सबक जिन्दगी का | Emotional Short Story

Emotional Short Story
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Emotional Short Story : सुबह छः बजे की ट्रेन पकड़ने के चक्कर में तीन बजे उठ कर पीयूष ने जल्दी जल्दी तैयार होना शुरू किया। अभी वह अपने कमरे से निकल कर बाहर आया ही था, तो देखा मम्मी खाना बना रहीं थीं।

पीयूष: मम्मी आप क्यों परेशान हो रही हैं। मैं कुछ स्टेशन पर खा लेता।

मम्मी: नहीं बेटा बाहर का खाना खाने की क्या जरूरत है मैंने खाना पैक कर दिया है लेता जा।

पियूष ने जल्दी से कैब बुक की कुछ ही देर में कैब आ गई। उसने जल्दी से मम्मी के पैर छुए और स्टेशन के लिये रवाना हो गया।

टाईम से पहुंच कर पीयूष को बहुत सुकून मिला। समय पर गाड़ी चल दी। पीयूष अपना सामान सेट करके बैठ गया।

धीरे धीरे गाड़ी में सवारियां एक दूसरे से बात करने लगी। पियूष को भूख लगी तो आचार के साथ परांठे निकाल कर खाने लगा। मम्मी के हाथ के परांठे और चाय पीकर मजा आ गया उसके बाद वह बाहर के नजारे देखने लगा।

पीयूष बहुत खुश था वह जा रहा था अपनी बहन को लेने।

तभी पापा का फोन आ गया।

पापा: बेटा अच्छे से बैठ गया ट्रेन में कोई परेशानी तो नहीं हुई।

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पियूष: हां पापा आप चिन्ता मत करो सब ठीक है।

शाम होते होते ट्रेन लेट हो गई उसे स्टेशन पर रात को दस बजे पहुंचना था। लेकिन ट्रेन चार घंटे लेट चल रही थी।

पीयूष को चिंता होने लगी। अगर ट्रेन रात दो बजे पहुंचेगी तो वह कैसे दीदी के घर पहुंचेगा। क्या उस छोटे से स्टेशन पर रुकना सही रहेगा।

इसी चिन्ता में बैठा था कि मम्मी का फोन आ गया।

मम्मी: बेटा तेरे पापा बता रहे थे ट्रेन चार घंटे लेट है।

पीयूष: मम्मी चिन्ता मत करो दो तीन घंटे की बात पड़ेगी। स्टेशन पर वेटिंग रूम होता है वहां रुक जाउंगा सुबह छः बजे सवारी मिल जायेगी गॉव के लिये।

रात को दो बजे पियूष को ट्रेन ने एक छोटे से स्टेशन पर उतार दिया। ठंड से उसकी हालत खराब हो रही थी। पूरे स्टेशन पर कोई भी नहीं था। यह देख कर वह और डर गया।

वह स्टेशन पर चलते चलते स्टेशन मास्टर के ऑफिस के सामने पहुंच गया।

पीयूष: सर मुझे मुंगेर जाना था। यहां कोई सवारी मिल जायेगी क्या।

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स्टेशन मास्टर: अरे छोरे तू कहां उतर गया इस स्टेशन पर यहां कोई सवारी नहीं मिलेगी सुबह ही तांगे वाले आयेंगे।

पीयूष: सर यहां वेटिंग रूम तो होगा।

स्टेशन मास्टर: यहां कोई वेटिंग रूम नहीं है। छोटा सा स्टेशन है।

पीयूष: सर क्या मैं यहां एक कोने में रुक सकता हूं।

स्टेशन मास्टर: नहीं यहां हम किसी को नहीं रुका सकते। एक काम कर स्टेशन के पीछे एक चाय की दुकान है वहां एक लड़का काम करता है। नाम तो उसका पता नहीं सब उसे छोटू बुलाते हैं। उसे जगा ले वहीं रुक जाना वो तुझे चाय भी पिला देगा।

पीयूष: जल्दी से उस तरफ जाने के लिए तैयार हो गया।

स्टेशन मास्टर: देख लड़के इधर उधर मत घूमियों यहां लुटेरे रात को घूमते हैं किसी को भी मार कर उसका सामान लूट लेते हैं।

पीयूष की अंदर तक रूह कांप गई वह जल्दी से उस चाय के खोखे में पहुंच गया।

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वहां पहुंच का उसने जोर से आवाज लगाई छोटू छोटू

कुछ देर में दस-बारह साल का लड़का फटे हुए कपड़े पहले सामने आया।

छोटू: कौन हो साहब क्या चाहिये?

पीयूष: कोई बड़ा नहीं है यह चाय की दुकान कौन चलाता है? अपने मालिक को बुला।

छोटू: मालिक तो सुबह ही आयेंगे और कोई नहीं है यहां।

पीयूष: अच्छा मुझे यहां कुछ देर रुकना था। सुबह चला जाउंगा।

छोटू: ठीक है साहब अन्दर सामान रख दीजिये चाहें हो वहीं सो जाईये।

पीयूष: तू यहां नौकरी करता है।

छोटू: हां साहब। चाये पियेंगे क्या?

