Sister and Young Brother Story : अल्का एक बहुत बड़े सेठ जी मदनलालजी के घर बहु बन कर आई थी। सेठ जी के दो बेटे थे। बड़ा बेटा सुनील जिसकी शादी हो चुकी थी। छोटा बेटा मोहित जिसके लिये अल्का को पसंद किया गया था।
सेठ मदनलाल जी का कारोबार बहुत फैला हुआ था। देश विदेशों में उनके कई बड़े संस्थान थे जहां बहुत अधिक मात्रा में कपड़ा बेचा जाता था। सेठी जी की बड़ी बहु जानकी एक बहुत बड़े परिवार से थी।
जानकी बहुत ही घमंडी थी। वह हमेशा अपने पति सुनील से लड़ती झगड़ती रहती थी।
पूरा घर इसी बात से परेशान रहता था। धन-दौलत, नौकर चाकर सब होते हुए भी शांति नहीं थी। सेठ मदनलाल जी का छोटा बेटा मोहित विदेश से पढ़ाई करके आया था। बहुत मेहनती था। सेठ जी के व्यापार को उसने बहुत आगे तक बढ़ा दिया था। विदेशों से आने वाले सभी आर्डर को वह खुद सम्हालता था।
सेठ जी ने अपने ही कपड़े के कारखाने में काम करने वाले एक बुनकर की बेटी को अपने बेटे मोहित के लिये पसंद किया था। घरवालों ने विरोध भी किया। लेकिन सेठ जी अमीर घर से रिश्ता जोड़ना नहीं चाहते थे।
अल्का जब घर में आई, तो महल जैसा घर देख कर उसे बहुत आश्चर्य हुआ।
सेठ जी: बेटी चिंता मत कर यहां बहुत से नौकर चाकर लगे हुए हैं तुझे कुछ नहीं करना पड़ेगा। धीरे धीरे तू यहां के तौर तरीके सीख जायेगी।
अल्का: जी पिताजी।
जानकी जानती थी, कि अल्का गरीब घर से है। इसलिये वह उसे दबा कर रखना चाहती थी।
कुछ दिन बाद अल्का के पिता और उसका छोटा भाई जगत तो केवल आठ साल का था। अल्का को विदा कराने आये।
सेठ जी ने दोंनो बाप बेटों का बहुत अधिक आदर सत्कार किया। अपनी बेटी को देख कर उसके पिता की आंखों से आंसू बहने लगे।
पिता: बेटी तुझे इतना सुख मिलेगा ये तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था।
अल्का अपने पिता और भाई से मिलकर बहुत खुश हुई। विदा होते समय सेठ जी ने कहा –
सेठ जी: जब बिट्यिा का मन भर जाये पीहर से तो बता देना मैं मोहित को भेज दूंगा और हां साथ में अपने बेटे को भी भेज देना। अपनी बहन के साथ कुछ दिन रह लेगा।
पिता: सेठ जी दमाद जी के लायक हमारा घर नहीं है। मैं इसे खुद ही छोड़ जाउंगा।
सेठ जी: नहीं जो रीति रिवाज है सो है। वो ही जायेगा आपके घर। जैसा भी है वह उसका ससुराल है। हां इसके भाई को साथ जरूर भेज देना। हमारे घर में कोई बच्चा नहीं है। हमारा भी मन लगा रहेगा।
उसके बाद सेठ जी अपनी गाड़ी से तीनों को भेज देते हैं।
घर आकर अल्का सारी बात बताती है। उसकी बातें सुनकर अल्का की मां रोने लगती है।
मां: बेटी हमारी औकात नहीं थी। तेरे लिये ऐसा घर ढूंढने की, ये तो सेठ जी की मेहरबानी है। हमेशा सबकी सेवा करती रहना।
कुछ दिन बाद अल्का को लेने मोहित आता है। वह अपने साथ जगत को भी ले जाते हैं।
अल्का और जगत का स्वागत होता है। जगत को सब बहुत प्यार करते हैं। लेकिन जानकी। उससे बहुत बैर रखती थी।
एक दिन जगत खेल रहा था। तभी उससे एक कांच का बहुत सुन्दर गमला टूट जाता है।
कांच पूरे फैल जाता है। जिसके कुछ टुकड़े जगत के पांव में भी लग जाते हैं। यह देख कर जानकी बहुत गुस्सा होती है।
जानकी: जाहिल गरीबों पता भी है कितने का था। ये गुलदस्ता जिसे तोड़ दिया। अल्का तेरा बाप पूरी जिन्दगी भी हमारे कारखाने में काम करे तो भी इसका दाम नहीं चुका सकता।
अल्का: दीदी बच्चा है गलती हो गई माफ कर दीजिये।
अल्का जल्दी से जगत को गोद में उठा कर अपने कमरे में ले जाती है। उसके पैर से कांच निकालती है। जगत को बहुत दर्द हो रहा था। वह जोर जोर से रो रहा था।
यह सुनकर जानकी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने जगत को मारना शुरू कर दिया। अल्का उसे बचाती रही लेकिन जानकी ने नही छोड़ा।
जानकी: कहां से भिखारी इकट्ठे हो गये हैं?
