Best Moral Story in Hindi : विमला जी के घुटनों में काफी दर्द रहता था उनसे जमीन पर बैठा नहीं जाता था। इधर इनके पति सुधांशु जी की तबियत ठीक नहीं रहती थी।
घर में पैसे की कोई कमी नहीं थी। सुधांशु जी ने बहुत गरीबी से निकल कर एक बिजनेस खड़ा किया जिसमें उन्हें बहुत सफलता मिली पूरा जीवन अपने और अपने परिवार के लिये हर सुुख-साधन का इंतजाम करते रहे अपने दोंनो बेटों को अच्छी शिक्षा दिलाई इसके बाद दोंनो बेटों ने उनका बिजनेस संभाल लिया।
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लेकिन बिजनेस की बागडोर संभालते ही उन्होंने अपने पिता को घर बैठा दिया, और धीरे धीरे उनसे पूरा बिजनेस अपने कब्जे में ले लिया अब माता पिता उनके लिये घर में पड़े फालतू सामान से ज्यादा कुछ नहीं थे। वे दोंनो किसी तरह अपने दिन काट रहे थे।
अपने अच्छे दिनों में सुुधांशुु जी ने कुछ पैसा और जमीन जायदाद अपने लिये रखी थी जिसे उन्होंने किसी बेटे को नहीं दिया। उसी से थोड़ा सुकुन था।
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बिमला जी आज एक छोटी सी चौकी पर बैठ कर अलमारी के नीचे वाले हिस्से की सफाई कर रहीं थी। तभी उन्हें एक फोटो एलबम मिली। जिसे देख कर वे थोड़ी उदास हो गईं। उसमें उनके विवाह की फोटों थी। वे कुछ सोच कर उठीं और वह एलबम सुधांशु को देते हुुए बोली – ‘‘सुनों जी यह देखो आज सफाई करते समय क्या मिला। इसमें हमारी पुरानी यादें हैं’’
सुधांशु जी एलबम देख कर बहुत खुश हुए उन्होंने अखबार एक ओर रख दिया और एलबम खोल कर बैठ गये उन्होंने कहा – ‘‘अरे तुम भी बैठ जाओ मिल कर पुरानी यादें ताजा करते हैं।’’
बिमला जी ने कहा – ‘‘आप देख लो मैं अभी आती हूॅं। अलमारी खुली पड़ी है। यह कहकर वह चली जाती हैं।
सुधांशु जी एलबम का एक एक पेज पलटने लगते हैं। हर पेज में उनकी शादी की फोटों थीं।
हर फोटो को वो बहुत ध्यान से देख रहे थे। उसमें उनके तमाम रिश्तेदार थे। जिनमें से कुछ अब इस दुनिया में नहीं थे और कुछ से उन्होंने ही रिश्ता खत्म कर दिया था।
सुुधांशु जी के चहरे पर उदासी छाने लगती अगले ही क्षण अपने दोस्तों को शादी में नाचते देख कर उनके चहरे पर मुस्कुराहट छा जाती थी।
शादी की पूरी एलबम देखने के बाद पीछे के दो पेजों को देखते ही जैसे वे जम से गये। उनमें से एक पेज पर उनके परिवार की ब्लैक एंड व्हाईट कुछ पुरानी सी फोटो थी। जिसमें उनके माता पिता वो और उनकी छोटी बहन रज्जो थी।
रज्जो की फोटो देख कर उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। बचपन की वो यादें ताजा हो गईं जिसमें वे रज्जो के साथ खेलते थे, साथ साथ स्कूल जाते थे। उसके बाद किस तरह पिताजी ने और उन्होंने मेहनत करके पैसा कमाया और पहले रज्जो की शादी की।
रज्जो की शादी के कुछ ही दिन बाद पहले पिताजी फिर मॉं दोंनो इस दुनिया से चले गये। इधर सुधांशु जी पैसा कमाने में इतने बिजी हो गये कि वे अपनी बहन को तो भूल ही गये।
सुधांशु जी बिलख बिलख कर रो रहे थे। बिमला जी ने देखा तो वे पूछ बैठीं – ‘‘अरे क्या हुआ आप रो क्यों रहे हो तबियत तो ठीक है’’
