बुआ जी का घर
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नेहा आज बहुत खुश थी। गर्मीयों की छुट्ट्यिां पड़ गईं थीं और वह अपनी बुआ के घर रहने जा रही थी।
बुआ जी का घर
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नेहा उनके पास पहुंच गई उन्हें चेहरे पे इतना तेज था। कि नेहा उन्हें एक टक उन्हें देख रही थी।
बुआ जी का घर
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शाम के समय बुआ जी नेहा से कहती हैं - ‘‘बेटा मैं अपनी एक सहेली से मिलने जा रही हूं तू चल तुझे भी घुमा लाती हूं।’’
बुआ जी का घर
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बुआ जी ने रिक्शा रुकवाया और रिक्शे वाले से बोली - ‘‘छोटे बाजार में धर्मशाला के पास जाना है तीस रुपये दूंगी।’’
बुआ जी का घर
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रिक्शे वाला बोला - ‘‘वहां तो बहुत भीड़ रहती है बहुत देर जाम में खड़े रहना पड़ता है। पचास से कम नहीं लूंगा।’’
बुआ जी का घर
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यह सुनकर बुआ जी एकदम गुस्से में बोली - ‘‘तुम लोगों ने लूट मचा रखी है। चालीस से एक रुपया ज्याद नहीं दूंगी और रास्ते से मुझे मिठाई लेनी है।
बुआ जी का घर
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नेहा उनसे पूछती है - ‘‘बुआ जी एक तरफ तो आप दस रुपये कम कर रही थीं और दूसरी ओर आपने डेड़ सौ रुपये की मिठाई उसे पकड़ा दी।’’
बुआ जी का घर
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इन लोगों का भी तो मन होता होगा मिठाई खाने का लेकिन ये कभी उस दुकान से मिठाई नहीं ले पाते होंगे। इसलिये मैंने उसे मिठाई दी।’’
बुआ जी का घर
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नेहा उनके साथ घर के अंदर चली गई। टूटा फूटा घर था। आंगन में एक टूटी हुई सी चारपाई पड़ी थी।
बुआ जी का घर
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बुआ जी ने आवाज दी तो अंदर से बुआ जी की उम्र की एक महिला आई। पुरानी सी सूती साड़ी पहने।
बुआ जी का घर
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