अल्का जगत के पैर में पट्टी बांध कर उसे चुप करा कर सुला देती है।
शाम को अल्का बाकी सबके आने से पहले एक गाड़ी में बैठ कर जगत को अपने पिता के घर पहुंचा आती है। जिससे कि बात ज्यादा न बढ़े।
शाम को सेठ जी जगत के लिये मिठाई लेकर आये थे। लेकिन जगत को न पाकर वे दुःखी हो जाते हैं। घर के नौकर उन्हें सब बता देते हैं।
सेठ जी, जानकी से बहस नहीं करना चाहते थे।
इसी तरह समय बीत जाता है। अल्का एक बेटे को जन्म देती है। जिससे सेठ मदनलाल जी की खुशियों का ठिकाना नहीं रहता, लेकिन जानकी का गुस्सा सातवें आसमान पर था।
बच्चे के नामकरण का दिन आने वाला था। सेठ जी ने अल्का के घरवालों को न्यौता भिजवाया। समारोह से एक दिन पहले जानकी ने एक नौकर के हाथ से अल्का के घर संदेशा भिजवा दिया कि बच्चे के लिये चांदी का पालना लायें।
अल्का के पिता बहुत परेशान हो गये। उस समय जगत दस वर्ष का हो चुका था।
जगत: पिताजी छोड़ो दीदी के घर जाते ही नहीं हैं।
पिता: नहीं बेटे सब उसे ताने मारेंगे। जाना तो पड़ेगा।
जगत: लेकिन पालना कहां से आयेगा।
पिता: बेटा एक काम कर लकड़ी का ही पालना लेकर चलते हैं। उन्होंने रख लिया तो ठीक है नहीं तो वापस ले आयेंगे।
दोंनो बाप-बेटे, बहुत से उपहार लेकर समारोह में पहुंच जाते हैं।
सेठ जी और उनके दोंनो बेटे उनका बहुत स्वागत करते हैं।
जिस समय बच्चे का नामकरण होना था। उस समय बच्चे को पालने में लिटाना था। चांदी का पालना न देख कर जानकी बहुत गुस्सा हो गई।
जानकी: तुम्हें यही लकड़ी का पालना मिला था, हमारे कुलदीपक के लिये। मैंने कहा था चांदी का पालना लाना।
यह सुनकर अल्का के पिता बहुत दुःखी होते हैं।
पिता: बेटी हमसे जो बन पड़ा वो ले आये। हमें माफ कर दो।
सेठ जी: समधी जी आप क्यों माफी मांग रहे हैं। जानकी तुम्हें जो कुछ कहना है मुझसे कहो वे बेचारे कहां से लाते चांदी का पालना और तुमने इनसे कहा ही क्यों पालना लाने के लिये।
अल्का पूजा के स्थान पर बैठी अपने पिता और भाई की बेज्जती देख कर रो रही थी।
जानकी: वाह पिताजी जो रिवाज है वो तो करनी ही पड़ेगी।
सेठ जी: चुप हो जाओ बहु सब मेहमान जुड़े हैं। मैं अभी चांदी का पालना मंगा देता हूं।
जानकी: नहीं पिताजी पालना तो मायके से ही आता है।
जगत को बहुत गुस्सा आ जाता है।
जगज: बड़ी दीदी मैं आपसे वादा करता हूं। जब तक अपने भान्जे के लिये चांदी का पालना नहीं ला देता चैन से नहीं बैठूंगा। चलिये पिताजी।
दोंनों बाप बेटे आंखों में आंसू लिये वहां से वापस चले जाते हैं।
अगले दिन जगत काम ढूंढने लगता है। वह छोटी सी उम्र से ही मेहनत करके पैसे जोड़ने लगता है।
