उपकार | Short Moral Story in Hindi

Short Moral Story in Hindi
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Short Moral Story in Hindi : अभी गाड़ी प्लेटफार्म पर पहुंची ही थी। रितेश जल्दी से उतर गये। सामने एक स्टाल से नमकीन के पैकट एक पानी की बोल खरीदने लगे। क्योंकि गाड़ी यहां दो मिनट ही रुकती है।

जल्दी से सारा सामान लेकर ट्रेन में चढ़ गये। सपना ने टोकते हुए कहा … ऐसी भी क्या जल्दी थी … कहीं ट्रेन चल देती तो क्या करते। दो घंटे का ही तो सफल बचा था … रितेश ने मुस्कुराते हुए कहा … चलो ट्रेन छूटी तो नहीं और फिर तुम्हें प्यास भी तो लगी थी।

दोंनो हसने लगे बातों बातों में दो घंट कब बीत गये पता भी नहीं चला। झांसी स्टेशन पर उतरे ही थे की बहुत से कुली सामान उठाने की जिद करने लगे।

एक कुली तो सामान सर पर रख ही चुका था। सपना ने कहा … अरे आप सामान छोड़ दो हमें कोई लेने आ रहा है। रितेश ने उसकी ओर प्रश्न भरी नजरों से देखा … लेकिन सपना ने उस कुली को डांटते हुए कहा समझ नहीं आ रहा रख दो सामान … बेटी दोपहर हो रही है सुबह से एक भी सामान नहीं उठाया … लेने वाला बाहर ही तो आयेगा बाहर तक जाने के लिये इस ओवरब्रिज से जाना पड़ेगा।

रितेश ने कहा अच्छा बाबा आप सामान उठा लो। तभी सपना बोली … आपको नहीं पता बाहर जाकर ये अनाप शनाप पैसे मांगेगा … रितेश ने उसकी बात सुनकर कुली को रोका … बाबा कितने पैसे लोगे दो सूटकेश के … बाबूजी जो चाहें दे देना … तुम्हारे भरोसे खाना खा लूंगा … नहीं बाबा पहले ठहरा लो बाद में चिकचिक नहीं करना … सपना ने अड़ते हुए कहा।

बेटा पचास रुपये बनते हैं … तुम जो चाहो दे देना … रितेश चलो बाबा कोई बात नहीं … वह बूढ़ा कुली बड़ी मुश्किल से सामान उठा कर ब्रिज पर चढ़ रहा था … सपना रितेश पर बरसते हुए … कोई हट्टा कट्टा कुली नहीं कर सकते थे।

इस बुढ्ढे से तो सामान लेकर चढ़ा भी नहीं जा रहा … रितेश ने मुस्कुराकर कहा … कोई बात नहीं हमें कौन सी जल्दी है … वैसे कौन आ रहा है हमें लेने।

सपना … अरे वो तो मैंने ऐसे ही कह दिया था … ये लोग समझते हैं अनजान है ज्यादा से ज्यादा लूट लो।

जैसे तैसे दोंनो बाहर पहुंचे रितेश ने कैब बुक कर ली थी … उसने बूढ़े कुली को सौ रुपये का नोट पकड़ाया … नोट देख कर कुली बोला … बाबूजी मेरे पास एक पैसा भी नहीं है खुले दे दीजिये … सपना अरे रुको मेरे बेग में हैं पचास रुपये … अरे ये क्या मेरा हेंडबेग तो ट्रेन में ही छूट गया … क्या रितेश के मुंह से निकला।

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वे कुली को बिना पैसे दिये ब्रिज की ओर दोड़ लिये … पीछे पीछे कुली ने आवाज दी … रुको साहब मैं लाता हूं आपका पर्स … ट्रेन में नहीं मिलेगा। यह सुनकर रितेश रुक गया।

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उसे छोड़ कर वह बूढ़ा कुली भागता हुआ फुट ओवर ब्रिज पर चढ़ गया और भागते हुए प्लेटर्फाम पर पहुंच गया … सपना दोंनो सूटकेश संभाल रही थी … रितेश भागता हुए उसके पीछे पीछे पहुंच गया।

लेकिन प्लेटर्फाम पर कोई नहीं था … रितेश इधर उधर देखता रहा लेकिन कोई नहीं मिला … रितेश परेशान सा यहां वहां भागता रहा फिर उसने सोचा चलो सपना के पास चलता हूं … जैसे ही वह सपना के पास पहुंचा उसने देखा वह बूढ़ा कुली जमीन पर बैठा हांफ रहा था … बाबा आप ठीक तो हैं … सपना उससे बार बार पूछ रही थी।

रितेश ने पहुंच कर पूछा … क्या हुआ? सपना ने बेग दिखाते हुए कहा … बाबा ले आये बैग सफाई वाला लेकर चला गया था … बता रहे हैं उससे लड़ झगड़ कर लाये हैं … आने जाने में इनकी सांस चढ़ गई … रितेश ने उन्हें पानी पिलाया।

पानी पीकर वो थोड़ा ठीक हआ तो खड़े होकर कहने लगा … साहब हमें पता है इस समय कौन सफाई करेगा … आप ट्रेन में ढूंढते तो वहां बैग नहीं मिलता … बड़ी मुश्किल से लाया हूं … रितेश बाबा आप भूखे प्यासे हमारे पर्स के लिये भाग रहे थे … आपका यह उपकार हम कैसे उतारेंग।

सपना की आंखों में आंसू छलक उठे थे … बेटी अपना बैग चैक कर लो सब सही है न … बाबा सब ठीक है … तभी रितेश ने जेब से निकाल कर पांच सौ रुपये दिये … नहीं बेटा बस पचास रुपये दे दो खुले … मैं खाना खा लूंगा … बस एक बात याद रखना बेटा … हर आदमी लूटता नहीं है … सब एक से नहीं होते।

बहुत कहने पर भी उसने पैसे नहीं लिये और अपने पचास रुपये लेकर सामने ढाबे की ओर चल दिया।

रितेश और सपना एक दूसरे को देख रहे थे … क्यों हमें हर आदमी चोर नजर आता है … एक गरीब बूढ़ा आदमी एक उपकार हमारे उपर चढ़ा गया जिसे शायद ही कभी उतारा जा सके

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Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.