सुधांशु जी ने कहा – ‘‘मैं पैसे कमाने के चक्कर में अपनी बहन को भी भूल गया। आज कितने बर्षों से वह हर साल मुझे राखी भेजती है लेकिन मैंने कभी उसकी राखी नहीं बांधी और उसके साथ एक चिट्ठी होती थी। जिसे मैंने कभी नहीं पढ़ा न कभी जबाब दिया।’’
बिमला जी ने कहा – ‘‘हॉं अपराध तो हम से हुआ है। शायद आज उसी की सजा भी हमें मिल रही है। हमारे पास पैसा है सब कुछ है लेकिन फिर भी हम अकेले हैं। आज अपने ही बेटों के लिये हम गैर हो गये, हमें उनके बर्ताव से कितना बुरा लग रहा है। ऐसे ही रज्जो को हमारी नफरत का कितना बुरा लगा होगा यह आज समझ आ रहा है। लेकिन छोटी होते हुए भी उसने अपना फर्ज हमेशा निभाया समय पर राखी भेजी लेकिन हमने कभी उसका हाल जानने की कोशिश नहीं की।
सुधांशु जी ने उसकी फोटो पर हाथ फेरते हुए कहा – ‘‘पैसे के घमंड में मैंने इसका बहुत दिल दुखाया था। याद है मेरी शादी पर जो तोहफा लाई थी वह भी मैंने वापस कर दिया कि इतना घट्यिा तोहफा हम नहीं ले सकते। जबकि मुझे पता था कि उसकी आर्थिक स्थिति सही नहीं है। लेकिन पैसे के घमंड से मेरे मन में यह बात घर कर गई थी कि मुझे किसी की जरूरत नहीं है। मेरे अपमान से आहत होकर वह चली गई और आज तक दुबारा मुझसे मिलने नहीं आई।’’
बिमला जी – ‘‘मैं तो नई नई थी इसलिये आपकी बात काट नहीं सकी लेकिन बुरा तो मुझे भी लगा था। इस घर में सबसे पहले उन्होंने ही मेरा स्वागत किया था। आप ने तो कभी उनकी राखी नहीं बांधी लेकिन मैंने उनकी हर राखी को संभाल कर रखा है।’’
सुधांशु जी ने कहा – ‘‘बिमला एक काम करो रक्षा बंधन आने वाला है इस बार हम दोंनो रज्जो के घर चलते हैं। उसे सरप्राईज देते हैं। मेरी छोटी बहन मुझे जरूर माफ कर देगी।’’
बिमला जी ने खुश होते हुए कहा – ‘‘हॉं यह ठीक है लेकिन राखी वाले दिन नहीं उससे दो दिन पहले चलेंगे पता नहीं उनकी स्थिती कैसी है। मैं उनके लिये घर का सामान और उपहार ले चलूंगी और हम उन्हें कुछ पैसे भी दे आयेंगे।’’
सुधांशु जी ने कहा – ‘‘हॉं ठीक है राखी के उपहार को वह मना भी नहीं करेगी आखिर एक भाई का हक होता है।’’
रक्षा बंधन से दो दिन पहले दोंनो अपनी कार से रज्जो के घर पहुुंच जाते हैं। कार से उतर कर सुधांशु जी देखते हैं। वही पुराना घर है जिसे कुछ मरम्मत करके नया जैसा बनाने की कोशिश की है।
घर के बाहर बरामदे में रमेश जी अखबार पढ़ रहे थे। घर के बाहर कर रुकने से वह बाहर देखने आये।
सुधांशु जी ने उन्हें देखा पहले तो वे पहचान नहीं सके कई साल बाद देखा था। सिर के बाल पक चुके थे चहरे पर गढ्ढे हो गये थे। बहुत कमजोर से लग रहे थे।
उन्हें पहचानने के बाद सुधांशु जी ने कहा – ‘‘क्या हुआ आपने हमें पहचाना नहीं मैं रज्जो का भाई।’’
यह सुनकर रमेश जी जैसे नींद से जागे उन्होंने कहा – ‘‘अरे भाई साहब आपके आने की उम्मीद नहीं थी। इसलिये पहचानने में समय लग गया।’’
रमेश जी बहुत खुश हुए उन्हें बरामदे मैं ले जाकर बैठाया अपने बड़े लड़के को आवाज दी – ‘‘बेटा मोहित देखो तुम्हारे मामा जी आये हैं पानी लेकर आओ।’’
कुछ देर में मोहित दो गिलास में पानी लेकर आया बिमला और सुधांशु जी पानी पी रहे थे। सुधांशु जी की नजरे रज्जो को ढूंढ रही थी। अब तक तो उसे खबर मिल गई होगी वह हमसे मिलने क्यों नहीं आई। क्या अभी तक नाराज है?