इस बात को दस साल बीत जाते हैं। इस बीच न अल्का कभी अपने पीहर आई न उसके पीहर से कोई उसकी सुसराल गया।
सेठ जी अब बूढ़े हो गये थे। वे ज्यादतर घर पर ही रहते थे।
एक दिन उनके घर के सामने एक बड़ा सा ट्रक उतरा। उसमें बहुत सा सामान था। ट्रक के साथ आये मजदूर एक एक करके सारा सामान अंदर ले जाने लगे। सेठ जी ने उनसे पूछा लेकिन वे बिना कुछ बताये सारा समान घर के आंगन में रख आये।
सेठ जी: ये सब क्या है हमने तो कुछ नहीं मंगाया।
तभी बाहर एक आलीशान कार आकर रुकती है। उसमें से एक बहुत सुन्दर युवक बाहर निकलता है। घर के आंगन में पहुंच कर वह सेठ जी के पैर छूता है।
सेठ जी: बेटा तुम कौन हो और ये सब क्या है?
अल्का और जानकी भी वहां आ जाती हैं।
अल्का: जगत तू कितना बड़ा हो गया। पूरे दस साल हो गये तुझे देखे।
जगत: दीदी आपने पहचान लिया?
अल्का: हां अपने भाई को कैसे भूल सकती हूं, बता माता पिता कैसे हैं?
जगत: सब ठीक हैं। बड़ी दीदी थोड़ी सी देर हो गई। ये देखो।
यह कहकर वह नौकरों को इशारा करता है। नौकर सारे सामान से कपड़ा हटाते हैं। एक बड़ा सा चांदी का पालना। बहुत सारे हीरे, सोने के जेवर, बच्चे के लिये चांदी के खिलौने। पूरा घर उनकी चमक से चमचमा रहा था।
जानकी: भैया मुझे माफ कर दो मैंने घमंड में तुम्हारे पिता का अपमान किया था। उसकी मुझे यही सजा मिली की मेरे कोई औलाद नहीं है।
अल्का अपने भाई के गले लग कर खूब रोई।
अल्का: भैया कभी बहन की याद नहीं आई?
जगत: बहन याद तो बहुत आती थी, लेकिन पिता जी का अपमान यहां जाने से रोक लेता था। आज मैंने अपना फर्ज पूरा किया। तब तुझसे मिलने आया।
अल्का: पिताजी का अपमान मेरे कारण हुआ। इसीलिये मैं कभी मायके नहीं आई, किस मुंह से आती।
जानकी: बहन मुझे माफ कर दो उपरवाले ने तो मुझे सजा दे ही दी है।
अल्का: नहीं दीदी मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है। हमें अपने से उपर घर में रिश्ता नहीं करना चाहिये था।
सेठ जी: बेटी ठीक कह रही हों मैं अपने घर के लिये सुख लेने गया था। तम्हारे हिस्से में दुःख भर आया।
जगत: सेठ जी क्या अब मैं अपनी दीदी को ले जा सकता हूं। इस चांदी के पालने ने रोक रखा था आने को।
सेठ जी: बेटा हमें शर्मिन्दा मत करो। अपनी दीदी को ले जाओ जब तक चाहे वहां रखना और अपने पिता से मेरी ओर से हाथ जोड़ कर माफी मांग लेना।
अल्का अपने दस साल के बेटे को लेकर अपने भाई की गाड़ी में बैठ कर अपने पीहर की ओर चल दी।
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