Bacchon ki Kahani : एक गॉव में एक पुराना सा कुंआ था। उस कुंए में एक मेंढक और मेंढकी रहते थे। गॉव के लोग उस कुंए से पानी नहीं भरते थे क्योंकि उस कुंए में गन्दा पानी था।
एक दिन मेंढक ने मेंढकी से कहा –
मेंढक: हम कब तक यहां रहेंगे चल यहां से बाहर चलते हैं।
मेंढकी: अरे बाहर जाकर क्या करोगी बिना पानी के हम रह नहीं सकते जब तक यह पानी सूख नहीं जाता इसी में रहते हैं। बाद में देखा जायेगा।
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लेकिन मेंढक नहीं मानता और वह मेंढकी से कहता है –
मेंढक: सुन मेंढकी मैं बाहर जा रहा हूं। अगर सब कुछ ठीक रहा तो मैं तुझे बुला लूंगा।
मेंढकी: सुनो कोई परेशानी आ जाये तो मुझे बुलाना मैं तुम्हारी मदद करने आउंगी।
मेंढक बड़ी मुश्किल से दीवार पर चढ़ते चढ़ते कुए से बाहर निकाल गया। बाहर आकर उसने देखा कि जमीन तो बहुत बड़ी है और उससे भी बड़ा आसमान है हमें तो कुए से छोटा सा आसमान दिखाई देता था।
वह फुदकता हुआ किसी तालाब की खोज में चल दिया जहां वह रह सके।
कुछ दूर जाने पर उसे एक तलाब मिला। वह तलाब में कूदने ही वाला था कि तलाब में से आवाज आई –
मेंढक आवाज सुनकर डर जाता है –
मेंढक: तुम कौन हो?
मछली: हम इस तलाब में रहने वाली मछली हैं। तुम यहां क्यों आये हो?
मेंढक: मैं इस तलाब में रहना चाहता हूं। कुंए में रहते रहते मैं बहुत परेशान हो गया था।
मछली: लेकिन इस तलाब में हमारा कब्जा है। हम शांति से तैरती रहती हैं तुम कूद कूद कर हमें परेशान करोगे। तुम कहीं और चले जाओ।
मेंढक: नहीं मैं बिल्कुल नहीं कूदूंगा। तैसे तुम तैरती हों मैं बिल्कुल शांत होकर तैरता रहूंगा।
यह सुनकर मछली ने उसे वहां रहने की इजाजत दे दी।
दो दिन तक मेंढक पानी से बाहर गर्दन निकाल कर हाथ पैर मारता रहा और तैरता रहा। लेकिन उसे यह सब अच्छा नहीं लगा रहा था। इसलिये उसने वहां से जाने की सोची। वह कूद कर बाहर आ गया।
मेंढक: इतनी बंदिश में कौन रहेगा।
वह आगे गया। वहां उसे एक गॉव दिखा। वहां एक आदमी नदी से मटकों में पानी भर कर ले जा रहा था।
मेंढक ने सोचा एक मटके में छिप जाता हूं। किसी को पता भी नहीं चलेगा।
मेंढक चुपके से एक मटके में बैठ जाता है। वह आदमी बहुत से मटकों में पानी भर कर उनका ढक्कन लगा देता है और गॉव की ओर चल देता है।
मटके का ढक्कन बंद होते ही मेंढक घबरा गया। उसने बहुत कोशिश की लेकिन वह निकल नहीं पाया।
उस आदमी ने मटके गॉव के बहुत से घरों में दे दिये।
उनमें से वह मटका जिसमें मेंढक बैठा था। वह गॉव के जमींदार का था। जमींदार ने अपने नौकर से कहा आज सर्दी बहुत है मुझे नहाना है तुम इस मटके का पानी गर्म कर दो।
नौकर ने उस मटके को चूल्हे पर चढ़ा दिया।
अब पानी गर्म होने लगा। मेंढक ने सोचा आज तो मर ही जाउंगा। अब कुछ नहीं हो सकता मटके का ढक्कन बंद है। मेंढकी सही कहती थी। जहां हैं वहीं रहते हैं।
वह भगवान से प्रार्थना करने लगा।
भगवान मुझे बचा लो मैं अपनी मेंढकी के पास उसी कुए में जाना चाहता हूं।
कुछ देर बाद तेज हवा चलने लगी। जिससे चूल्हा बुझ गया।
जमींदार ने नौकर से कहा अरे हवा से चूल्हा बुझ गया। ढक्कन खोल कर देख पानी कितना गर्म हुआ है नहीं तो चूल्हे को दुबारा जला।
नौकर ने जैसे ही ढक्कन खोला। मेंढक तेजी से कूद कर मटके से बाहर आ गया। किसी ने उसे भागते नहीं देखा वह कूदता कूदता कुए के पास आ गया।
मेंढक ने फटाफट कुए में छलांग लगा दी।
मेंढकी: हो गई सैर मैंढक जी या अभी और घूमना बाकी है।
मेंढक: नहीं तुम सही कहती थीं। जो मिला है उसमें सब्र करना चाहिये। आज तो मैं मरते मरते बचा।
फिर मेंढक ने सारी बात मेंढकी को बताई।
मेंढकी: भगवान का शुक्र है तुम बच गये। आज से सब कुछ छोड़ कर भगवान का ध्यान करते हैं। जिससे हमें इस सबसे मुक्ति मिले।
इसके बाद दोंनो जीवन भर वहीं रहकर भगवान का ध्यान करने लगे।
Image Source : Playground
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