हरियाली तीज 2023 | 19 अगस्त 2023 (18 अगस्त 8 बजकर 1 मिनट से शरू होकर 19 अगस्त 20 बजकर 19 मिनट पर समाप्त) |
शुभ मुहूर्त | सुबह 7 बजकर 30 मिनट से 9 बजकर 18 मिनट तक व दोपहर 12 बजकर 25 मिनट से शाम 5 बजकर 19 मिनट तक |
Hariyali Teej Vrat Katha : तीजपर्व सुहागिनों का महापर्व है। जो हर किसी विवाहिता के लिए महत्त्व रखता है।सुहागन स्त्रियाँ अपने पति के सुख-शान्ति, समृद्धि और लम्बी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं। इस दिन औरतें नई नवेली दुल्हन की तरह सज-धजकर तैयार होती हैं और बड़े ही श्रद्धा एवं भक्ति के साथ इस व्रत को रखती हैं।
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कहा जाता है कि माता पार्वती ने 107 जन्मों तक भगवान् को अपना पति के रूप में पाने के लिए तपस्या करती रही। तब 108 वें जन्म में भगवान् शंकरजी को माता पार्वती की भक्ति का अहसास हुआ और उन्होंने पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
माता पार्वती ने उस दिन को महिलाओं के लिए शुभ घोषित करते हुए कहा— ‘जो भी स्त्री इस दिन शंकरजी को स्मरण करेगी, उसका वैवाहिक जीवन मंगलमय और सुखमय व्यतीत होगी।’ तभी से इस दिन शादी-शुदा औरतें इस व्रत को मनोयोग से करती आ रही हैं। मुख्य तौर पर इस दिन माता पार्वती और भगवान् शंकरजी की पूजा की जाती है।
हरियाली तीज की पूजन-विधि (Hariyali Teej Puja Vidhi)
भाद्रपद शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को हस्त-नक्षत्र में प्रातःकाल दिनभर का निर्जला व्रत रखें। इस पर्व में सर्वप्रथम- ‘उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरतालिका तीज व्रतमहं करिस्ये।’ मंत्र का संकल्प करके मकान को सुशोभित कर पूजा सामग्री एकत्र करें।
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संध्या के समय स्नानकर शुद्ध व उज्ज्वल वस्त्र धारण कर भगवान् शंकरजी तथा माता पार्वती की मूर्ति का विधिवत् पूजन करें और धोती एवं अंगोछा चढ़ावें। बाद में सुहाग सामग्री किसी ब्राह्मणी को तथा धोती एवं अंगोछा ब्राह्मण को दान करें।
पुनः तेरह प्रकार के मिट्ठे व्यंजन सजाकर रुपयों सहित सास को देकर उनका चरणस्पर्श करके अनन्तर अल्पाहार अथवा फलाहार कर अपना व्रत तोड़ें।
हरियाली तीज की व्रत कथा (Hariyali Teej Vrat Katha)
प्राचीन काल में माता पार्वती अपने 108वें जन्म में भगवान् शंकरजी को पति के रूप में पाने के लिए गंगा के तट पर बारह वर्षोंतक कठिन तपस्या की।
वह श्रावण की मुसलाधार वर्षा में भी बिना अन्न-जल खाये खड़ी रहती थी। ज्येष्ठ मास के तपती धूप में चारों ओर अग्नि जलाकर बीच में खड़ी सूर्य को देखती रहती थी। यह देखकर पार्वती के पिता हिमालय काफी दुःखी रहते थे।
वे पार्वती के विवाह के लिए हमेशा चिंतित रहते थे। एक दिन नारदजी हिमालय के घर पधारे और हिमालय से बोले—‘हे पर्वतराज! मुझे साक्षात् विष्णु ने आपके पास भेजा है। वे आपकी कन्या से प्रसन्न होकर उससे विवाह करना चाहते हैं।’ यह सुनकर हिमालय काफी खुश हुए। वे शीघ्र ही इस विवाह प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
पार्वती को जब यह पता चला कि उसका विवाह विष्णु से होने वाला है। वह गुप्त रूप से अपनी सखियों के साथ जंगल में भाग गयी और समुद्र किनारें जाकर शंकरजी की अराधना करने लगी।
भाद्रपद शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को हस्त-नक्षत्र था, उस दिन उसने रेत में शिवलिंग का निर्माण कर विधिपूर्वक व्रत की और रातभर शंकरजी का स्तुति कर जागती रही।
पार्वती की इस कष्टसाध्य तपस्या के प्रभाव से शिवजी का आसन डोलने लगा। उनकी समाधि टुट गयी। वे पार्वती से खुश होकर उसके सामने प्र्रकट हुए और वर माँगने को कहा।
पार्वती अपने तपस्या के फलस्वरुप शंकरजी को पाकर कहा,- ‘मैंने हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ। यदि सचमुच में आप मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहाँ पधारे हैं, तो मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें।’
तब शंकरजी ने पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस प्रकार भाद्रपद के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को अराधना के द्वारा पार्वती ने शिवजी को अपने पति के रूप में प्राप्त की थी। इसलिए इस तिथि को व्रत करने वाली सभी कुमारियों को मनोवांछित फल मिलता है। सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूर्ण निष्ठा एवं भक्ति के साथ करना चाहिए।
हरितालिका की यह कथा सुनने का भी विशेष महात्म्य है। इस व्रत का पालन करने से स्त्रियों का सौभाग्य अखण्डित रहता है। जो सौभाग्यवती स्त्रियाँ यह व्रत नहीं रखती, कुछ वर्ष व्रत कर फिर नहीं करती, व्रत रखते हुए कुछ खा-पी लेती हैं।
उन्हें इस जन्म तथा दूसरे जन्म में अनेक प्रकार के संकट उठाने पड़ते हैं। यदि कोई कारणवश उस तिथि को कोई सौभाग्यवती स्त्री यह व्रत नहीं कर सकती तो वह अपने पति या किसी ब्राह्मणी द्वारा भी इसका व्रत पूरा करा सकती है।
Image from : Imagesarovar.com
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