Padmini Ekadashi Vrat Katha : प्रत्येक वर्ष में एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है। वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं। किन्तु 32 मास के बाद पड़ने वाले अधिक मास या मलमास में 2 एकादशियां और आती हैं। इसी कारण अधिक मास वाले वर्ष में 26 एकादशियां आती है। ये दो एकादशियां
1. पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष)
2. परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष)
पद्मिनी एकादशी का विशेष महत्व है। अधिक मास में पड़ने के कारण इस एकादशी के दिन व्रत पूजन व भगवान की कथा सुनने से निःसन्तान को सन्तान की प्राप्ति होती। पति और बच्चों की लम्बी उम्र के लिये यह व्रत किया जाता है। इस व्रत के कारने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। घर में धन-धान्य व सुख शांति का कभी अभाव नहीं रहता है। आइये जानते हैं इस व्रत की विधि।
पद्मिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि (Padmini Ekadashi Vrat Katha)
- प्रात शुद्ध जल, कुशा व आंवले का चूर्ण डाल कर स्नान करें।
- सफेद वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु के मन्दिर जायें।
- शाम के समय उपवास पूरा करें।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- भगवान विष्णु जी को ध्यान में रख कर पूजा करें व जमीन पर सोएं।
पद्मिनी एकादशी की व्रत कथा (Padmini Ekadashi Vrat Katha)
एक समय की बात है एक परम प्रतापी राजा कृतवीर्य राज किया करते थे उनकी 1000 रानियां थीं, किन्तु उन्हें पुत्र की प्राप्ति न हो सकी। राजा बहुत चिंतित रहते थे। क्योंकि उनका वंश चलाने वाला कोई नहीं था। इसी कारण उन्होंने अपनी प्रिय रानी पद्मिनी के साथ तपस्या करने का विचार किया। राजा ने अपने राज्य का कार्यभार अपने मंत्री को सौंप दिया और वन की ओर चल दिये।
वन में राजा और रानी ने कई वर्षों तक तपस्या की, किन्तु उन्हें पुत्र का सौभाग्य नहीं मिल सकता तब एक दिन माता अनसुया ने पद्मिनी रानी से कहा कि 32 माह बाद अधिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को व्रत व रात्रि जागरण करने से तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।
इस व्रत के पूर्ण होने पर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिये वरदान दिया। जिससे उनके घर कार्तवीर्य नाम का गुणवान पुत्र उत्पन्न हुआ। यह पुत्र आगे चल कर इतना विद्वान, बलशाली हुआ कि इसे केवल भगवान के अलावा कोई भी पराजित नहीं कर सकता था।
इस व्रत को करने वाले भगवान विष्णु के प्रिय बन जाते हैं। यह व्रत मोक्ष प्राप्ति का उत्तम साधन है।
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