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पीयूष: हां बना ले। सुन अपने लिये भी बना लियो मैं पैसे दे दूंगा।

छोटू चपचाप चाय बनाने लगा।

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थोड़ी देर में वह भी अंदर आ गया। चाय देकर वह एक कोने में बैठ कर पीने लगा।

पीयूष: तुझे यहां अकेले डर नहीं लगता।

छोटू: नहीं साहब यही मेरा ठिकाना है मैं बचपन से यहीं रहता हूं।

पीयूष: लेकिन मैंने सुना है यहां लूटेरे घूमते हैं।

छोटू: हां साहब जब कोई नहीं मिलता तो यहीं आकर मुझे परेशान करते हैं चाय पीने के लिये।

पीयूष यह सुनकर डर जाता है।

छोटू: डरो नहीं साहब अब कोई नहीं आयेगा।

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पीयूष: क्यों?

छोटू: अब यहां कोई ट्रेन नहीं आयेगी। सुबह ही गाड़ी आयेगी अब।

पीयूष: अच्छा कुछ अपने बारे में बता तेरा असली नाम क्या है?

छोटू: हम लोगों का नाम नहीं होता साहब कोई कुछ भी बोल देता है मतलब तो बुलाने से होता है।

पीयूष: तेरा घर परिवार?

छोटू: कोई नहीं है साहब अब तो जो कुछ है यही है।

पीयूष: कितने पैसे हुए।

छोटू: रहने दो साब।

पीयूष: नहीं तू रख ले अपने मालिक को मत बताईयो।

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छोटू: साब मैंने आज तक एक रुपये की बेईमानी नहीं की। वैसे भी मैं पैसे का क्या करूंगा।

पीयूष: तुझे कभी ऐसा नहीं लगता यहां से कहीं चले जायें।

छोटू: नहीं साहब मेरी तो यही दुनिया है। मालिक बहुत अच्छे हैं। कभी मुझे डाटते नहीं और कोई ग्राहक उल्टा सीधा बोलता है तो उसे भगा देते हैं।

पीयूष: तुझे नहीं लगता कि पढ़ना चाहिये। स्कूल जाना चाहिये।

छोटू: साहब हम जैसे लोग इन्हीं जगहों पर पड़े रहते हैं यहीं बड़े होते हैं फिर यहीं मर जाते हैं।

पीयूष सोच में पड़ गया। कि कितना कुछ है उसके पास मां-बाप, बहन, रहने को घर, मोबाईल, पढ़ने के लिये बढ़िया स्कूल था, अब कॉलेज है, पॉकेट मनी भी अच्छी मिल जाती है। जहां चाहें घूमने चले जाते हैं। फिर भी कितने शिकायते हें अपने परिवार से।

इसका क्या जिसका परिवार ही नहीं है। फिर भी कितना संतोष है इसके चहरे पर। न पैसे का लालच, न कुछ पाने की इच्छा, न कुछ खोने का डर।

तभी पीयूष ने देखा छोटू वहीं कोने में एक फटे से कंबल को ओढ़ कर सो गया।

पीयूष को लगा जैसे उसने उसके आराम के पलों को भी उससे छीन लिया। छोटू बेखबर सो रहा था।

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पीयूष की आंखों से आंसू बह रहे थे। जिन्दगी से कल तक कितनी शिकायते थीं। कितनी बार पापा से झगड़ा करता था। बाईक के लिये, कभी दोस्तों के साथ घूमने के लिये, कभी आई फोन के लिये। क्या कभी सोचा कि मम्मी-पापा ये सब कहां से लायेंगे।

इसी सोच विचार में पीयूष की आंख लग गई।

किसी ने झकझोर कर जगाया।

छोटू: साहब। चाय पी लीजिये।

पीयूष: ने चाय का कप हाथ में पकड़ा।

छोटू: साहब दिन निकल आया है आपको सवारी मिल जायेगी। अगर मालिक आ गया तो गुस्सा करेगा।

पीयूष चाय पीकर बाहर निकला तो देखा छोटू दुकान की सफाई कर रहा था। उसने छोटू को कुछ पैसे देने चाहे लेकिन उसने मना कर दिया।

छोटू: साहब अगर मालिक ने यह पैसे देख लिये तो, इतने सालों से जो विश्वास वो करते हैं वो टूट जायेगा फिर मुझे रात को यहां रुकने नहीं देंगे।

छोटे से बच्चे से जिन्दगी का सबक सीख कर पीयूष तांगे में बैठ कर अपनी बहन के घर के लिये रवाना हो गया।

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आज उसके मन में अपने माता-पिता के लिये सम्मान बहुत बढ़ गया। अब उसे अपने सारे सुख फीके लगने लगे।

Image Source : Playground

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