Dattatreya Jayanti 2023

भगवान् दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और शंकरजी के संयुक्त अवतार माना गया हैं।

यह महर्षि अत्रि के पुत्र थे। इनकी माता का नाम अनुसूया था। 

एक बार देवर्षि नारदजी ने जब ब्रह्माजी की पत्नी सावित्री, विष्णुजी की पत्नी लक्ष्मी तथा शंकरजी की पत्नी पार्वती के सम्मुख अनुसूया के पवित्र चरित्र की चर्चा करते हुए उन्हें संसार में सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता तथा अनुपम गुणवती स्त्री घोषित कर दिया। 

सबों ने जाकर अपने-अपने पतियों से अनुसूया के गर्व को खण्डित करने का दुराग्रह किया। अन्ततः स्त्री हठ से विवश होकर इन त्रिदेवों को अनुसूया के पतिव्रत्य की परीक्षा लेने का निश्चय करना पड़ा और वे उनके आश्रम की ओर चल पड़े। 

अनुसूया ने भोजन परोसा किन्तु इन्होंने अनुरोध किया कि हमलोग तबतक भोजन नहीं करेंगे जबतक आप सब वस्त्रादि निकाल कर भोजन नहीं परोसेंगे। 

अनुसूया ने अपनी तप के बल से उनसब की माया समझ गयी। वह भीतर चली गयी और अपने अराध्य पति का चरणोदक लाकर उन तीनों के ऊपर छिड़क दिया। चरणोदक के पड़ते ही वे त्रिदेव बालक के समान हो गये और उनकी कलुश भावना दूर हो गयी। तब अनुसूया ने उन्हें अपने बच्चों के समान दूध पिलाया और ले जाकर अलग-अलग पालने में सुला दिया। फिर तो वे वही मजे में रहने लगे।

यह दशा देखकर लक्ष्मी, पार्वती और सावित्री ने हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी कि हमें अपना पति अलग-अलग लौटा दो। अनुसूया ने कहा,- ‘इन्होंने हमारा दूध पिया है। इसलिए हमारा बच्चा बनकर रहना होगा।’ इस प्रकार तीनों के संयुक्त अंश से तीन सिर और छः भूजाओं वाले दत्तात्रेय का जन्म हुआ। इसके बाद अनुसूया ने तीनों को मुक्त कर दिया।

पतिव्रता नारी के तेज को सहन करने की शक्ति संसार में किसी में नहीं है। वह त्रैलोक्य विजयिनी है तथा उसकी कोख से भगवान् को भी अवतार धारण करना पड़ता है। इस प्रकार दत्तात्रेय जयन्ती का यह पर्व नारी तेज की इस कथा के द्वारा हमारे सम्मुख महान आदर्शों की स्थापना करता है।