एक सहेली की गलतफहमी | Short Story : Misunderstanding in Friendship

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Short Story : Misunderstanding in Friendship : रेखा और सुनीता दोंनो में गहरी दोस्ती थी। रेखा की शादी एक सम्पन्न परिवार में हो जाती है वहीं सुनीता की शादी एक मिडिल क्लास फैमली में हो जाती है। एक दिन सुनीता रेखा से मिलने आती है। रेखा उसे बहुत प्यार से गले लगा कर मिलती है और दोंनो काफी देर तक गप्पे मारती हैं। कुछ देर बात करने के बाद रेखा को लगता है कि सुनीता कुछ परेशान है।

रेखा: सुनीता क्या बात है मैं देख रही हूं तू पहले की तरह खुल कर बात नहीं कर पा रही है कोई परेशानी है क्या।

सुनीता: बहन मैं तेरे पास एक काम से आई थी। मुझे अपने बेटे का एडमिशन कराना है। लेकिन पैसे कम पड़ गये हैं क्या तू मुझे 10 हजार रुपये दे सकती है। मैं जल्दी ही वापिस कर दूंगी।

रेखा: बस इतनी सी बात इसमें इतना परेशान होने की क्या जरूरत है तू बैठ मैं आती हूं।

कुछ देर बाद रेखा पैसे लेकर आती है और सुनीता के हाथ पर रख देती है।

रेखा: क्या तेरा बेटा मेरा बेटा नहीं है। यह ले पैसे और अच्छे से उसका एडमिशन करा और हॉं पैसे जब तेरे पास हों आराम से लौटा देना।

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सुनीता उसे धन्यवाद देकर चली जाती है। इसी तरह कुछ समय बीत जाता है।

इस बीच रेखा और सुनीता कई बार मिली लेंकिन पैसों को लेकर कोई बात नहीं हुई।

एक दिन रेखा के पति को कुछ पैसों की जरूरत थी।

दिनेश: रेखा वो तुम्हारे पास 10 हजार रुपये रखे थे वो देना आज बैंक बंद है और मुझे किसी को पैसे देने हैं।

रेखा: जी वो तो मैंने अपनी सहेली सुनीता को उधार दे दिये हैं। उसने कहा था जल्दी लौटा देगी।

दिनेश: अच्छा कोई बात नहीं लेकिन क्या तुम्हें लगता है वो पैसे वापस करेगी।

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रेखा: आप कैसी बात कर रहे हो।

दिनेश: मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जो रिश्तेदारों को कोई न कोई मजबूरी बता कर पैसे ले लेते हैं बाद में वापस नहीं करते। और तो और उन्हें पैसों की आवश्यकता भी नहीं होती वे तो केवल अपनी मौज मस्ती के लिये उधार लेते हैं।

रेखा: नहीं ऐसा नहीं हो सकता सुनीता कभी झूठ नहीं बोलती।

इसी तरह कुछ दिन बीत जाते हैं।

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एक दिन रेखा सुनीता को फोन करती है।

सुनीता: कैसी हो रेखा मैं हरिद्वार आई थी 3-4 दिन में वापस आकर तुमसे बात करती हूं।

रेखा के मन में विचार आया

रेखा: कहीं मेरे पति सही तो नहीं कह रहे थे इसके यदि पैसे थे तो इसने मुझे लौटाने की जरूरत नहीं समझी और घूमने चल दी। अब तो इसका जब भी फोन आयेगा मैं सीधे सीधे पैसे मांग लूंगी।

कुछ दिन और बीत जाते हैं। लेकिन सुनीता का फोन नहीं आता।

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एक दिन रेखा सुनीता को फोन करती है।

रेखा: सुनीता तू तो मेरे पैसे हड़प कर बैठ गई मैंने तेरी मदद की थी और तू मेरे पैसे वापस करने के बजाय हरिद्वार घूम रही है। चुपचाप दो दिन में मेरे पैसे लौटा दे आज से तेरी मेरी दोस्ती खत्म।

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अगले दिन सुनीता रेखा के घर आती है।

सुनीता: बहन इतनी गुस्सा क्यों है। यह ले अपने पैसे।

रेखा चुपचाप पैसे ले लेती है।

सुनीता: रेखा तू मेरी बचपन की सहेली है। तू जानती है मैं झूठ नहीं बोलती। मैं तेरे पैसे लौटाना चाहती थी लेकिन तभी मेरे ससुर जी की तबियत अचानक खराब हो गई वे हरिद्वार में रहते हैं। हमें अचानक जाना पड़ा। तेरा फोन आने के अगले दिन उनका स्वर्गवास हो गया हमें 13 दिन वहीं रुकना पड़ा। कल रात ही हम वापस आये हैं।

यह सुनकर रेखा रोने लगी।

रेखा: मुझे माफ कर दे मैं भूल गई कि हरिद्वार में तेरा ससुराल है। मुझे गलतफहमी हो गई थी।

सुनीता: कोई बात नहीं बहन मुझे भी माफ कर दे पैसे देने में देरी हा गई।

सुनीता पैसे देकर चली जाती है। लेकिन उसके बाद सुनीता और रेखा पहले जैसी दोस्त नहीं रह पाती। वे कहीं मिलती तो सिर्फ औपचारिकता से थोड़ा बोल लेती थीं।

एक गलतफहमी ने उनके रिश्ते में हमेशा के लिये दरार डाल दी।

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Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.