कुछ देर में चाय नाश्ता भी आ गया। अब सुधांशु जी के सब्र का बांध टूट गया। उन्होंने पूछ ही लिया – ‘‘रज्जो कहां है क्या कहीं बाहर गई है?’’
रमेश जी ने कहा – ‘‘आप चाय पीजिये वैसे राखी तो आपको मिल गई होगी।’’
सुधांशु जी ने कहा – ‘‘हॉं राखी तो मिल गई लेकिन मैंने सोचा इस बार रज्जो से खुद राखी बंधवाउंगा। इसलिये चले आये।
रमेश जी ने कहा – ‘‘आप चाय पीजिये फिर बात करेंगे’’
सुधांशु जी ने कहा – ‘‘नहीं पहले मैं रज्जो से मिलूंगा मुझे उससे अपने बर्ताव के लिये माफी मांगनी है। बाद में चाय पियेंगे।’’
रमेश जी ने कहा – ‘‘चलिये अंदर चलते हैं।’’
सुधांशु जी जैसे ही अंदर गये सामने दीवार पर रज्जो की तस्वीर जिस पर माला लगी थी। देखकर जड़वत् हो गया। बिमला जी फूट फूट कर रोने लगीं।
सुधांशु जी बोले – ‘‘यह कैसे हो गया मेरी बहन कहां चली गई।’’
रमेश जी की भी आंखों से आंसू झलक रहे थे। उन्होंने खुद को सम्हालते हुए कहा – ‘‘आपकी शादी से आने के बाद उसका दिल टूट गया था। वह आपको अपने पिता की तरह मानती थी। वहां से आने के बाद से ही बीमार रहने लगी धीरे धीरे उसकी बीमारी जानलेवा हो गई कोई भी दवा काम नहीं करती थी। मरने से दो महीने पहले उसने बहुत सारे लिफाफे और राखी मंगाईं जिनमें दिन भर बैठ कर चिठ्ठ्यिां लिख कर पैक करती रहती थी।’’
सुधांशु जी ने कहा – ‘‘यह सब कब हुआ?’’
रमेश जी ने कहा – ‘‘आपकी शादी के दो साल बाद ही वह हमें छोड़ कर चली गई। वही यही कहती थी। पता नहीं क्यों भैया नाराज हैं एक दिन जरूर अपनी छोटी बहन को माफ कर देंगे और मुझसे मिलने आयेंगे।’’
यह सुनकर सुधांशु जी फूट फूट कर रोने लगे। उन्होंने कहा – ‘‘बहन मुझे माफ कर दे पैसों के घमंड ने मुझे अंधा बना दिया था।’’
रमेश जी ने कहा – ‘‘अपनी आखरी इच्छा के रूप में उसने मुझ से कहा कि हर साल भैया को राखी भेजते रहना। इसलिये मैं तब से राखी भेज रहा हूं अब आप आ गये हैं तो बची हुई राखी के लिफाफे ले जाइयेगा’’
सुधांशु जी और बिमला जी का मन उचट गया था दोंनो उसी समय वहां से चल दिये पछतावे ने उनके पैरों को भारी कर दिया था।
Image Source : pexels
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