5 बेटियों की शादी | Moral Story in Hindi

Moral Story in Hindi - 5 Batiyon Ki Shadi
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5 बेटियों की शादी | Moral Story in Hindi : अमरसिंह एक शहर में दर्जी की दुकान चलाता था। उसकी पांच बेट्यिां थीं। अमरसिंह एक बेटा चाहता था। जिसके कारण 5 बेट्यिों को जन्म देने के बाद उसकी पत्नि का देहान्त हो गया। अमरसिंह अपनी बड़ी बेटी शकुन्तला को चाहता था। बाकी चारों से नफरत करता था।

एक दिन अमरसिंह घर आया वह घर आकर बैठा ही था। तभी शकुन्तला उसके पास आई।

शकुन्तला: पापा आप बहुत परेशान लग रहे हैं। क्या बात है।

अमरसिंह: बेटा मैं इतनी थोड़ी सी कमाई में तुम सब की शादी कैसे करूंगा यही सोच कर परेशान हूं। भगवान या तो मुझे उठा ले या इन चारों को जिन्हें देख कर मेरा खून जलता रहता है।

शकुन्तला: पाप आप ऐसा मत कहिये हमारी मॉं तो पहले ही हमें छोड़ कर चली गई अब आप भी ऐसा कहेंगे तो हमारा क्या होगा। मैं काम ढूंढ रही हूं अगर मुझे काम मिल गया तो सब काम हो जायेंगे मैं आपसे वादा करती हूं पहले अपनी सभी बहनों की शादी करूंगी बाद में अपनी शादी करूंगी।

अमरसिंह: बेटी मुझे पता है तू बहुत समझदार है। बस तुझे ही देख कर मैं जिन्दा हूं।

अमरसिंह की चारों लड़किया सुमन, रश्मि, चंचल और सबसे छोटी भावना यह सब सुन रही थीं। अमर सिंह अपने कमरे में चला गया।

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तब चारों बहने रोते हुए शकुन्तला के पास आई।

भावना: दीदी पापा हमें बिल्कुल पसंद नहीं करते। हम कहां जायें?

शकुन्तला: तुम चारो चुप करो पापा परेशान हैं इसलिये ऐसा बोल रहे हैं भला कोई अपने बच्चों से नफरत करता है और फिर मैं हूं न तुम्हारा ध्यान रखने के लिये मेरे होते तुम्हें चिन्ता करने की जरूरत नहीं चलो जाओ सो जाओ।

चारों अपने कमरे में चली जाती हैं।

रात को शकुन्तला को नींद नहीं आती वह बैठ कर सोच रही थी। कि क्या करे। इसी सोचविचार में रात बीत जाती है।

अगले दिन शकुन्तला अपनी छोटी दोनो बहनो को स्कूल भेज कर काम ढूंढने निकल जाती है। वह एक दुकान पर जाती है।

शकुन्तला: सेठ जी मुझे आपकी दुकान में कोई काम मिल सकता है क्या?

दुकानदार: नहीं हमारी दुकान पर कोई काम नहीं है आगे जाओ।

शकुन्तला इसी तरह पूरा दिन बाजार में घूमती रहती है और शाम को निराश होकर घर वापस आ जाती है।

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अगले दिन वह फिर से कई दुकान पर काम मांगने जाती है लेकिन उसे काम नहीं मिलता।

शाम को जब वह घर आती है तो देखती है उसके पापा पलंग पर लेटे हुए थे।

शकुन्तला: पापा आज आप जल्दि आ गये। क्या बात है।

अमरसिंह: बेटी मुझे बुखार आ गया। इसलिये मैं घर आ गया।

अमरसिंह काफी दिनों तक बीमार रहा जिसके कारण वह दुकान पर नहीं जा सका घर में भूखे मरने की नौबत आ गई थी। इधर अमरसिंह के इलाज पर भी काफी पैसा खर्च हो रहा था।

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एक दिन शकुन्तला अपने पापा के लिये दवाई लेने बाजार गई। वहां उसने एक दुकान पर कुछ कपड़े बिकते हुए देखे।

