किसान के आलसी बेटे | Motivational Story in Hindi : एक गॉव में मुरलीधर नाम का एक किसान अपने परिवार के साथ रहता था। उसके परिवार में उसके 2 बेटे आदर्श और कृष्णा थे। मुरलीधर बहुत मेहनत करता था। लेकिन उसके दोंनो बेटे बहुत आलसी थे।
मुरलीधर अपने बेटों की इस आदत से बहुत परेशान रहता था। एक दिन उसने अपनी पत्नि विभा से कहा ‘‘हमारे दोंनो बेटे घर में पड़े रहते हैं। क्या ये कभी कोई काम करेंगे या नहीं’’
विभा ने दुःखी होते हुए कहा – ‘‘आप काम की बात कर रहे हो ये तो खाने के अलावा उठ कर बैठते भी नहीं हैं दिन भर बिस्तर पर लेट कर सोते रहते हैं।
मुरलीधर सुबह तड़के ही खेत पर जाने के लिये निकल जाता था। एक दिन उसने सोचा क्यों न मैं बीमारी का बहाना बना कर घर पर रुक कर अपने बेटों को खेत पर भेजूं। यह सोच कर उसने पेट दर्द का बहाना किया और अपने दोंनो बेटों से कहा – ‘‘बेटा आज मेरी तबियत ठीक नहीं है और खेतों में कटाई करना बहुत जरूरी है तुम दोंनो आज खेत पर जाकर कटाई का काम करो।’’
यह सुनकर आदर्श ने कहा ‘‘पिताजी आप चिन्ता न करें हम दोंनो अभी जाकर कटाई शुरू कर देते हैं।’’
मुरलीधर बहुत खुश हुआ उसने जल्दी से अपने बेटों को काम समझा कर खेत पर भेज दिया।
उनके जाने के बाद मुरलीधर ने अपनी पत्नि विभा से कहा – ‘‘तुम तो बेकार ही इन्हें आलसी कहती रहती हों देखो आज मेरे दोंनो बेटे जाकर खेत काटेंगे और मेहनत करेंगे।’’
यह सुनकर विभा हंसने लगी फिर उसने अपनी हंसी रोक कर कहा – ‘‘आपसे ज्यादा मैं अपने बेटों को जानती हूॅं। आप कल जाकर देखना वे दोंनो एक तिनका भी नहीं काटेंगे।’’
यह सुनकर मुरलीधर बोला – ‘‘चलो कल पता लग जायेगा। वे दोंनो आलसी हैं या मेहनती’’
शाम को दोंनो बेटे वापस आ जाते हैं। मुरलीधर उनसे पूछता है ‘‘बेटा खेत पर कितना काम हुआ।’’
इस बार कृष्णा जबाब देता है ‘‘पिताजी आप तो बेकार में परेशान हो रहे थे हमने तो एक ही दिन में पूरा खेत साफ कर दिया।’’
मुरलीधर, विभा की ओर देखकर बोला ‘‘देखा मेरे बेटे कितने मेहनती हैं। तुम तो बेकार में इन पर शक करती हों’’
इस पर विभा बोली ‘‘मैं तो आंखों देखी पर विश्वास करूंगी’’
अगले दिन मुरलीधर खेत पर पहुंच जाता है। उसका पूरा खेत कट चुका था। वह बहुत खुश हुआ उसने अपने दोंनो बेटों से कहा – ‘‘तुमने बहुत अच्छा काम किया है। लेकिन तुमने एक ही दिन में इतना काम कैसे कर लिया इसमें तो कम से कम दस दिन लगते’’
तभी आदर्श बोला ‘‘पिताजी हमने आस पास के गॉव वालों को बुलाया और कहा इस पूरे खेत को एक दिन में काट दो उन्होंने पूरा खेत एक दिन में काट दिया हम तो वहां पेड़ के नीचे सो गये थे।’’
मुरलीधर बोला ‘‘क्या और फसल का क्या हुआ’’
तभी कृष्णा बोला ‘‘जिस गॉव वाले से जितनी काटी गई वो उतनी ले गया यहां तक कि कुछ गॉव वाले तो फसल का गट्ठर घर रखकर दुबारा फसल काटने आ गये। देखते ही देखते पूरा खेत कट गया।’’
