टठा करो।’’ विनीता जी ने कहा तो रत्नालाल जी का दर्द उमड़ पड़ा – ‘‘कहां से करू इक्टठा। सोचा था बेटा कमाने लगा तो कुछ सहारा देगा, लेकिन वह भी खिसक गया। उसे पता था बहन की शादी करनी है। फिर पापा कभी भी घर बैठ जायेंगे। अपना घर संभालने से ज्यादा उसने अपनी पत्नी के साथ ऐशो आराम की जिन्दगी को ज्यादा महत्व दिया।’’

विनीता जी बोली – ‘‘अब जो होना था हो गया। मैं चाहती हूं इसके भी हाथ पीले कर दो बाद में हम दोंनो किसी तरह अपनी गुजर बसर कर लेंगे।’’

रत्नलाल जी उठे और अपने कमरे में जाकर पलंग पर लेट गये।

इसी तरह समय बीतने लगा। एक दिन विशाखा ने शाम को घर आकर बताया – ‘‘पापा मैंने एक लड़का पसंद कर लिया है। हम सिम्पल कोर्ट मैरेज करेंगे। आपने जो भी पैसा मेरी शादी के लिये जोड़ा है, वो आप मुझे दे देना।’’

‘‘लेकिन बेटा जब शादी ही करनी है तो अच्छे से करते हैं उनके परिवार से मिल कर बात कर लेते हैं।’’ रत्नलाल जी ने कहा तो विशाखा ने कहा -‘‘नहीं पापा राजीव को यह सब पसंद नहीं है। उसने तो अपने घर पर बताया भी नहीं है। हम शादी के बाद अलग रहेंगे।’’

कुछ दिन घर में बहस होती रही हार कर रत्नलाल जी और विनीता जी ने बेटी की एफडी तुड़वा कर पैसे दे दिया। कोर्ट मैरेज के लिये विशाख सुबह निकली, तो विनीता जी ने कहा – ‘‘हम भी चलें क्या साथ?’’

‘‘नहीं मम्मी हम दोंनों होंगे और गवाह के लिये दो दोस्तों को बुलाया है। शादी करके मैं उनको साथ लेकर आ जाउंगी आपसे मिलने।’’ विशाखा ने टालते हुए कहा।

रत्नलाल जी सारी बात सुनकर खामोश बैठे थे। उन्होंने बस इतना कहा – ‘‘बेटी वो पैसों का क्या किया अपने बैंक में डाल दिये क्या?’’

विशाख ने कहा – ‘‘नहीं पापा वो राजीव को दे दिये हैं उन्हें बिजनेस शुरू करना है। साथ ही फ्लेट भी किराये पर लेना है। आज सब फाईनल हो जायेंगा।’’

विशाख सज संवर कर घर से निकल गई। शाम तक बेटी के इंतजार में घर सजा कर विनीता जी इंतजार करती रहीं लेकिन विशाखा नहीं आई। कई बार फोन किया लेकिन उसने फोन भी नहीं उठाया।

शाम को विशाखा का फोन आया – ‘‘क्या हुआ मम्मी कितनी मिस कॉल आई हैं आपकी?’’

विनीता जी ने कहा – ‘‘वो बेटी बस यही जानना चाहती थी तुम लोग कितनी देर में आ रहे हो।’’

‘‘नहीं मम्मी हम नहीं आ रहे। राजीव ने मना कर दिया। उसने कहा जब मैंने अपने घरवालों को छोड़ दिया तो तुम भी छोड़ दो। वैसे भी आपके पास अब बचा ही क्या है देने को मेरे पैसे मैंने ले लिये अब आप मुझे भूल ही जाओ।’’ विशाख का जबाब सुनकर विनीता जी का दिल धक से बैठ गया। वो वहीं सोफे पर बैठ गईं।

रत्नलाल जी ने देखा तो जल्दी से पानी लाकर उन्हें दिया पानी पीकर उन्होंने कहा – ‘‘क्या इसी दिन के लिये औलाद को पालते हैं। बच्चों की खुशियों में शामिल होने का हमें कोई हक नहीं है। क्या सारा रिश्ता बस पैसों का ही है।’’

रत्नलाल जी के पूछने पर उन्होंने सारी बात बता दी। आज उनकी बेटी की शादी थी। जिसके लिये रत्नलाल जी ने पूरा जीवन एक एक पैसा जोड़ा था। आज बेटी का जबाब सुनकर दोंनो गम में डूब गये।

आज घर में चूल्हा भी ठंडा पड़ा था। कुछ खाने का मन नहीं था। दोंनो ऐसे ही सो गये। सोना भी क्या दोंनो एक दूसरे से अपनें आंसू छिपाये अंधेरे में रो रहे थे।

एक सप्ताह ऐसे ही बीत गया। एक दिन उनका बेटा रवि घर आया और बोला – ‘‘आप लोगों ने विशाख की शादी कर ली और मुझे बताया भी नहीं। इतना पराया कर दिया, कि मैं अपनी बहन की शादी भी न देख सका।’’

‘‘वाह बेटा बड़ी जल्दी याद आ गई बहन की शादी की। वैसे भी हम ही शादी में शामिल नहीं हुए तो तुझे क्या बताते।’’ – विनीता जी ने सारी बात बता दी।

रवि ने तुरंत विशाख को फोन मिलाया दूसरी ओर से किसी के रोने की आवाज आई – ‘‘भाई मैं बहुत मुश्किल में हूं। राजीव मुझे धोखा देकर सारे पैसे लेकर भाग गया। मम्मी पापा को बताने की हिम्मत नहीं थी। मुझे आकर ले जा मेरे पास किराये के लिये भी पैसे नहीं हैं। हम हनीमून के लिये शिमला आये थे। होटल वालों की पेमेंट करनी है।’’

रवि ने सारी बात अपने मम्मी पापा को बताई और पैसों का इंतजाम करने जाने लगा तो रत्नलाल जी ने कहा – ‘‘रुक बेटा पैसे हैं मेरे पास चल हम भी साथ में चलते हैं। पता है तेरे पास?’’

रत्नलाल जी और विनीता जी जो अब तक बेटी के व्यवहार से दुःखी थे, बेटी पर मुसीबत का सुनकर उनका प्यार फिर से उमड़ पड़ा सब कुछ भूल कर। शिमला के लिये रवाना हो गये।