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शकुन्तला ने दुकानदार से बात की

शकुन्तला: भैया ये कपड़े के टुकड़े आप कैसे बेचते हो।

दुकानदार: बहन ये बड़े कपड़े में से बचे हुए कपड़े हैं जिन्हें हम आधे पैसों में बेचते हैं।

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शकुन्तला उसमें से कुछ कपड़े खरीद कर घर ले आती है वह सिलाई जानती थी। वह उन कपड़ों से बहुत सुन्दर लेडिज ड्रेस तैयार कर लेती है।

अगले दिन वह अमरसिंह से बात करती है।

शकुन्तला: पापा मैंने यह एक ड्रेस बनाई है मैं आपकी दुकान खोल कर इसी तरह की ड्रेस बना कर बेचना चाहती हूं। ये कटपीस के सस्ते कपड़े से बनी है।

अमरसिंह: बेटी जो तू ठीक समझे कर ले मैं तो लाचार हूं।

शकुन्तला सुमन और रश्मि के साथ जाकर दुकान खोलती है और वह ड्रेस दुकान पर सजा देती है। उसके बाद दोंनो बहनो को दुकान पर छोड़ कर उसी कटपीस की दुकान पर जाती है। वहां से कुछ और कपड़े खरीद कर दुकान पर वापस आ जाती है।

सुमन: दीदी वह ड्रेस हमने 800 रुपये में बेच दी।

शकुन्तला: अरे वाह वह तो केवल 100 रुपये मैं तैयार हो गई थी। चलो में और कपड़े ले आती हूं फिर कई तरह की ड्रेस बना लेंगे।

शकुन्तला, सुमन और रश्मि मिल कर ड्रेस बनाने लगती हैं। उनकी ड्रेस ग्राहकों को पसंद आती हैं और हाथों हाथ बिक जाती हैं। तीनों बहने उस दुकान को बुटीक में बदल दिया। चंचल और भावना घर पर अमरसिंह को संभालती थीं इसी तरह समय बीत रहा था।

एक दिन एक लेडिज दुकान पर आई

लेडिज: मेरा नाम कोमल है मैं एक फेशन डिजाईनर हूं। तुम्हारी ड्रेस मुझे पसंद है। मैं चाहती हूं तुम यह काम आगे बढ़ाओ इसके लिये मैं तुम्हें 1000 ड्रेस का ऑडर दे रही हूं। यह लो पांच लाख रुपये इससे फैक्ट्री लगा लो।

शकुन्तला: लेकिन मेडम हम इतना कैसे कर पायेंगे।

लेडिज: तुम उसकी चिन्ता मत करो कल से मेरे ऑफिस से कुछ लोग आयेंगे वे तुम्हारी पूरी फैक्ट्री लगवा देंगे।

15 दिन बाद शकुन्तल की फैक्ट्री शुरू हो जाती है। उसे और जगह से भी आर्डर मिलने लगते हैं।

इधर अमर सिंह भी ठीक हो जाता है। वह भी फैक्ट्री संभालने लगता है। कुछ ही समय में उनका व्यापार बहुत बढ़ जाता है। शकुन्तला चारों बहनो के लिये अच्छे रिशते देख कर उनकी शादी कर देती है।

एक दिन अमरसिंह शकुन्तला का भी रिश्ता पक्का कर देता है।

शादी के बाद जब विदाई का समय आता है।

अमरसिंह: बेटी मुझे माफ कर दे मैं अपनी बच्चियों को दिन रात कोसता रहा। लेकिन अगर मेरा बेटा भी होता तो आज मेरे लिये इतना न करता।

वह खुशी खुशी शकुन्तला को विदा करता है।

चारों बहने शादी के बाद भी बिजनेस को संभालती रहती हैं।

शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की बेटियों को कभी बोझ नहीं समझना चाहिए

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Anil Sharma is a Hindi blog writer at kathaamrit.com, a website that showcases his passion for storytelling. He also shares his views and opinions on current affairs, relations, festivals, and culture.