यह सुनकर मुरलीधर ने अपना सर पकड़ लिया ‘‘हे भगवान तुम दोंनो ने पूरे साल की मेहनत एक दिन में मिट्टी में मिला दी। इससे तो तुम दोंनो घर पर ही रहते’’
यह देखकर विभा बोली ‘‘अब हम पूरे साल अपना पालन पोषण कैसे करेंगे इन मूर्खों ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा’’
मुरलीधर को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे वह निराश होकर घर आ गया।
अदार्श ने घर आकर कहा ‘‘पिताजी आपने खेत काटने के लिये कहा था आपने यह नहीं कहा था कि फसल को घर लाना है। वैसे भी हम लोग इतनी मेहनत नहीं कर सकते।’’
अगले दिन मुरलीधर ने कहा ‘‘तुम दोंनो को यह घर छोड़ कर जाना होगा मैं तुम्हारा बोझ अब नहीं उठा सकता में और मेरी पत्नि किसी तरह गुजर बसर कर लेंगे चलो निकलो यहां से’’
मुरलीधर दोंनो बेटों को घर से निकाल देता है। दोंनो पूरे दिन भूखे प्यासे गॉव में भटकते रहते हैं। शाम तक उनका भूख से बुरा हाल हो जाता है। किसी तरह वे एक पेड़ के नीचे रात काटते हैं।
अगले दिन वे दोंनो एक बनिये के खेत पर पहुंच जाते हैं।
आदर्श बनिये से कहता है ‘‘सेठ ही हमें कुछ खाने को दे दीजिये बदले में आप जो भी काम कहेंगे हम कर देंगे’’
सेठ उन दोंनो को खाना खिला देता है। बदले में पूरे दिन उनसे मजदूरी करवाता है।
शाम को दोंनो उसी पेड़ के नीचे आ जाते हैं।
कृष्ण आदर्श से कहता है ‘‘अगर हमने अपने माता पिता का साथ दिया होता तो आज हमें यह सब नहीं देखना पड़ता और हमारे कारण हमारे माता पिता भी भूखे मर रहे होंगे।’’
तभी आदर्श कहता है – ‘‘हॉं भाई तू ठीक कहता है चल हम दिन में सेठ के खेतों में मजदूरी करेंगे और रात को अपने खेतों पर काम करेंगे। कड़ी मेहनत करके फसल उगायेंगे।
दोंनो भाई दिन रात मेहनत में जुट जाते हैं। इधर मुरलीधर एक सेठ की दुकान पर नौकरी कर लेता है और कम तन्ख्वाह में किसी तरह अपनी गुजर बसर कर रहा था।
इसी बीच गॉव में एक प्रतियोगिता होती है। जिसमें सबसे अच्छी फसल के लिये ईनाम दिया जाना था। मुरलीधर भी प्रतियोगिता देखने पहुंच जाता है। जब ईनाम की घोषणा होती है। तो पहला पुरस्कार मुरलीधर को मिलता है। यह देखकर वह कहता है – आपसे कोई गलती हुई मेरी फसल तो पहले ही बर्बाद हो चुकी है।
तभी गॉव का जमींदार कहता है “मुरली भाई यह कमाल तुम्हारे दोंनो बेटों ने किया है। इन दोंनो रात दिन मेहनत करके बहुत कम समय में फसल उगा कर नया रिर्काड बनाया है।’’
तभी उसके सामने उसके दोंनो बेटे खड़े हो जाते हैं।
आदर्श और कृष्णा उसके पैर पकड़ लेते हैं – “पिताजी हमें माफ कर दीजिये हमें अपनी गलती का एहसास घर से निकलते ही हो गया था। इसलिये हमने मेहनत करके यह फसल उगाई है।’’
मुरलीधर की आंखों से आंसू बह रहे थे। उस दिन के बाद तीनों बाप बेटे मेहनत करने लगे।
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